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Shocking Secrets from Garuda Purana! |
मृत्यु के रहस्यों को समझना हमेशा से मानव जाति के लिए एक गूढ़ विषय रहा है। हिंदू धर्म में इस विषय पर गहरी व्याख्या की गई है, खासकर गरुड़ पुराण में, जहां यह बताया गया है कि आत्मा मृत्यु के बाद किस प्रकार की यात्रा करती है और उसे किन अनुभवों से गुजरना पड़ता है। इसी विषय को समझाने के लिए एक कथा का उल्लेख किया जाता है, जो महान चक्रवर्ती सम्राट राजा भरत के पुनर्जन्म की कहानी बताती है। राजा भरत, जो सांसारिक मोह-माया को त्यागकर मोक्ष प्राप्ति के लिए संन्यासी बने थे, एक हिरण के प्रति इतना आकर्षित हो गए कि यह मोह उनके अगले जन्म पर भी प्रभाव डाल गया। अपनी मृत्यु के समय वह हिरण के बारे में सोच रहे थे, जिसके कारण उनका अगला जन्म भी एक हिरण के रूप में हुआ। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि मृत्यु के समय हमारे विचार ही हमारे अगले जीवन की नींव रखते हैं।
गरुड़ पुराण के अनुसार, जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो उसके शरीर की सभी इंद्रियां धीरे-धीरे काम करना बंद कर देती हैं। वह बोलने की कोशिश करता है, परंतु उसके मुंह से कोई शब्द नहीं निकल पाता। इस दौरान उसे दो यमदूत नजर आते हैं, जिनका चेहरा अत्यंत भयानक होता है। उनके नाखून तेज और हथियार जैसे होते हैं, उनकी आंखें बड़ी और डरावनी होती हैं। यह दृश्य इतना भयानक होता है कि मरने वाले व्यक्ति का भय के कारण मल-मूत्र तक निकल जाता है। इसके बाद, उसकी आत्मा, जो अंगूठे के आकार की होती है, शरीर से बाहर निकलती है और यमदूत उसे पकड़कर यमलोक की यात्रा पर ले जाते हैं।
इस यात्रा में आत्मा को कई तरह की यातनाओं से गुजरना पड़ता है, खासकर यदि उसने अपने जीवन में पाप किए हों। गरुड़ पुराण के अनुसार, यमलोक तक पहुंचने के चार द्वार होते हैं, जिनमें पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण द्वार शामिल हैं। पूर्व द्वार से उन्हीं आत्माओं को प्रवेश मिलता है, जिन्होंने धर्म और साधना का पालन किया हो। इस द्वार से गुजरने वाली आत्माओं का स्वागत देवताओं और अप्सराओं द्वारा किया जाता है। पश्चिम द्वार भी उन्हीं के लिए है, जिन्होंने पुण्य किए हों और तीर्थ स्थानों पर अपने प्राण त्यागे हों। उत्तर द्वार से वे आत्माएं प्रवेश करती हैं, जिन्होंने माता-पिता की सेवा की हो और सदा सत्य का पालन किया हो। इन तीन द्वारों से गुजरने वाली आत्माओं का सफर आरामदायक होता है। लेकिन चौथा, यानी दक्षिण द्वार सबसे भयावह माना जाता है। इस द्वार से केवल पापी आत्माओं को ले जाया जाता है, और उनके लिए यह यात्रा अत्यंत पीड़ादायक होती है।
गरुड़ पुराण में यह भी बताया गया है कि यमदूत पापी आत्माओं को यात्रा के दौरान एक क्षण के लिए भी आराम नहीं करने देते। वे उन्हें लगातार यातनाएं देते रहते हैं, जिसमें जलती हुई रेत पर चलाना, गर्म हवा के थपेड़ों से झुलसाना, भूखा-प्यासा रखना और चाबुक से मारना शामिल है। जब आत्मा बेहोश होकर गिरती है, तो भी उसे उठाकर यात्रा जारी रखने के लिए मजबूर किया जाता है। इस पूरी यात्रा के दौरान आत्मा यमराज से विनती करती है कि उसे छोड़ दिया जाए, परंतु उसके कर्मों के आधार पर ही उसे न्याय मिलता है।
गरुड़ पुराण में मृत्यु के बाद किए जाने वाले पिंडदान की आवश्यकता को भी बताया गया है। कहा जाता है कि जब आत्मा यमलोक की यात्रा पर होती है, तो उसे अपने पिछले कर्मों के शुभ और अशुभ फलों का अनुभव करना पड़ता है। इस दौरान परिवार द्वारा किए गए पिंडदान से आत्मा को थोड़ी राहत मिलती है। पहले दिन के पिंडदान से आत्मा का सिर, दूसरे दिन गर्दन और कंधे, तीसरे दिन हृदय, चौथे दिन पीठ, पांचवें दिन नाभि, छठे दिन कमर और सातवें दिन पैरों का निर्माण होता है। आठवें दिन आत्मा को भूख और नौवें दिन प्यास लगने लगती है। इस प्रकार, दसवें दिन आत्मा का पूरा पिंड शरीर बन जाता है। ग्यारहवें और बारहवें दिन पिंडदान से आत्मा भोजन प्राप्त करती है और फिर यमदूत उसे पकड़कर यमलोक ले जाते हैं।
यमलोक पहुंचने के बाद आत्मा के कर्मों का हिसाब किया जाता है। जिन लोगों ने अपने जीवन में अच्छे कर्म किए होते हैं, उन्हें स्वर्ग में स्थान मिलता है, जहां वे सुख-शांति से रहते हैं। लेकिन जिनका जीवन पापमय रहा होता है, उन्हें नर्क की यातनाओं से गुजरना पड़ता है। गरुड़ पुराण के अनुसार, नर्क में कई प्रकार की यातनाएं दी जाती हैं, जिनमें खौलते तेल में डाला जाना, नुकीले कांटों पर चलाया जाना, आग में जलाना और जंगली जानवरों से कटवाया जाना शामिल है। इन यातनाओं का उद्देश्य आत्मा को उसके कर्मों का फल देना और उसे भविष्य में अच्छे कर्म करने के लिए प्रेरित करना होता है।
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, मृत्यु केवल एक अंत नहीं बल्कि एक नए जीवन की शुरुआत होती है। आत्मा अमर होती है और यह केवल एक शरीर से दूसरे शरीर में स्थानांतरित होती है। जो लोग अपने जीवन में अच्छे कर्म करते हैं, वे मोक्ष प्राप्त कर जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। लेकिन जो लोग पापों में लिप्त रहते हैं, उन्हें इस चक्र में बार-बार जन्म लेना पड़ता है और अपने कर्मों का फल भुगतना पड़ता है। इसीलिए, गरुड़ पुराण में अच्छे कर्म करने और धर्म के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी गई है, ताकि मृत्यु के बाद आत्मा को कष्टों का सामना न करना पड़े।
“कर्मणा जायते जन्तुः कर्मणैव विपद्यते।
कर्मणैव प्रलीयेत कर्मणैव गतिः सती॥”
प्राणी अपने कर्मों के कारण जन्म लेता है, कर्मों के कारण दुख भोगता है, कर्मों के कारण नष्ट होता है और कर्मों के आधार पर ही उसकी गति (पुनर्जन्म या मोक्ष) तय होती है। यह श्लोक गरुड़ पुराण के सिद्धांतों को स्पष्ट करता है, जहाँ बताया गया है कि मृत्यु के बाद आत्मा के साथ जो होता है, वह उसके कर्मों पर निर्भर करता है। पापी आत्माओं को नर्क यातनाएँ मिलती हैं, जबकि पुण्यात्माएँ स्वर्ग जाती हैं या मोक्ष प्राप्त करती हैं। इस लेख में वर्णित यमलोक की यात्रा, पुनर्जन्म और कर्मफल इसी श्लोक की पुष्टि करते हैं।
यह ज्ञान न केवल हिंदू धर्म में बल्कि अन्य आध्यात्मिक मान्यताओं में भी किसी न किसी रूप में पाया जाता है। विज्ञान भले ही मृत्यु के बाद के जीवन को प्रमाणित न कर पाए, लेकिन आध्यात्मिकता और धर्म इस विषय को विस्तृत रूप से समझाते हैं। इस प्रकार, मृत्यु का रहस्य, आत्मा की यात्रा और पुनर्जन्म का चक्र मानव जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है, जिसे समझना और उसके अनुसार अपने जीवन को सही दिशा में चलाना हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है।