Dakini Sabar Mantra : सावधान! इस एक गलती से डाकिनी कर देती है साधक का विनाश!

By NCI
On: December 3, 2025 10:06 AM

Dakini Sabar Mantra : डाकिनी, शाकिनी, जल डंकिनी, और थल डंकिनी जैसी अलौकिक शक्तियों का ज़िक्र अक्सर लोक कथाओं, ग्रामीण क्षेत्रों और विशेष रूप से भारतीय तंत्र साहित्य में सुनने को मिलता है। ये नाम सुनते ही मन में एक तीव्र और कुछ हद तक भयावह छवि उभरती है, लेकिन सामान्य जन इनके वास्तविक स्वरूप, शक्ति और तंत्र-साधना में इनके स्थान से अनभिज्ञ होते हैं। यह समझना आवश्यक है कि डाकिनी जैसी शक्तियाँ मात्र काल्पनिक डर नहीं हैं, बल्कि ये भारतीय आध्यात्मिक और तांत्रिक परंपरा में ऊर्जा के अत्यंत उग्र स्वरूप का प्रतिनिधित्व करती हैं। इस गहन विषय को समझने के लिए, हमें इनके मूल और तंत्र जगत में इनकी भूमिका पर ध्यान देना होगा।

डाकिनी शब्द की एक व्याख्या यह है कि यह “डाक ले जाने” वाली शक्ति है। प्राचीन काल से लेकर वर्तमान के देहातों तक, “डाक ले जाने” का अर्थ होता है – चेतना का किसी तीव्र भाव, विचार या ऊर्जा की आंधी में पड़कर चकरा जाना, जिससे व्यक्ति की सोचने-समझने और विवेकपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता लगभग समाप्त हो जाती है। यह एक ऐसी मानसिक या आध्यात्मिक अवस्था होती है जिसमें व्यक्ति पर किसी प्रबल ऊर्जा का पूर्ण अधिकार हो जाता है। तांत्रिक ग्रंथों के अनुसार, डाकिनी कोई बाहरी शक्ति मात्र नहीं है, बल्कि यह मानव शरीर के भीतर स्थित मूलाधार चक्र की शक्ति का भी मूलाधार है, जो इसे अत्यंत महत्वपूर्ण और मूल शक्ति बनाती है। तंत्र शास्त्र में, माँ काली को भी कई बार डाकिनी कहा जाता है, यद्यपि अधिक सूक्ष्म रूप से देखा जाए तो डाकिनी को माँ काली की शक्ति के अंतर्गत आने वाली एक अति उग्र शक्ति माना गया है। यह शक्ति, माँ काली के विध्वंसक और उग्र स्वरूप का प्रतिनिधित्व करती है और इसका स्थान मूलाधार चक्र के ठीक केंद्र में माना गया है। यह प्रकृति की सर्वाधिक क्रूर और विध्वंशकारी ऊर्जा है, जो समस्त विनाश और संहार का मूल कारण है, और इसी उग्रता के कारण माँ काली को अति उग्र देवी कहा जाता है, जबकि वे संपूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति और पालन की भी मूल देवी हैं। यह ऊर्जा का वह ध्रुव है जो जीवन को शून्य तक ले जाता है।

तंत्र मार्ग में, डाकिनी की साधना एक स्वतंत्र और अत्यधिक कठिन मार्ग है। यह माना जाता है कि यदि साधक डाकिनी शक्ति को सिद्ध करने में सफल हो जाता है, तो उसके लिए माँ काली की सिद्धि, अर्थात मूलाधार चक्र की सिद्धि, अत्यंत सरल हो जाती है। मूलाधार चक्र की यह सिद्धि वास्तव में अन्य सभी चक्रों और देवी-देवताओं को सिद्ध करने का द्वार खोल देती है। कहने का तात्पर्य यह है कि डाकिनी की सिद्धि के बाद साधक को अन्य शक्तियों की प्राप्ति के लिए कठोर और लंबी साधनाएँ करने की आवश्यकता नहीं पड़ती; कम प्रयास में ही सफलता मिल जाती है। इस दृष्टिकोण से, डाकिनी नामक काली की इस शक्ति की साधना को तांत्रिक साधनाओं में सर्वाधिक कठिन और चुनौतीपूर्ण माना गया है। अघोरपंथी तांत्रिकों के बीच डाकिनी देवी की साधना विशेष रूप से प्रसिद्ध है, क्योंकि यह शक्ति उनके मार्ग की क्रूरता, वैराग्य और चरम वैराग्य को दर्शाती है। हमारे भीतर उत्पन्न होने वाली क्रूरता, क्रोध, अत्यधिक हिंसात्मक भावनाएँ, और यहाँ तक कि शरीर में नख एवं बालों की उत्पत्ति जैसी भौतिक क्रियाएँ भी डाकिनी की शक्ति तरंगों से जुड़ी हुई मानी जाती हैं, जो इस बात का संकेत है कि यह ऊर्जा शरीर और मन के मौलिक स्तर पर कार्य करती है।

डाकिनी की सिद्धि या इस शक्ति के जागरण से साधक को कई अलौकिक क्षमताएँ प्राप्त होती हैं। इन क्षमताओं में भूत-भविष्य-वर्तमान तीनों कालों का ज्ञान, किसी व्यक्ति को पूर्णतः नियंत्रित करने की क्षमता, अर्थात वशीकरण, और किसी को भी अपने वशीभूत करने की शक्ति शामिल है। सिद्ध होने पर, यह शक्ति साधक की हर प्रकार से रक्षा करती है और उसे जीवन के हर मार्ग पर मार्गदर्शन भी प्रदान करती है। इस ऊर्जा का स्वरूप अत्यंत उग्र होता है, और यह लगभग माँ काली के ही रूप में साधक के समक्ष अवतरित होती है। इस स्वरूप में किसी भी प्रकार का माधुर्य या कोमलता का अभाव होता है, क्योंकि यह विशुद्ध रूप से शक्ति और विनाश का प्रतिनिधित्व करता है। सिद्धि के मार्ग पर, यह शक्ति साधक की गहन परीक्षा लेती है। यह पहले साधक को डराती है, उसकी मानसिक और भावनात्मक शक्ति को हर तरह से आजमाती है, और फिर तरह-तरह के मोहक रूपों और प्रलोभनों से उसे भोग-विलास के लिए प्रेरित करती है। चूंकि डाकिनी मूल रूप से एक उग्र और क्रूर शक्ति है, इसलिए तांत्रिकों को यह सलाह दी जाती है कि वे बिना उचित रक्षा कवच धारण किए कभी भी इसकी साधना न करें। यदि साधक इसके द्वारा उत्पन्न किए गए भय और प्रलोभन के जाल से सफलतापूर्वक बच निकलता है, तभी सिद्धि का मार्ग आसान होता है। इस साधना को पूर्ण करने के लिए मस्तिष्क को शून्य करके, या पूर्ण विवेक का त्याग करके, निर्मल और निस्वार्थ भाव में डूबना अत्यंत आवश्यक है। यहाँ यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि व्यावहारिक रूप से डाकिनी और माँ काली में अंतर है, भले ही डाकिनी, माँ काली की शक्ति के अंतर्गत आती हो; माँ काली एक जाग्रत देवी शक्ति हैं, जबकि डाकिनी की शक्ति को साधना के माध्यम से जगाना अति आवश्यक होता है। इस मार्ग पर कामभाव (Sexual Desire) का पूर्ण रूप से त्याग करना अनिवार्य है।

तंत्र जगत में एक और प्रकार की डाकिनी की साधना का वर्णन मिलता है, जो अधिकतर वाममार्ग (Left-Hand Path) में साधित होती है। यह डाकिनी प्रकृति की नकारात्मक (Negative/ऋणात्मक) ऊर्जा से उत्पन्न एक स्थायी गुण है, और यह एक निश्चित, आकर्षक आकृति में दिखाई देती है। इसका स्वरूप अत्यंत सुंदर और मोहक होता है, और यह पृथ्वी पर एक स्वतंत्र शक्ति के रूप में विद्यमान रहती है। अघोरी और कापालिक साधकों के बीच इसकी साधना बहुत प्रचलित है। यह शक्ति अत्यंत शक्तिशाली होती है और सिद्ध हो जाने पर साधक के लिए जीवन का मार्ग सरल बना देती है। हालांकि, इस साधना में ज़रा सी भी चूक होने पर, या साधना के दौरान साधक के थोड़ा सा भी कमजोर पड़ने पर, यह शक्ति साधक को समाप्त कर देती है। यह भूत, प्रेत, पिशाच, ब्रह्म, जिन्न आदि उन्नत शक्तियों की श्रेणी में आती है। यह डाकिनी कभी-कभी स्वयं किसी व्यक्ति पर कृपा कर सकती है, या कभी-कभी किसी पर स्वयं ही आसक्त (Obsessed) हो जाती है। इसके आसक्त होने पर, उस व्यक्ति के सभी कार्य रुक जाते हैं और उसका धीरे-धीरे विनाश होने लगता है। इसका स्वरूप एक सुंदर, गौरवर्णीय (Fair-complexioned), तीखे नाक-नक्श वाली युवती जैसा होता है, जो अधिकतर काले वस्त्रों में ही दिखाई देती है। काशी के तंत्र जगत में इसके विचरण, प्रभाव और साधना का विस्तृत विवरण ग्रंथों में मिलता है। इस शक्ति को केवल नियंत्रित या वशीभूत किया जा सकता है, इसे नष्ट नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह एक ऐसी शक्ति है जो सदैव ब्रह्मांड में व्याप्त रहती है। यह व्यक्ति विशेष के लिए लाभप्रद भी हो सकती है और हानिकारक भी; इसे नकारात्मक (Negative) नहीं कहा जा सकता, अपितु यह मूलतः ऋणात्मक (Negative Polarity) शक्ति ही होती है। सामान्यतया यह डाकिनी शक्तियाँ नदी-सरोवरों के किनारों, घाटों, शमशानों, तांत्रिक पीठों, और एकांत साधना स्थलों पर विचरण करती हुई पाई जाती हैं।

डाकिनी की साधना एक अत्यंत गुप्त, जोखिम भरा और विशिष्ट मार्ग है, जिसके लिए न केवल शारीरिक और मानसिक बल, बल्कि एक अनुभवी गुरु का मार्गदर्शन और एक सुरक्षित रक्षा कवच अत्यंत आवश्यक होता है। यह शक्ति मनुष्य के मन के सबसे गहरे और सबसे उग्र भावों का प्रतीक है, जिसे जगाकर साधक संसार की सबसे बड़ी सिद्धियों में से एक को प्राप्त करने का प्रयास करता है।


डाकिनी प्रत्यक्षीकरण शाबर मन्त्र और साधना विधि

तंत्र जगत की इस उग्र शक्ति को सिद्ध करने के इच्छुक साधकों के लिए, नव वर्ष के आगमन पर डाकिनी प्रत्यक्षीकरण की यह शाबर मन्त्र साधना विधि यहाँ दी जा रही है। यह साधना अत्यंत कठिन और ख़तरनाक है, इसलिए इसे गुरु के मार्गदर्शन और पूरी सावधानी के साथ ही करना चाहिए।

मंत्र और जाप सामग्री

  • डाकिनी प्रत्यक्षीकरण शाबर मन्त्र: ।। ॐ नमो आदेश गुरु को स्यार की ख़वासिनी समंदर पार धाइ आव, बैठी हो तो आव-ठाडी हो तो ठाडी आव-जलती आ-उछलती आ न आये डाकनी,तो जालंधर बाबा कि आन शब्द साँचा पिंड कांचा फुरे मन्त्र ईश्वरो वाचा छू ।।
  • माला: मंत्र जाप के लिए रुद्राक्ष माला का प्रयोग करें।

  • आसन: काले रंग का आसन होना चाहिए।

  • दिशा: साधक का मुख दक्षिण दिशा में होना चाहिए।

साधना विधि

यह साधना प्रत्यक्षीकरण (Physical Manifestation) की है और इसे अत्यंत सावधानी के साथ करना चाहिए:

  1. स्थान चयन: साधना के लिए किसी एकांत स्थान का चयन करें, जहाँ आस-पास कोई चौराहा हो।

  2. समय और सामग्री: रात के समय साधना आरंभ करें। अपने साथ कुछ मास (मांस), मदिरा (शराब), एक मिट्टी का दीपक, सरसों का तेल, और सरसों के दाने लेकर जाएँ।

  3. जाप आरंभ: काले आसन पर बैठकर, वस्त्र त्यागकर (नग्न होकर), सरसों के तेल का दीपक जलाकर सामने रख लें। अब रुद्राक्ष माला से मन्त्र का 11 माला जाप आरंभ करें।

  4. दिशा बंधन: एक बार जाप करने के बाद, हाथ में सरसों के दाने लें और मन्त्र पढ़कर चारों दिशाओं में फेंक दें। यह क्रिया एक प्रकार का दिशा बंधन करती है।

  5. संकल्प और दर्शन: अब दोबारा से मन्त्र जपना आरम्भ करें। अपने मन में यह प्रबल संकल्प रखें कि डाकिनी शीघ्र आकर दर्शन दे।

  6. प्रत्यक्षीकरण और भेंट: ऐसी मान्यता है कि कुछ ही देर में, डाकिनियाँ दौड़ती, चिल्लाती और उछलती हुई साधक के सामने प्रकट होंगी। इस समय साधक को उन्हें शराब और मास प्रदान करना होता है, जो इस उग्र शक्ति के लिए भेंट (भोग) होता है।

  7. मनोवांछित कार्य: भेंट देने के बाद, साधक को अपने मन में जो भी मनोवांछित कार्य हो, वह उनसे बोल देना चाहिए। मान्यता है कि यह कार्य तुरंत पूर्ण होता है।

अत्यंत महत्वपूर्ण नोट: इस प्रकार की उग्र साधनाएँ अत्यंत गोपनीय होती हैं और इनमें ज़रा सी भी चूक साधक के लिए घातक सिद्ध हो सकती है। बिना किसी सिद्ध गुरु के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन और बिना रक्षा कवच धारण किए इस साधना को करना घोर निषिद्ध माना जाता है। इस लेख का उद्देश्य केवल जानकारी प्रदान करना है, न कि किसी को भी ऐसी साधना करने के लिए प्रेरित करना।

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