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धूमावती देवी को लेकर अनेक मान्यताएँ और धारणाएँ प्रचलित हैं, जिनमें से कुछ रहस्यमय और चमत्कारी भी मानी जाती हैं। धार्मिक ग्रंथों में धूमावती माता को विधवा देवी के रूप में दर्शाया गया है और इन्हें अशुभ रूप माना जाता है। आमतौर पर यह माना जाता है कि सुहागिन महिलाएँ माता धूमावती के दर्शन नहीं करतीं और न ही उन्हें सिंदूर अर्पित किया जाता है। लेकिन असम के गुवाहाटी स्थित नीलांचल पर्वत में एक ऐसा अनोखा मंदिर है जहाँ माता धूमावती को सिंदूर अर्पित किया जाता है और सुहागिन स्त्रियाँ भी उनके दर्शन कर सकती हैं। यह मान्यता आम धार्मिक विचारों से भिन्न है और यह मंदिर अपनी विशेष परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है।
धूमावती देवी दस महाविद्याओं में से सातवीं महाविद्या मानी जाती हैं। शास्त्रों के अनुसार, इन्हें एक विधवा, कुरूप और अशुभ देवी के रूप में दर्शाया गया है, लेकिन इनकी पूजा-आराधना से कई लाभ भी होते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि माता धूमावती के कोई भैरव (सुरक्षक देवता) नहीं हैं, क्योंकि वे विधवा देवी मानी जाती हैं। लेकिन कुछ अन्य परंपराओं के अनुसार, माता धूमावती का एक भैरव भी है, जिसे ‘धूमावती भैरव’ कहा जाता है। माता धूमावती का स्वरूप दर्शाता है कि एक स्त्री बिना किसी के सहारे भी पूर्ण और आत्मनिर्भर हो सकती है। यह देवी नारी शक्ति के उस रूप को प्रकट करती हैं, जो किसी अन्य शक्ति पर निर्भर नहीं होती, बल्कि स्वयं में ही संपूर्ण होती है। इसलिए माता धूमावती को केवल अशुभ या विधवा मानना उचित नहीं होगा, बल्कि वे निडरता और आत्मनिर्भरता का भी प्रतीक हैं।
गुवाहाटी के कामरूप कामाख्या क्षेत्र में स्थित धूमावती देवी का यह मंदिर अपने आप में बहुत खास है। आमतौर पर देवी धूमावती को अशुभ माना जाता है और उनकी पूजा तांत्रिक साधना के लिए की जाती है, लेकिन इस मंदिर में माता की पूजा सुहागिन स्त्रियाँ भी कर सकती हैं और उन्हें सिंदूर चढ़ाने की परंपरा भी है। कामाख्या शक्तिपीठ के ठीक पीछे स्थित इस मंदिर तक जाने के लिए भैरवी माता मंदिर के मार्ग से गुजरना पड़ता है। मंदिर की इस विशेष परंपरा ने इसे अन्य देवी मंदिरों से अलग पहचान दिलाई है।
धूमावती देवी का संबंध ज्योतिष शास्त्र से भी जोड़ा जाता है। यह माना जाता है कि माता धूमावती केतु ग्रह (Ketu Grah) का प्रतिनिधित्व करती हैं और उसे नियंत्रित करती हैं। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में केतु ग्रह अशुभ स्थिति में हो या कोई ग्रह बाधा उत्पन्न कर रहा हो, तो माता धूमावती की पूजा, हवन और साधना से इस ग्रह की नकारात्मकता को दूर किया जा सकता है। इस कारण से कई तांत्रिक और साधक माता धूमावती की उपासना को अनिवार्य मानते हैं और इसे विशेष रूप से महत्वपूर्ण बताते हैं।
धूमावती देवी की पूजा विधि भी अन्य देवी-देवताओं की पूजा से अलग होती है। उनकी उपासना अधिकतर रात्रि में की जाती है और विशेष तांत्रिक अनुष्ठानों के दौरान उनकी साधना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि माता धूमावती की कृपा प्राप्त करने के लिए साधक को संयम और नियमों का विशेष पालन करना पड़ता है। देवी की आराधना करने से शत्रु बाधा, रोग, आर्थिक समस्याएँ और मानसिक अशांति दूर हो सकती है। विशेष रूप से, जिन लोगों को बार-बार असफलताओं का सामना करना पड़ता है या जीवन में अवरोध महसूस होता है, वे माता धूमावती की आराधना से राहत पा सकते हैं।
असम के इस मंदिर में धूमावती माता की पूजा एक अनूठी परंपरा के अनुसार की जाती है। यहाँ पर हर साल विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। इस मंदिर की मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु पूरी श्रद्धा से माता के दर्शन करता है और उनकी पूजा करता है, उसके जीवन में आने वाली रुकावटें दूर हो जाती हैं। खासतौर पर, वे महिलाएँ जो संतान सुख की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करती हैं या जिनके वैवाहिक जीवन में कठिनाइयाँ होती हैं, वे यहाँ आकर विशेष अनुष्ठान करती हैं।
धूमावती माता को लेकर कई लोगों के मन में भय भी रहता है, क्योंकि इन्हें विधवा और अशुभ देवी के रूप में देखा जाता है। लेकिन असल में, माता का यह स्वरूप जीवन के उस सत्य को दर्शाता है, जिसमें हर स्त्री अपनी शक्ति को पहचानती है और किसी के सहारे के बिना भी पूर्णता को प्राप्त कर सकती है। माता धूमावती यह संदेश देती हैं कि संघर्षों से घबराने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि उनका डटकर सामना करना चाहिए।
अंततः, माता धूमावती के इस मंदिर का रहस्य और अनूठापन इसे अन्य शक्ति पीठों से अलग बनाता है। यहाँ की परंपराएँ न केवल धार्मिक आस्थाओं को चुनौती देती हैं, बल्कि यह भी दर्शाती हैं कि समाज में देवी पूजा की धारणाएँ समय के साथ बदल सकती हैं। असम के इस मंदिर में माता की भक्ति करने वाले श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या यह प्रमाणित करती है कि धूमावती देवी को केवल अशुभ मानना उचित नहीं, बल्कि वे एक ऐसी शक्ति हैं जो कठिन परिस्थितियों में भी अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और उन्हें आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा देती हैं।