लेखक- विपिन चमोली via NCI
Jageshwar Dham : नमस्ते दोस्तों! अगर आप ज़िंदगी की भागदौड़ से थक चुके हैं और महादेव के दर्शन के साथ-साथ थोड़ा सुकून भी चाहते हैं, तो मेरी बात मानिए—जागेश्वर धाम उत्तराखंड आपके लिए ही बना है। उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल में अल्मोड़ा से थोड़ा आगे, देवदार के घने और सुगंधित वनों के बीच एक ऐसी जगह है, जहाँ कदम रखते ही आपको लगेगा कि समय ठहर गया है। यह कोई साधारण मंदिर नहीं है, बल्कि लगभग 2500 साल पुराना 125 मंदिरों का एक विशाल समूह है—हमारे जागते हुए ईश्वर यानी जागेश्वर धाम। सोचिए ज़रा! इस जगह को काशी विश्वनाथ, केदारनाथ और उज्जैन महाकाल के बराबर पूजनीय माना जाता है। यह पवित्र स्थान केवल मंदिर समूह नहीं है, बल्कि एक ऐसा ऐतिहासिक केंद्र है, जो शांति, आस्था और अप्रतिम वास्तुकला का संगम है। तो अगर आपने उन धामों के दर्शन कर लिए हैं, तो इस छिपे हुए खज़ाने की यात्रा तो बनती ही है। आइए, मैं आपको इस पवित्र और ऐतिहासिक यात्रा पर ले चलता हूँ!
1. जागेश्वर धाम का विराट पौराणिक एवं ऐतिहासिक परिचय: यहाँ से हुई शिवलिंग पूजा की शुरुआत
जागेश्वर धाम का इतिहास 2500 वर्ष से भी अधिक पुराना माना जाता है, और यह वह भूमि है जहाँ से हिंदू धर्म की एक महत्वपूर्ण धारा का उद्गम हुआ। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह वह स्थान है जहाँ से भगवान शिव के शिवलिंग रूप की पूजा का प्रारंभ हुआ था और यह मान्यता इसे भारत के प्राचीनतम धार्मिक केंद्रों में से एक बनाती है। कहा जाता है कि जब भगवान शिव हिमालय में तपस्या के लिए स्थान खोज रहे थे, तब उन्होंने इस शांत और पवित्र घाटी को चुना और यहाँ लम्बे समय तक कठोर तप किया, इसी कारण यह स्थान ‘योगेश्वर’ या ‘जागेश्वर’ कहलाया। केवल भगवान शिव ही नहीं, बल्कि कई महान विभूतियों ने इस पवित्र भूमि पर तपस्या की है; रामायण काल के शक्तिशाली चरित्र रावण ने यहाँ शिव की आराधना की, महाभारत काल के पांडवों ने अपने वनवास के दौरान इस क्षेत्र में समय बिताया, और चिरंजीवी मार्कंडेय ऋषि ने मृत्यु पर विजय पाने के लिए यहाँ महामृत्युंजय जाप किया था। इसके अलावा, सात महान ऋषियों (सप्तऋषि) ने भी इस पवित्र घाटी में ज्ञान प्राप्त किया, और ये ऐतिहासिक तथ्य इस धाम के आध्यात्मिक महत्व को कई गुना बढ़ा देते हैं।
मंदिर प्रशासन और स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, जागेश्वर धाम के शिवलिंग को द्वादश (12) ज्योतिर्लिंगों में से आठवाँ नागेश ज्योतिर्लिंग माना जाता है, हालाँकि नागेश ज्योतिर्लिंग के वास्तविक स्थान को लेकर देश में अलग-अलग मत मौजूद हैं, पर कुमाऊँ क्षेत्र में इसी धाम को नागेश रूप में पूजा जाता है। यहाँ स्थित प्राचीन मृत्युंजय मंदिर का भी विशेष महत्व है, मान्यता है कि मृत्युंजय मंदिर उस स्थान को दर्शाता है जहाँ 12 ज्योतिर्लिंगों का उद्गम हुआ था, और इसीलिए महाशिवरात्रि एवं सावन के महीने में यहाँ विशेष रुद्राभिषेक, पार्थिव पूजन और कालसर्प दोष पूजा जैसे आयोजन होते हैं। यह पूरा परिसर लगभग 125 छोटे-बड़े मंदिरों का समूह है, और इन मंदिरों की भव्यता तथा स्थापत्य शैली इन्हें खास बनाती है। इन मंदिरों की शैली को केदारनाथ शैली या नागर शैली कहा जाता है, जिसमें ऊँची, शंक्वाकार छतें और जटिल पत्थर की नक्काशी देखने को मिलती है, और इनका निर्माण 7वीं से 13वीं शताब्दी के बीच कत्यूरी तथा चंद शासकों द्वारा कराए जाने की संभावना है। मंदिर के पास से पवित्र जटा गंगा नदी बहती है, जो ब्रह्मकुंड और दंडेश्वर मंदिर क्षेत्र से भी होकर गुजरती है, और इस नदी में स्थित ब्रह्मकुंड में स्नान करने के बाद ही मुख्य मंदिर के दर्शन करना संपूर्ण यात्रा मानी जाती है।
2. जागेश्वर धाम कैसे पहुँचें और आपकी संपूर्ण यात्रा योजना

जागेश्वर धाम तक पहुँचना अब काफी सुलभ हो गया है, खासकर दिल्ली, नैनीताल और अल्मोड़ा जैसे बड़े शहरों से, और मैं आपको आपकी यात्रा को आसान बनाने के लिए एक विस्तृत योजना बता रहा हूँ। यदि आप दिल्ली से आ रहे हैं, तो सबसे अच्छा विकल्प है कि आप रात में बस लें और सुबह अल्मोड़ा पहुँच जाएँ, फिर वहाँ से टैक्सी या लोकल बस द्वारा जागेश्वर (लगभग 35 किमी) का सफर तय करें। यदि आप रेल मार्ग से आ रहे हैं, तो काठगोदाम रेलवे स्टेशन सबसे नज़दीकी प्रमुख स्टेशन है, जहाँ से आगे की यात्रा केवल सड़क मार्ग से ही संभव है; यहाँ से आप टैक्सी या बस लेकर अल्मोड़ा पहुँच सकते हैं। हवाई मार्ग से आने पर, पंतनगर हवाई अड्डा सबसे नज़दीकी है, जहाँ से आप टैक्सी या बस द्वारा सीधे अल्मोड़ा या जागेश्वर तक पहुँच सकते हैं।
लोकल यात्रा के लिए, अल्मोड़ा एक मुख्य केंद्र है जहाँ से सुबह के समय शेयर टैक्सी (बोलेरो) और कुछ प्राइवेट बसें जागेश्वर के लिए चलती हैं। यदि आप नैनीताल घूमने आए हैं, तो वहाँ से भी यह यात्रा कठिन नहीं है; नैनीताल से पहले भवाली, फिर अल्मोड़ा और अंत में जागेश्वर के लिए शेयर टैक्सी या लोकल बस मिल जाती है, और लगभग 3 घंटे का सफर तय करना पड़ता है। यह धाम एक दिन की यात्रा (वन डे टूर) के लिए भी एकदम सही है—अल्मोड़ा से या नैनीताल से भी लगभग 3 घंटे जाना, 3 घंटे वापस आना और बीच में 1–1.5 घंटे मुख्य मंदिर, कुबेर मंदिर, ब्रह्मकुंड व अन्य जगहें देखने के लिए काफी हैं। आपको यह ध्यान रखना होगा कि निजी गाड़ी या टैक्सी को मंदिर से पहले सड़क किनारे या प्रसाद की दुकानों के पास बिना किसी अलग पार्किंग शुल्क के आसानी से खड़ा किया जा सकता है।
3. दर्शन और परिक्रमा का सही क्रम: महादेव को प्रसन्न करने का मार्ग

जागेश्वर धाम की यात्रा को संपूर्ण और फलदायी बनाने के लिए एक विशिष्ट परिक्रमा पथ निर्धारित है, जिसका बोर्ड मंदिर के गेट पर लगा हुआ है, और मैं आपको यही क्रम अपनाने की सलाह दूँगा। नियम के अनुसार, भक्तों को सबसे पहले मंदिर के पास बहने वाली पवित्र जटा गंगा नदी में स्थित ब्रह्मकुंड में स्नान करना चाहिए, क्योंकि यह आपकी यात्रा की शुद्धि का पहला चरण है। इसके बाद, आपको मुख्य जागेश्वर मंदिर में प्रवेश करना चाहिए और फिर अन्य मंदिरों के दर्शन शुरू करने चाहिए। सुझाया गया क्रम इस प्रकार है: मुख्य जागेश्वर मंदिर से शुरू करके, आपको दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर और पुष्टि माता मंदिर के दर्शन करने चाहिए, जिसके बाद अत्यंत महत्वपूर्ण मृत्युंजय मंदिर आता है, जहाँ लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना की जाती है।
इसके बाद, आप हवन कुंड, केदार/कदर मंदिर, कमल कुंड, भटक भैरव, कुबेर मंदिर, काली मंदिर, चंडी मंदिर, नवग्रह और सूर्य मंदिर के दर्शन करें। अपनी यात्रा को समाप्त करते हुए, वापस लौटते समय रास्ते में दंडेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन का विशेष उल्लेख है, जो कुमाऊँ क्षेत्र के सबसे विशाल शिव मंदिरों में से एक है और जिसका संभावित निर्माण 10वीं शताब्दी में कत्यूरी शासकों द्वारा माना जाता है। इस मंदिर समूह में भी लगभग 14 छोटे-बड़े मंदिर हैं और यहाँ भी जटा गंगा बहती है; बस एक बात का ध्यान रखें कि इसके गर्भगृह में कैमरा/वीडियो पर सख्त प्रतिबंध है। इस पूरे दर्शन क्रम का पालन करने से आपको एक आध्यात्मिक और शांत अनुभव मिलेगा, जो इस प्राचीन धाम की यात्रा का मुख्य उद्देश्य है।
4. ठहरने, भोजन और स्थानीय अनुभव: नेटवर्क और शांति का समाधान
जागेश्वर धाम में रुकने और खाने की व्यवस्था सरल और अच्छी है, लेकिन यहाँ की सबसे बड़ी चुनौती मोबाइल नेटवर्क की है, जिसका समाधान जानना आपके लिए बेहद ज़रूरी है। मुख्य मंदिर क्षेत्र में कई होटल, गेस्ट हाउस, होमस्टे और KMVN गेस्ट हाउस मौजूद हैं, लेकिन यहाँ लगभग सभी मोबाइल नेटवर्क (Jio, Airtel आदि) पूरी तरह बंद हो जाते हैं, केवल BSNL ही कुछ हद तक काम करता है। यही कारण है कि वहाँ रुकने की सलाह नहीं दी जाती, क्योंकि आज के समय में कनेक्टिविटी आवश्यक है। मेरा सुझाव है कि आप मंदिर से लगभग 3 किमी पहले स्थित आर-तोला (R-Tola) नामक गाँव में रुकें, क्योंकि यह एक ऐसा विकल्प है जहाँ सभी मोबाइल नेटवर्क चलते हैं। आर-तोला में होमस्टे और गेस्ट हाउस हैं जो शांत वातावरण प्रदान करते हैं, और यहाँ आपको साधारण लेकिन अच्छी ठहरने और खाने की व्यवस्था मिल जाएगी, जिससे आपकी यात्रा आरामदायक हो जाएगी। भोजन की बात करें तो जागेश्वर में साधारण शुद्ध वेजिटेरियन भोजन के लिए ढाबे, छोटे होटल और रेस्टोरेंट उपलब्ध हैं। मंदिर के पास प्रसाद और पूजा सामग्री की कई दुकानें हैं। इसके अलावा, जागेश्वर में सावन के महीने में श्रावण मेला और महाशिवरात्रि पर विशेष आयोजन होते हैं, जो इस धाम की यात्रा को और भी विशेष बना देते हैं।
5. जागेश्वर धाम की सुंदरता और आध्यात्मिक शांति
जागेश्वर धाम की यात्रा केवल धार्मिक कर्मकांड तक सीमित नहीं है, यह प्रकृति के बीच शांति खोजने और भारतीय वास्तुकला की भव्यता को निहारने का भी एक शानदार अवसर है। आपको कुबेर मंदिर के पास से पूरे जागेश्वर धाम, देवदार के घने जंगलों और शांत घाटी का एक अत्यंत सुंदर विहंगम दृश्य दिखाई देगा। यह वह जगह है जहाँ आप शांत बैठकर समय बिता सकते हैं और इस पवित्र भूमि की सकारात्मक ऊर्जा को महसूस कर सकते हैं। परिसर में एक और खास आकर्षण है: एक विशेष देवदार का वृक्ष जो नीचे से एक तना होकर ऊपर जाकर दो भागों में विभाजित हो जाता है। स्थानीय लोग इस वृक्ष को अत्यंत श्रद्धा से शिव और पार्वती के प्रतीक रूप में पूजते हैं। यह प्रकृति और धर्म के अद्भुत मेल को दर्शाता है। यह धाम एक ऐसा प्राचीन और पवित्र स्थान है, जिसकी यात्रा हर शिव भक्त को एक बार अवश्य करनी चाहिए, क्योंकि यह आपको केदारनाथ, काशी या उज्जैन महाकाल के दर्शन के समान ही आध्यात्मिक संतुष्टि और शांति प्रदान करता है।











