क्या भारत का प्रभाव उपमहाद्वीप से खत्म हो रहा है?

भारत के पड़ोसी देशों पर उसका प्रभाव घटता जा रहा है, जबकि चीन का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। इस परिवर्तन के कारण भारत के सामने कई चुनौतियाँ उत्पन्न हो गई हैं।

क्या भारत का प्रभाव उपमहाद्वीप से खत्म हो रहा है?
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भारत के पड़ोसी देशों के साथ संबंधों का महत्त्वपूर्ण विश्लेषण इस लेख में किया गया है। सबसे पहले, यह जानना आवश्यक है कि भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती उसके पड़ोसी देश हैं। हाल ही में जो घटनाएँ हुई हैं, वे इस प्रश्न को उठाती हैं कि क्या भारत का प्रभाव उपमहाद्वीप में कम हो रहा है। पहले एक समय था जब भारत का अच्छा खासा प्रभाव हुआ करता था, लेकिन अब स्थिति बदलती हुई दिखाई दे रही है।

भारत और बांग्लादेश के बीच 4000 किलोमीटर से भी अधिक लंबी सीमा है, जो दुनिया की सबसे लंबी सीमाओं में से एक है। हाल ही में बांग्लादेश के अंदर जो राजनीतिक घटनाएँ घट रही हैं, वे भारत के लिए चिंता का विषय बन गई हैं। दोनों देश इस बात को स्वीकार करते हैं कि सीमा की स्थिति को स्थिर बनाए रखना जरूरी है, लेकिन बांग्लादेश में मौजूदा राजनीतिक उथल-पुथल ने भारत की चिंताओं को बढ़ा दिया है।

दक्षिण एशिया, जिसे हम उपमहाद्वीप के रूप में जानते हैं, में भारत का प्रभाव एक समय में बेजोड़ था। लेकिन हाल के वर्षों में यह प्रभाव धीरे-धीरे घटता जा रहा है। विशेष रूप से, भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्रों में, जोकि सिलिगुरी कॉरिडोर के माध्यम से शेष भारत से जुड़े हुए हैं, राजनीतिक और सामाजिक समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं। उदाहरण के लिए, मणिपुर और मिजोरम जैसे राज्यों में आपसी संघर्ष बढ़ते जा रहे हैं।

नेपाल में, केपी ओली की सरकार, जो कि चीन के करीब मानी जाती है, के सत्ता में आने से भारत के लिए चुनौतियाँ बढ़ गई हैं। भूटान, जो हमेशा से भारत के साथ खड़ा रहा है, भी अब अपने संबंधों को चीन के साथ संतुलित करने की कोशिश कर रहा है। पिछले साल, भूटान के विदेश मंत्री की चीन यात्रा इस ओर इशारा करती है कि भूटान अब पूरी तरह से भारत पर निर्भर नहीं रहना चाहता।

श्रीलंका में भी स्थिति भारत के लिए जटिल होती जा रही है। हाल ही में, श्रीलंका में सरकार बदलने के बाद, भारत और श्रीलंका के संबंधों में तनाव देखने को मिला है। श्रीलंका में राजपक्षे बंधुओं की सरकार, जो कि चीन के प्रति झुकाव रखती थी, के सत्ता से हटने के बाद स्थिति में कुछ सुधार हुआ था, लेकिन कच्चा तीवू द्वीप को लेकर उठे मुद्दे ने फिर से विवाद पैदा कर दिया है।

मालदीव में भी, मौजूदा सरकार पूरी तरह से चीन समर्थक है, जिससे भारत की चिंताएँ और बढ़ गई हैं। इस संदर्भ में, बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार का बने रहना भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि वह चीनी प्रभाव को रोकने में मददगार साबित हो सकती थी। लेकिन वर्तमान स्थिति में, शेख हसीना की सरकार की स्थिति कमजोर होती जा रही है और यह भारत के लिए एक बड़ी समस्या बन गई है।

भारत ने बार-बार शेख हसीना को चेतावनी दी थी कि उनके देश में तख्ता पलट की संभावना है, और ऐसा होता दिख भी रहा है। कोविड-19 महामारी के बाद बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती ने जनता में असंतोष बढ़ा दिया, जो अब सड़कों पर प्रदर्शन कर रहा है। इसके अलावा, जमाते इस्लामी जैसे संगठनों ने भी इस मौके का फायदा उठाने की कोशिश की है।

भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि शेख हसीना को बांग्लादेश से बाहर निकलने के बाद कहाँ भेजा जाएगा। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, शेख हसीना भारत आई थीं और यहां से यूके जाने की योजना थी, लेकिन यूके ने उन्हें शरण देने से इंकार कर दिया। ऐसे में, अगर बांग्लादेश में नई सरकार आती है, तो वह भारत से शेख हसीना को वापस भेजने की मांग कर सकती है, जो भारत के लिए एक बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकती है।

भारत के लिए आवश्यक है कि वह अपने पड़ोसी देशों में अपनी पकड़ मजबूत बनाए और चीनी प्रभाव को कम करने के लिए ठोस कदम उठाए। वर्तमान में, भारत की विदेश नीति और उसके कूटनीतिक प्रयास इन चुनौतियों का सामना करने के लिए महत्वपूर्ण होंगे। अंत में, यह देखा जाना बाकी है कि भारत इन जटिलताओं को कैसे संभालता है और अपने प्रभाव को कैसे पुनः स्थापित करता है।

सामान्यं सर्वभूतेषु निर्बलस्य बलस्य च।
प्रभावेणैव मित्राणि शत्रवो वा भवन्ति हि॥

सभी प्राणियों में सामान्य रूप से यह देखा जाता है कि शक्तिशाली और निर्बल के बीच संबंध उनके प्रभाव के आधार पर ही मित्रता या शत्रुता में बदलते हैं। इस श्लोक का तात्पर्य है कि राष्ट्रों के बीच संबंध उनके प्रभाव और शक्ति पर आधारित होते हैं। इस आलेख में चर्चा की गई है कि कैसे भारत का प्रभाव उपमहाद्वीप में घटता जा रहा है और चीन का प्रभाव बढ़ रहा है। इसी के परिणामस्वरूप भारत के पड़ोसी देशों के साथ उसके संबंधों में परिवर्तन आ रहा है, जो इस श्लोक के अर्थ से मेल खाता है।