Baglamukhi mata mandir nalkheda : शत्रु नाश का अचूक मंत्र!

By NCI
On: October 22, 2025 5:02 PM
baglamukhi mata

Baglamukhi mata mandir nalkheda : माँ बगलामुखी हिंदू धर्म की दस महाविद्याओं में से एक अत्यंत प्रभावशाली और दिव्य देवी मानी जाती हैं। इन्हें “पीताम्बरा देवी” के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इनका स्वरूप पूर्णतः पीतवर्ण (पीला) आभामंडल से युक्त बताया गया है। पीला रंग शक्ति, स्थिरता और विजय का प्रतीक माना जाता है। देवी बगलामुखी को “स्तम्भन शक्ति” की अधिष्ठात्री कहा गया है — यानी वे दुष्ट शक्तियों, झूठ, छल और अन्याय को रोकने तथा निष्क्रिय करने की क्षमता रखती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब संसार में अधर्म बढ़ा और धर्म संकट में पड़ा, तब माँ बगलामुखी ने अपनी अद्भुत स्तम्भन शक्ति से अधर्म का अंत किया और धर्म की रक्षा की।

इनका स्वरूप अत्यंत प्रभावशाली है — एक हाथ में शत्रु की जिह्वा को पकड़ना और दूसरे में गदा धारण करना इस बात का प्रतीक है कि वे असत्य और अन्याय की जड़ को समाप्त कर सकती हैं। साधना परंपरा में इन्हें न्याय और विजय की देवी भी माना गया है। कहा जाता है कि जब कोई व्यक्ति सत्य के मार्ग पर होते हुए भी विरोधियों, झूठे आरोपों या नकारात्मक शक्तियों से घिर जाता है, तब माँ बगलामुखी की साधना उसके पक्ष को सशक्त बनाकर उसे सुरक्षा और मानसिक बल प्रदान करती है।

माँ बगलामुखी की साधना अत्यंत अनुशासित और गुप्त साधनाओं में से एक मानी जाती है। इसे पूर्ण श्रद्धा, संयम और शुद्ध उद्देश्य से किया जाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि देवी अपने उपासक के चारों ओर एक अदृश्य दिव्य कवच बना देती हैं, जिससे शत्रु की नकारात्मक शक्तियाँ निष्क्रिय हो जाती हैं और उसका हर अन्यायपूर्ण प्रयास विफल हो जाता है। विशेष रूप से न्यायालय या विवादों से जुड़े मामलों में साधक के पक्ष को मज़बूती मिलती है। इसीलिए माँ बगलामुखी साधना को “विजय और सुरक्षा की साधना” भी कहा जाता है।

माँ बगलामुखी का प्रसिद्ध शत्रुनाशक मंत्र — “ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा।” — प्राचीन काल से नकारात्मक शक्तियों को रोकने, अन्याय का प्रतिकार करने और न्याय में विजय की कामना हेतु जपा जाता है। परंपरा के अनुसार इस मंत्र का कुल 1.25 लाख (1,25,000) बार जप किया जाता है। साधक को स्वच्छ और शांत वातावरण में पीले वस्त्र धारण कर, माँ बगलामुखी के चित्र या यंत्र के सामने पीले आसन पर बैठकर नियमित रूप से जप करना चाहिए। जप के दौरान मन पूरी तरह केंद्रित और नीयत शुद्ध होनी चाहिए — साधना केवल सत्य, न्याय और रक्षा के लिए होनी चाहिए, किसी को हानि पहुँचाने के लिए नहीं। जब मंत्र जाप पूर्ण हो जाए तो उसका दशांश हवन किया जाता है, जिसमें चम्पा के फूलों का विशेष रूप से उपयोग किया जाता है। प्रत्येक स्वाहा के साथ चम्पा का एक फूल हवन में अर्पित कर मां से प्रार्थना की जाती है कि सभी अन्याय, विरोधी शक्तियां और शत्रु के कुतर्क स्तम्भित हो जाएं। धार्मिक परंपराओं में यह माना जाता है कि इस साधना से शत्रुओं पर नियंत्रण, नकारात्मक प्रभावों से सुरक्षा और विशेष रूप से विद्वानों का मानना है की न्यायालय के मामलों में विजय प्राप्त होती है। साधना के अंत में देवी को प्रसाद अर्पित कर आभार प्रकट किया जाता है। यह भी कहा गया है कि इस मंत्र का प्रभाव सबसे अधिक तब होता है जब इसे पूर्ण निष्ठा, संयम और श्रद्धा के साथ किया जाए। ऐसा माना जाता है कि मां बगलामुखी साधक की वाणी और पक्ष को मजबूत बनाती हैं तथा शत्रु के झूठ और अन्याय को रोक देती हैं।

माँ बगलामुखी की साधना जितनी शक्तिशाली मानी जाती है, उतनी ही गंभीरता और जिम्मेदारी से इसे करना भी आवश्यक है। यह साधना किसी को नुकसान पहुँचाने या बदला लेने के लिए नहीं होती, बल्कि केवल आत्मरक्षा, न्याय की स्थापना और धर्म के मार्ग की रक्षा के लिए की जानी चाहिए। शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि देवी की ऊर्जा का गलत उपयोग साधक के लिए स्वयं हानिकारक सिद्ध हो सकता है, इसलिए इसका दुरुपयोग कभी नहीं करना चाहिए। यह साधना अत्यंत गूढ़ और शक्तिशाली मानी जाती है, इसलिए इसे किसी अनुभवी गुरु या जानकार मार्गदर्शक के बिना नहीं करना चाहिए। गुरु की देखरेख में साधना करने से न केवल साधक सुरक्षित रहता है बल्कि साधना का प्रभाव भी सकारात्मक रूप से प्रकट होता है। इसके साथ ही साधक को सच्चाई, संयम, आचार और धर्म के मार्ग पर अडिग रहना चाहिए। मन, वाणी और कर्म की शुद्धता ही इस साधना की वास्तविक कुंजी है। जब साधना शुद्ध नीयत और धर्म के अनुरूप की जाती है, तब माँ बगलामुखी साधक के जीवन में विजय, आत्मबल और दिव्य सुरक्षा प्रदान करती हैं।

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