कश्मीर के महान योद्धा ललितादित्य मुक्तपीड
ललितादित्य मुक्तपीड का जीवन एक अत्यंत प्रेरणादायक कथा है। वह कारकोटा वंश के पांचवें शासक थे, जिन्होंने 724 से 761 ईस्वी तक शासन किया। उनका जन्म दुर्लभ वर्धन के सबसे छोटे बेटे के रूप में हुआ था। दुर्लभ वर्धन ने 625 ईस्वी में कारकोटा वंश की स्थापना की थी। ललितादित्य के दो बड़े भाई चंद्रपीड़ा और तारपीड़ा भी कश्मीर के राजा थे। जब ललितादित्य राजा बने, तब कश्मीर अरबों, तिब्बतियों और कई अन्य विदेशी शक्तियों के हमलों का सामना कर रहा था।
ललितादित्य का शासनकाल 36 वर्षों तक चला, जिसमें उन्होंने कश्मीर को एक शक्तिशाली राज्य में परिवर्तित किया। उनकी वीरता और बुद्धिमत्ता का वर्णन कश्मीर की ऐतिहासिक पुस्तक, राजतरंगिणी में विस्तार से किया गया है, जिसे 12वीं सदी में कल्हण ने लिखा था। इसके अलावा, उनके जीवन का वर्णन चाइनीज टैंग राजवंश की पुस्तकों में भी मिलता है, जहां उन्हें मुद्रा उबी या मुक्ता पीड़ा के नाम से जाना जाता है। पर्शियन क्रॉनिकल अल बूनी भी उनका उल्लेख करते हैं, जहां उन्हें मुताई कहा जाता है।
ललितादित्य ने कई युद्ध लड़े और जीते। उन्होंने सबसे पहले चाइनीज टैंग राजवंश के साथ गठबंधन किया और तिब्बतियों को हराने में सफलता प्राप्त की। तिब्बत और चाइना के बीच टकराव के समय ललितादित्य ने टैंग राजवंश को समर्थन देने का प्रस्ताव दिया, और इस तरह तिब्बत और टैंग के बीच संघर्ष में टैंग का समर्थन किया। उन्होंने अरबों का भी सामना किया, जिन्होंने मोहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में भारत पर आक्रमण किया था। ललितादित्य ने अरबों को हराया और उन्हें वापस धकेल दिया।
ललितादित्य ने कन्नौज के राजा यशोवर्मन को हराया और उनका राज्य कन्नौज पर अधिकार कर लिया। उन्होंने पूर्वी समुद्र (उड़ीसा) की ओर भी विजय प्राप्त की और वहां के गजपति वंश को पराजित किया। दक्षिण में उन्होंने चालुक्य और राष्ट्रकूट वंशों को पराजित किया। उनके साम्राज्य की सीमा उत्तर में अफगानिस्तान, पाकिस्तान, तुर्किस्तान, उज्बेकिस्तान, तिब्बत से लेकर दक्षिण में कर्नाटक और पश्चिम में कच्छ तक फैली हुई थी।
ललितादित्य केवल एक महान योद्धा ही नहीं थे, बल्कि वे एक विद्वान और कला प्रेमी भी थे। उन्होंने कई धार्मिक स्थलों का निर्माण किया, जिनमें प्रमुख रूप से मार्तंड सूर्य मंदिर, विष्णु मंदिर, और बौद्ध विहार शामिल हैं। उन्होंने अपने राज्य में नहर प्रणाली भी स्थापित की ताकि जल आपूर्ति सुनिश्चित हो सके। उनके द्वारा बनाए गए मंदिर और विहार आज भी कश्मीर की सांस्कृतिक धरोहर के महत्वपूर्ण हिस्से हैं।
ललितादित्य ने अपने शासनकाल में कई सार्वजनिक कार्य किए। उन्होंने सुनिश्चित पुर, दर पितापुर और परनोक्स जैसे शहरों का निर्माण किया। परिहास पुर, जो कश्मीर के एक महत्वपूर्ण क्षेत्र था, में भी उन्होंने कई निर्माण कार्य किए। उन्होंने झेलम नदी पर बाढ़ नियंत्रण के लिए नहर प्रणाली स्थापित की, जिससे कृषि और जल आपूर्ति में सुधार हुआ। ललितादित्य का शासनकाल कश्मीर के लिए स्वर्णिम युग था। उन्होंने कश्मीर को एक समृद्ध और शक्तिशाली राज्य बनाया। उनकी मृत्यु के दो प्रमुख कारण बताए जाते हैं: एक तो यह कि वे युद्ध के दौरान बर्फबारी में फंस गए और दूसरे यह कि उन्होंने आत्महत्या कर ली। हालांकि, आत्महत्या की संभावना कम मानी जाती है, क्योंकि वे एक वीर योद्धा थे। उनकी मृत्यु के बाद कारकोटा वंश का पतन शुरू हो गया और उनका साम्राज्य धीरे-धीरे कमजोर हो गया।
ललितादित्य की कहानी हमें साहस, बुद्धिमत्ता और नेतृत्व के महत्व को सिखाती है। उनका जीवन हमें प्रेरणा देता है कि कैसे कठिन परिस्थितियों में भी अपनी शक्ति और संकल्प से विजय प्राप्त की जा सकती है। उनकी वीरता और रणनीतिक कौशल ने उन्हें इतिहास में एक महान योद्धा और शासक के रूप में स्थापित किया।
ललितादित्य मुक्तापीड़ा का जीवन एक अत्यंत प्रेरणादायक कथा है, जिसमें एक महान योद्धा, कश्मीर के सिकंदर, ने अपनी वीरता और बुद्धिमत्ता से इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया। उनका जीवन कश्मीर के लिए एक स्वर्णिम युग था और उनकी उपलब्धियां आज भी कश्मीर की सांस्कृतिक धरोहर के महत्वपूर्ण हिस्से हैं।
ललितादित्यः सर्वजीतः कश्मीरसिंहः।
विजयी नृपः धर्मिष्ठः प्रजाहितकारकः॥
ललितादित्य, जो कश्मीर के सिंह थे, सर्वत्र विजय प्राप्त करने वाले, धर्मप्रिय और प्रजाहित में तत्पर नरेश थे। यह श्लोक ललितादित्य मुक्तापीड़ा के जीवन और उनकी उपलब्धियों का वर्णन करता है। वह कश्मीर के महान योद्धा और धर्मपरायण राजा थे जिन्होंने अपने शासनकाल में अद्वितीय विजय और धर्म की स्थापना की।