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Kailash Mansarovar Pilgrimage: कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू होने की संभावना!

NCIRNvimarsh4 months ago

 

Kailash Mansarovar Pilgrimage 

भारत और चीन के संबंधों में हाल ही में सकारात्मक प्रगति हुई है, जिससे कैलाश मानसरोवर यात्रा के फिर से शुरू होने की संभावनाएं प्रबल हो गई हैं। चार वर्षों तक इस यात्रा पर प्रतिबंध लगा रहा, जिसकी मुख्य वजह कोविड-19 महामारी और भारत-चीन सीमा विवाद थे। लेकिन अब दोनों देशों के बीच हुई उच्चस्तरीय वार्ता में छह अहम मुद्दों पर सहमति बनी है, जिसमें से सबसे महत्वपूर्ण कैलाश मानसरोवर यात्रा का फिर से संचालन है। कैलाश पर्वत, जो हिंदू, बौद्ध, जैन और बोन धर्मों के लिए अत्यंत पवित्र है, भारत और नेपाल के श्रद्धालुओं के लिए आस्था और भक्ति का केंद्र है। यह यात्रा मुख्यतः उत्तराखंड के लिपुलेख पास और सिक्किम के नाथुला पास के माध्यम से की जाती है।

यात्रा की तैयारी कठिन होती है, जिसमें मेडिकल फिटनेस सर्टिफिकेट और शारीरिक क्षमता आवश्यक है। दुर्गम पहाड़ी रास्ते, ऑक्सीजन की कमी और लंबे ट्रेकिंग के बावजूद, इस यात्रा का धार्मिक महत्व हर कठिनाई को मात देता है। आमतौर पर यात्रा में लगभग एक महीने का समय लगता है और इस दौरान विशेष ट्रेकिंग गाइड और सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। चीन के तिब्बत क्षेत्र में स्थित कैलाश पर्वत पर चढ़ाई प्रतिबंधित है, लेकिन भक्त यहां की परिक्रमा कर अपनी आस्था व्यक्त करते हैं।

हाल ही में, भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के वांग यी के बीच बातचीत ने इस यात्रा को फिर से शुरू करने की संभावना को बल दिया है। यह वार्ता विशेष रूप से दोनों देशों के सीमा विवाद और धार्मिक पर्यटन पर केंद्रित थी। बातचीत में कैलाश मानसरोवर यात्रा के अतिरिक्त सीमा सुरक्षा और आपसी संबंधों को मजबूत करने के लिए भी चर्चा हुई। हालांकि, चीन के साथ संबंधों में सतर्कता रखना जरूरी है, क्योंकि इतिहास ने सिखाया है कि चीन का रवैया कभी भी स्थिर नहीं रहा है।

अगर यह यात्रा फिर से शुरू होती है, तो यह न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होगी, बल्कि पर्यटन को भी बढ़ावा देगी। कैलाश मानसरोवर यात्रा को एक धार्मिक यात्रा से कहीं अधिक मान्यता प्राप्त है, जो भारत और चीन के बीच संबंधों में स्थिरता और सहयोग का प्रतीक बन सकती है। इस पहल से भारत-चीन संबंधों में नए आयाम जुड़ने की उम्मीद है। यह देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में दोनों देश अपने आपसी हितों के साथ कैसे संतुलन बनाते हैं और इस ऐतिहासिक यात्रा को सफल बनाते हैं।

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