Vish Yog : ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की युति का हमारे जीवन पर बहुत गहरा असर पड़ता है, और इनमें से सबसे चर्चित और संवेदनशील युति है ‘विष योग’, जो कुंडली में शनि और चंद्रमा के एक साथ होने से बनता है। जब हम विष योग का नाम सुनते हैं, तो अक्सर मन में डर बैठ जाता है कि यह जीवन में जहर घोल देगा, लेकिन इसे समझने के लिए हमें पहले इन दोनों ग्रहों की प्रकृति को गहराई से जानना होगा। चंद्रमा हमारे मन, भावनाओं, माता और कोमलता का कारक है; यह पानी की तरह है जो हमेशा बहता रहना चाहता है और बहुत चंचल है। दूसरी ओर, शनि एक कठोर शिक्षक, अनुशासन, विरक्ति, धीमेपन और वास्तविकता का कारक है। जरा सोचिए, जब एक चंचल और भावुक ‘मन’ (चंद्रमा) के ऊपर ‘रुकावट और भारीपन’ (शनि) का पहरा बैठ जाए, तो क्या होगा? यही विष योग की मूल स्थिति है। यह योग व्यक्ति के जीवन में बाहरी घटनाओं से ज्यादा आंतरिक या मानसिक उथल-पुथल पैदा करता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में यह योग होता है, वह अक्सर भीड़ में भी खुद को अकेला महसूस करता है। यह ऐसा है जैसे मन की लहरों को किसी ने जंजीरों से बांध दिया हो, जिससे व्यक्ति अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त नहीं कर पाता और अंदर ही अंदर घुटता रहता है।
इस योग का सबसे गहरा प्रभाव व्यक्ति की मानसिक शांति और सोचने के तरीके पर पड़ता है। शनि का भारीपन चंद्रमा की कोमलता को दबाने की कोशिश करता है, जिसके कारण ऐसे लोग अक्सर निराशावादी सोच या डिप्रेशन (अवसाद) का शिकार जल्दी हो जाते हैं। छोटी-छोटी बातें भी उन्हें बहुत गहरी चोट पहुँचा सकती हैं। जहाँ एक सामान्य व्यक्ति किसी दुखद घटना को कुछ दिनों में भूलकर आगे बढ़ जाता है, वहीं विष योग वाला व्यक्ति उस बात को महीनों या सालों तक अपने दिल से लगाए रख सकता है। उनके दिमाग में एक ही विचार बार-बार घूमता रहता है, जिसे हम ‘ओवरथिंकिंग’ कहते हैं। वे भविष्य को लेकर बहुत ज्यादा चिंतित रहते हैं और उन्हें हमेशा यह डर सताता है कि कुछ बुरा होने वाला है। कई बार देखा गया है कि ऐसे लोग अपनी क्षमताओं पर शक करने लगते हैं। भले ही उनमें बहुत टैलेंट हो, लेकिन शनि का प्रभाव उन्हें यह महसूस कराता है कि वे काफी नहीं हैं या उन्हें सफलता बहुत देर से मिलेगी। बचपन में ऐसे बच्चों को अपनी माँ से किसी न किसी रूप में दूरी या भावनात्मक कमी का सामना करना पड़ सकता है, या हो सकता है कि उनकी माँ का स्वभाव बहुत सख्त या दुखी रहा हो, जिसका असर बच्चे के अवचेतन मन पर पड़ता है।
लेकिन, सिक्के का दूसरा पहलू देखना भी बहुत जरूरी है, क्योंकि ज्योतिष में कोई भी योग पूरी तरह से बुरा नहीं होता। विष योग, जिसे हम मानसिक कष्ट का कारण मानते हैं, वही योग दुनिया को सबसे महान चिंतक, दार्शनिक, लेखक और आध्यात्मिक गुरु भी देता है। जब शनि चंद्रमा को रोकता है, तो वह मन को बाहर भटकने से रोककर ‘भीतर’ की ओर देखने के लिए मजबूर करता है। यही कारण है कि विष योग वाले लोगों में गजब की गहराई (Depth) होती है। वे छिछली बातों या दिखावे में विश्वास नहीं करते। वे जीवन की सच्चाई को समझने की कोशिश करते हैं। अगर वे अपनी इस ऊर्जा को सही दिशा में लगा दें, तो वे बेहतरीन साइकोलॉजिस्ट, हीलर या योगी बन सकते हैं। उनका दर्द ही उनकी सबसे बड़ी ताकत बन जाता है, क्योंकि वे दूसरों के दुख-दर्द को इतनी गहराई से समझते हैं जितना कोई और नहीं समझ सकता। शिव की आराधना या ध्यान (Meditation) करना इनके लिए किसी चमत्कार से कम नहीं होता, क्योंकि यह उनके भारी मन को हल्का करने का काम करता है।
अंत में, अगर हम इसके समाधान और जीवन जीने के तरीके की बात करें, तो विष योग वाले व्यक्तियों को समझना होगा कि उनकी लड़ाई बाहर नहीं, बल्कि उनके अपने विचारों से है। उन्हें एकांत पसंद होता है, लेकिन बहुत ज्यादा अकेले रहने से बचना चाहिए क्योंकि खालीपन में शनि उनके मन को और ज्यादा उदास कर सकता है। इनके लिए सबसे सरल और प्रभावी उपाय है—कर्मठ बने रहना और सेवा करना। शनि ‘कर्म’ का कारक है, इसलिए जब व्यक्ति खुद को किसी काम में व्यस्त रखता है या निस्वार्थ भाव से गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करता है, तो शनि का नकारात्मक प्रभाव अपने आप कम होने लगता है। चांदी के गिलास में पानी पीना या सोमवार को शिव मंदिर में जल चढ़ाना, मन (चंद्रमा) को शांति देता है। जीवनसाथी या परिवार को भी यह समझना चाहिए कि ऐसे व्यक्ति को थोड़े ज्यादा भावनात्मक सहारे और धैर्य की जरूरत होती है। अगर वे अपनी भावनाओं को दबाने के बजाय उन्हें किसी कला, लेखन या रचनात्मक कार्य के जरिए बाहर निकालना सीख लें, तो यही ‘विष’ उनके जीवन में ‘अमृत’ समान अनुभव और परिपक्वता (Maturity) में बदल सकता है।
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