India ने चीन-पाक को किया समिट से बाहर!
India ने चीन और पाकिस्तान को वॉइस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट से बाहर रखकर अपनी सशक्त कूटनीतिक स्थिति का प्रदर्शन किया। आतंकवाद और उग्रवाद के खिलाफ भारत का सख्त रुख स्पष्ट हुआ।
India ने एक बार फिर अपनी दृढ़ता और स्पष्ट दृष्टिकोण का प्रदर्शन करते हुए चीन और पाकिस्तान के खिलाफ एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। यह कदम न केवल भारत की कूटनीतिक स्थिति को मजबूत करता है, बल्कि वैश्विक स्तर पर उसकी बढ़ती भूमिका और प्रभाव को भी उजागर करता है। वॉइस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट, जो कि भारत के नेतृत्व में आयोजित हुआ, उसमें चीन और पाकिस्तान को आमंत्रित नहीं किया गया। यह निर्णय विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दोनों देशों के प्रति भारत की नीतिगत स्थिति को स्पष्ट रूप से रेखांकित करता है।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने खुद इस निर्णय की जानकारी दी और इसे एक सोची-समझी रणनीति के हिस्से के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत अपने हितों की रक्षा के लिए किसी भी तरह के दबाव के आगे झुकने को तैयार नहीं है। इस समिट का आयोजन भारतीय नेतृत्व के तहत हुआ, जिसमें आतंकवाद, उग्रवाद और अन्य वैश्विक चुनौतियों पर चर्चा की गई। पीएम मोदी ने अपने उद्घाटन भाषण में आतंकवाद और उग्रवाद का खुलकर जिक्र किया, जो पाकिस्तान के लिए एक सीधा संदेश था कि भारत आतंकवाद के खिलाफ कोई नरमी नहीं बरतेगा।
पाकिस्तान को इस समिट में आमंत्रित न करने का कारण सभी के सामने स्पष्ट है। पाकिस्तान लंबे समय से आतंकवाद को प्रायोजित करता रहा है, और भारत ने इस बार भी उसके प्रति अपना कड़ा रुख बनाए रखा। आतंकवाद के मुद्दे पर पीएम मोदी ने जोर देकर कहा कि यह न केवल एक देश के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक गंभीर खतरा है। उन्होंने यह भी बताया कि किस प्रकार आतंकवाद पूरे विश्व में अस्थिरता फैलाने का काम करता है और इससे निपटने के लिए सभी देशों को एकजुट होकर काम करना होगा।
चीन को भी इस समिट में आमंत्रित नहीं किया गया, और इसके पीछे के कारण पर अटकलें लगाई जा रही हैं। हालांकि, भारत और चीन के बीच सीमा विवाद और अन्य कूटनीतिक मतभेदों को इसका मुख्य कारण माना जा रहा है। चीन, जो हमेशा खुद को ग्लोबल साउथ के देशों का नेता मानता आया है, उसके लिए यह एक बड़ा झटका साबित हुआ है। भारत के इस निर्णय ने चीन को यह संदेश दिया है कि वह अपनी आक्रामक नीतियों के बावजूद वैश्विक मंच पर सम्मान पाने का हकदार नहीं है।
समिट में भारत के सभी पड़ोसी देशों के प्रमुख शामिल हुए, जो कि चीन और पाकिस्तान के लिए और भी बड़ी बेइज्जती का कारण बना। यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि भारत ने अपने पड़ोसियों के साथ मजबूत और स्थायी संबंध स्थापित किए हैं, जबकि चीन और पाकिस्तान इस क्षेत्र में अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं। इस समिट में बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस ने भी हिस्सा लिया, जो कि चर्चा का विषय बना रहा।
पीएम मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत में उन मुद्दों पर बात की, जिनसे चीन और पाकिस्तान को तकलीफ हो सकती थी। उन्होंने सबसे पहले आतंकवाद की समस्या पर जोर दिया और इसे वैश्विक स्थिरता के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया। इसके बाद, उन्होंने G20 का जिक्र किया और कहा कि भारत ने ग्लोबल साउथ की अपेक्षाओं, आकांक्षाओं और प्राथमिकताओं के आधार पर एजेंडा बनाया है। यह बात निश्चित रूप से चीन और पाकिस्तान को चुभने वाली थी, क्योंकि यह उनके उस दावे को चुनौती देती है जिसमें वे खुद को इस क्षेत्र के प्रमुख राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस समिट में बहु-देशीय वैश्विक संस्थानों में बदलाव की जोरदार मांग रखी। उन्होंने कहा कि अगर हमें इन संस्थानों की साख बनाए रखनी है, तो इनमें शीघ्रता से बदलाव करना होगा। उन्होंने इसे विकासशील और गरीब देशों के भविष्य की प्रगति से जोड़कर प्रस्तुत किया। यह एक महत्वपूर्ण पहल थी, जो दिखाती है कि भारत न केवल अपने लिए, बल्कि पूरे ग्लोबल साउथ के लिए एक जिम्मेदार नेता के रूप में उभर रहा है।
चीन, जो हमेशा ग्लोबल साउथ के देशों में खुद को अग्रणी के रूप में प्रस्तुत करता रहा है, उसे इस बार भारत के कदमों से भारी नुकसान हुआ है। भारत ने इस बार ग्लोबल डेवलपमेंट कंपैक्ट का प्रस्ताव रखा और 2.5 मिलियन डॉलर के फंड की घोषणा की, जो कि एक बड़ा कदम माना जा रहा है। यह फंड ग्लोबल साउथ के देशों के विकास और प्रगति के लिए इस्तेमाल किया जाएगा, और यह दिखाता है कि भारत अपने साथ-साथ अपने पड़ोसियों और अन्य विकासशील देशों के विकास के लिए भी प्रतिबद्ध है।
लेकिन इससे भी बड़ी बात यह रही कि भारत ने चीन और पाकिस्तान को उनकी असली स्थिति दिखाते हुए जो कदम उठाया, वह उन दोनों देशों के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ है। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी भी तरह के आक्रामक व्यवहार या आतंकवाद के समर्थन को बर्दाश्त नहीं करेगा। इस समिट ने यह भी साबित किया है कि भारत की कूटनीतिक स्थिति न केवल मजबूत है, बल्कि वह वैश्विक मंच पर अपनी आवाज को प्रमुखता से उठाने में भी सक्षम है।
भारत का यह कदम वैश्विक मंच पर उसकी सशक्त स्थिति को दर्शाता है। यह दिखाता है कि भारत अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करेगा और वह वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को और मजबूत करता रहेगा। इस समिट ने न केवल भारत की कूटनीतिक जीत के रूप में अपनी पहचान बनाई है, बल्कि यह भी साबित किया है कि भारत अपने हितों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। चीन और पाकिस्तान के लिए यह एक कड़ा संदेश है कि भारत अब एक सशक्त और स्वाभिमानी राष्ट्र है, जो किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है।
इस समिट के माध्यम से भारत ने यह भी साबित किया है कि वह न केवल अपने लिए, बल्कि पूरे ग्लोबल साउथ के लिए एक जिम्मेदार और प्रभावशाली नेता के रूप में उभर रहा है। चीन और पाकिस्तान के लिए यह समय है कि वे अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करें और समझें कि आक्रामकता और आतंकवाद के समर्थन से उन्हें कुछ हासिल नहीं होने वाला। भारत के इस कदम से यह भी स्पष्ट हो गया है कि वह अपनी कूटनीतिक स्थिति को और मजबूत करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।
भारत ने इस समिट के माध्यम से अपने पड़ोसियों और अन्य विकासशील देशों के साथ एकजुटता का संदेश दिया है। यह दिखाता है कि भारत न केवल अपने लिए, बल्कि पूरे ग्लोबल साउथ के लिए एक जिम्मेदार और प्रभावशाली नेता के रूप में उभर रहा है। यह समिट भारत की कूटनीतिक स्थिति को और मजबूत करेगा और उसे वैश्विक मंच पर एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करेगा।
इस समिट ने यह भी साबित किया है कि भारत अब एक सशक्त और स्वाभिमानी राष्ट्र है, जो किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है। यह चीन और पाकिस्तान के लिए एक कड़ा संदेश है कि भारत अब अपनी स्थिति से कोई समझौता नहीं करेगा और वह अपने हितों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।
अंततः, भारत ने इस समिट के माध्यम से यह साबित किया है कि वह न केवल अपने लिए, बल्कि पूरे ग्लोबल साउथ के लिए एक जिम्मेदार और प्रभावशाली नेता के रूप में उभर रहा है। यह समिट भारत की कूटनीतिक स्थिति को और मजबूत करेगा और उसे वैश्विक मंच पर एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करेगा।
वीरं विनिन्दति सदा दुष्कृतं यस्य वैरी,
प्रतिकारं न व्रजति स वीरं वन्दते च लोक:।
धर्मस्थापनाय च वीरता सम्प्रदायते,
तस्मात् वीरं यशस्विनं नमामि सर्वदा॥
जो व्यक्ति सदा धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने वाले वीर को निंदा करता है, वह स्वयं दुष्कर्मों का अनुयायी होता है। किन्तु जो वीर अपने कर्तव्य से विचलित नहीं होता, उसे संसार नमन करता है। ऐसे वीर के साहस और पराक्रम से धर्म की स्थापना होती है। इसलिए मैं सदैव उस यशस्वी वीर को नमन करता हूँ। यह श्लोक भारत के कूटनीतिक पराक्रम और दृढ़ता का प्रतीक है, जो उसने चीन और पाकिस्तान के सामने दिखाया है। भारत ने अपने धर्म और सत्य के मार्ग पर चलते हुए इन दोनों देशों को उनकी गलतियों का अहसास कराया है। इसी साहस और वीरता के कारण भारत को वैश्विक मंच पर सम्मान और यश मिला है।