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Devaraha Baba |
भारत की पावन भूमि पर समय-समय पर कई महान संत और महापुरुष अवतरित होते रहे हैं, जिन्होंने न केवल अध्यात्म की शक्ति को प्रमाणित किया, बल्कि अपनी दिव्य सिद्धियों से समाज को मार्गदर्शन भी दिया। ऐसे ही एक चमत्कारी संत थे ब्रह्मर्षि देवराहा बाबा, जिन्हें लोग साक्षात् दिव्य पुरुष मानते थे। वे योग और तपस्या की उच्चतम सीमा को प्राप्त कर चुके थे। कहते हैं कि उनकी उम्र सैकड़ों वर्षों की थी और वे जल में समाधि लगाने की अद्भुत क्षमता रखते थे।
बाबा के जीवन का कोई ठोस दस्तावेजी प्रमाण नहीं है, लेकिन माना जाता है कि उन्होंने हिमालय में वर्षों तक कठोर तपस्या की। वे सरयू नदी के तट पर एक लकड़ी के मचान पर निवास करते थे, और लोग दूर-दूर से उनके दर्शन करने आते थे। उनकी सिद्धियों और आध्यात्मिक ऊंचाई के कारण उन्हें देवता तुल्य माना जाता था। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी तक को आशीर्वाद दिया था।
बाबा की सिद्धियों की चर्चा केवल भारत तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि इंग्लैंड के राजा जॉर्ज पंचम तक भी उनके चमत्कारों की गूंज पहुंची थी। कहा जाता है कि जब जॉर्ज पंचम भारत आए, तो उन्होंने अपने सलाहकारों से पूछा कि यदि वे किसी एक भारतीय संत से मिलना चाहें, तो वे कौन हों? उन्हें उत्तर मिला कि देवराहा बाबा से अवश्य मिलिए। राजा उनसे मिलने आए, लेकिन उनकी बातचीत का विवरण आज भी रहस्य बना हुआ है।
देवराहा बाबा केवल एक संत ही नहीं, बल्कि एक रहस्यमयी चमत्कारी पुरुष भी थे। उनके बारे में कहा जाता है कि वे बिना किसी वाहन के एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंच जाते थे। किसी ने उन्हें यात्रा करते हुए नहीं देखा, लेकिन वे हर कुंभ मेले में निश्चित समय पर अपने स्थान पर उपस्थित हो जाते थे। उनके अनुयायियों का मानना था कि उन्होंने खेचरी मुद्रा सिद्ध कर ली थी, जिससे वे अपने शरीर पर पूर्ण नियंत्रण रखते थे।
एक बार की घटना है जब कुंभ मेले में एक हाथी पागल हो गया और वहां आए श्रद्धालुओं के लिए खतरा बन गया। प्रशासन ने आदेश दिया कि यदि हाथी शांत नहीं हुआ, तो उसे गोली मार दी जाएगी। तब एक पुलिस अधिकारी ने देवराहा बाबा से प्रार्थना की। बाबा ने कहा कि हाथी को गोली मारने की जरूरत नहीं है, बस उसे मेरे प्रसाद का एक टुकड़ा खिला दो। अधिकारी ने वैसा ही किया और देखते ही देखते वह हाथी शांत हो गया। इस घटना से लोग आश्चर्यचकित रह गए।
बाबा की महानता केवल उनकी चमत्कारिक शक्तियों तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि वे प्रेम, करुणा और सेवा के प्रतीक भी थे। वे अक्सर कहते थे कि संसार में सभी जीव एक समान हैं, और यही कारण था कि वे किसी भी प्राणी की हानि के खिलाफ थे। जब एक बार वृंदावन के उनके आश्रम में एक अघोरी ने आतंक मचाने की कोशिश की, तो बाबा ने अपने शांत स्वभाव से उसे वश में कर लिया। वह अघोरी, जो पहले बाबा के शिष्यों को डराने की कोशिश कर रहा था, बाबा को देखते ही घुटनों के बल गिर पड़ा और उन्हें साक्षात् भगवान मानने लगा।
देवराहा बाबा का राजनीति से भी गहरा संबंध था। कई बड़े राजनेता उनके आशीर्वाद के लिए उनके पास आते थे। कहा जाता है कि 1977 में जब इंदिरा गांधी चुनाव हार गई थीं, तब वे बाबा के पास गईं और उनसे आशीर्वाद मांगा। बाबा ने उन्हें हाथ से आशीर्वाद दिया, जबकि आमतौर पर वे पैर से आशीर्वाद दिया करते थे। इंदिरा गांधी ने इसे संकेत के रूप में लिया और अपनी पार्टी का चुनाव चिह्न ‘हाथ का पंजा’ रखा। बाद में 1980 में जब चुनाव हुए, तो इंदिरा गांधी ने प्रचंड बहुमत से वापसी की।
बाबा की शक्ति का प्रभाव केवल राजनीति तक ही सीमित नहीं था, बल्कि फिल्म जगत में भी उनकी प्रसिद्धि थी। 1982 में जब अमिताभ बच्चन कुली फिल्म की शूटिंग के दौरान गंभीर रूप से घायल हो गए थे, तब उनके ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं थी। कहा जाता है कि इंदिरा गांधी ने बाबा से प्रार्थना की, और बाबा ने उन्हें एक विशेष प्रसाद बनाकर भेजा, जिसे अमिताभ बच्चन के तकिए के नीचे रखा गया। कुछ ही दिनों बाद अमिताभ बच्चन की तबीयत में सुधार होने लगा।
बाबा की जीवनशैली अत्यंत सरल थी। वे ना तो किसी प्रकार की संपत्ति रखते थे, और ना ही किसी प्रकार की भौतिक इच्छाओं में लिप्त थे। वे अपने मचान पर रहते थे और जल, फल एवं शहद का सेवन करते थे। वे पेड़-पौधों और प्रकृति के प्रति भी अत्यंत संवेदनशील थे। एक बार जब प्रशासन ने उनके आश्रम के पास एक पेड़ की डाल काटने की योजना बनाई, तो बाबा ने इसे सख्ती से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि यह पेड़ भी एक जीव है और इसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। आश्चर्य की बात यह थी कि जिस दिन उस पेड़ को काटने की योजना बनी थी, उसी दिन प्रधानमंत्री का कार्यक्रम अचानक रद्द हो गया।
राम मंदिर आंदोलन में भी बाबा की भूमिका महत्वपूर्ण थी। 1979 में प्रयागराज के महाकुंभ में उन्होंने विश्व हिंदू परिषद के मंच से कहा था कि ‘गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाना आवश्यक है’ और राम मंदिर निर्माण की आवश्यकता भी बताई थी। जब राम मंदिर आंदोलन तेज हुआ, तब बाबा के समर्थकों ने इसे एक दिव्य संकल्प के रूप में लिया। 1992 में जब बाबरी विध्वंस की घटना घटी, तो लिब्रहान आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बाबा को भी मुख्य आरोपी बताया, जबकि बाबा 1990 में ही ब्रह्मलीन हो चुके थे।
बाबा की मृत्यु भी एक रहस्यमय घटना थी। कहा जाता है कि उन्होंने अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी पहले ही कर दी थी। 19 जून 1990 को योगिनी एकादशी के दिन, जब आकाश में बादल छा गए और यमुना नदी की लहरें बेचैन होने लगीं, तभी बाबा ने अपना शरीर त्याग दिया। 21 जून को उनकी जल समाधि दी गई, और संयोगवश आज वही दिन ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
योगेन चित्तस्य पदेन वाचा, मलं शरीरस्य च वैद्यकेन।
योऽपाकरोत्तं प्रवरं मुनीनां, तं देवराहं प्रणतोऽस्मि नित्यं॥
योग द्वारा चित्त को शुद्ध करने वाले, वाणी से सत्य का प्रचार करने वाले, और शरीर को रोग मुक्त करने वाले महान संत देवराहा बाबा को मैं नमन करता हूँ। यह श्लोक देवराहा बाबा के जीवन और शिक्षाओं को दर्शाता है। वे योग के परम सिद्ध महायोगी थे, जिनकी आध्यात्मिक शक्ति से लोग प्रभावित होते थे। उनकी वाणी में सत्य और आशीर्वाद की शक्ति थी, जो राजनेताओं से लेकर आम जनता तक को मार्गदर्शन प्रदान करती थी। उनका संपूर्ण जीवन तपस्या, सेवा और योग साधना का प्रतीक था। वे सच्चे अर्थों में भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता के प्रतीक थे। उनका जीवन हमें सिखाता है कि साधना और सेवा के माध्यम से कोई भी व्यक्ति असाधारण ऊंचाइयों तक पहुंच सकता है। उनके दिव्य कार्यों और शिक्षाओं के कारण वे आज भी लाखों भक्तों के हृदय में जीवित हैं।