Kaal Sarp Dosh: 12 प्रकार के कालसर्प दोष! क्या आपकी कुंडली में है ‘नाग’ का शाप? तुरंत पहचानें और जानें 3 महाउपाय!

By NCI
On: November 26, 2025 11:16 AM
Kaal Sarp Dosh
लेखक- धीरज जी पराशर (पंडित, उज्जैन) via NCI

कालसर्प दोष (Kaal Sarp Dosh): यह नाम सुनते ही कई लोगों के मन में एक अनजाना भय और चिंता उत्पन्न हो जाती है। ज्योतिष शास्त्र में, कालसर्प दोष को सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण योगों में से एक माना जाता है, जो जातक के जीवन में अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव और संघर्ष ला सकता है। परंतु यह मात्र भय का विषय नहीं है; यह एक ऐसा ज्योतिषीय विन्यास है जिसे यदि सही से समझा और प्रबंधित किया जाए तो यह जीवन को एक नई दिशा भी दे सकता है। कालसर्प दोष तब बनता है जब जन्म कुंडली में सभी सात प्रमुख ग्रह—सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि—छाया ग्रह राहु (नाग का मुख) और केतु (नाग की पूंछ) के बीच आ जाते हैं, जिससे वे एक प्रकार से ‘जाल’ या ‘फंदे’ में फँस जाते हैं। यह स्थिति जातक के पिछले जन्म के कर्मों (या पूर्वजन्म के ऋण) को दर्शाती है, जिन्हें इस जीवन में चुकाना होता है। इस कालसर्प दोष के मूल में राहु और केतु की रहस्यमय ऊर्जाएँ हैं, जो काल यानी समय और सर्प यानी नाग के प्रतीक हैं; यह समय के चक्र में नाग के बंधन को दिखाता है। यह दोष जातक के लिए विशेष रूप से करियर, स्वास्थ्य, विवाह और रिश्तों जैसे जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर अपनी गहरी छाप छोड़ता है, जिससे सफलता प्राप्ति में अत्यधिक विलम्ब, बार-बार असफलता, स्वास्थ्य संबंधी दीर्घकालिक समस्याएँ या वैवाहिक जीवन में तनाव जैसी चुनौतियाँ सामने आती हैं। हालांकि इस कालसर्प दोष का प्रभाव एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न होता है, और इसके प्रभाव की तीव्रता राहु-केतु के अंश, अन्य ग्रहों के सहयोग और कुंडली में बनने वाले अन्य योगों पर निर्भर करती है। इस दोष को मुख्यतः 12 प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है और ये सभी कालसर्प दोष के प्रकार भारतीय पौराणिक कथाओं के विश्वविख्यात नागों के नामों पर रखे गए हैं, जो इस योग की गंभीरता और शक्ति को दर्शाते हैं—अनंत, कुलिक, वासुकि, शंखपाल, पद्म, महापद्म, कर्कोटक, तक्षक, शंखचूड़, घातक, विषधर और शेषनाग। इन 12 कालसर्प दोष के प्रकारों का निर्धारण कुंडली के 12 भावों में राहु और केतु की स्थिति के आधार पर होता है, और प्रत्येक प्रकार जीवन के एक विशिष्ट क्षेत्र पर अपना प्रभुत्व जमाता है। यह समझना आवश्यक है कि कालसर्प दोष हमेशा नकारात्मक ही नहीं होता; कुछ स्थितियों में, खासकर जब राहु या केतु लाभकारी भावों में उच्च के होकर बैठते हैं, तो यह विपरीत राजयोग की तरह काम करके जातक को अप्रत्याशित और बड़ी सफलताएँ भी दिला सकता है, खासकर जीवन के उत्तरार्ध में, लेकिन इसके लिए प्रारंभिक जीवन में कठोर संघर्ष और तपस्या की आवश्यकता होती है।

💫 कालसर्प दोष के प्रथम छः प्रकार: राहु लग्न से षष्ठम भाव तक

अब हम कालसर्प दोष के इन 12 कालसर्प दोष के प्रकारों और उनके विशिष्ट प्रभावों पर गहराई से विचार करते हैं, ताकि कोई भी जातक अपनी कुंडली में बन रहे विशिष्ट कालसर्प दोष को पहचान सके और उसके अनुरूप समाधान खोज सके। सबसे पहले आता है अनंत कालसर्प दोष (Anant Kaal Sarp Dosh), जो तब बनता है जब राहु लग्न (पहले भाव) में और केतु सप्तम भाव में स्थित होता है; इसे विपरीत कालसर्प दोष भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि यह दोष जातक को प्रारंभिक संघर्ष के बाद अद्भुत ऊँचाइयाँ दे सकता है। लग्न, जो स्वयं और व्यक्तित्व का भाव है, में राहु की उपस्थिति जातक को एक विलक्षण व्यक्तित्व, महत्वाकांक्षा और कभी-कभी अत्यधिक आत्मविश्वास देती है, लेकिन सप्तम भाव (विवाह और साझेदारी) पर केतु की दृष्टि वैवाहिक जीवन में तनाव या साझेदारी के संबंधों में अस्थिरता पैदा करती है; इसे संतुलित करना जातक के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है। दूसरा है कुलिक कालसर्प दोष (Kulik Kaal Sarp Dosh), जो द्वितीय भाव (धन और परिवार) में राहु और अष्टम भाव (आयु, अचानक लाभ/हानि) में केतु की स्थिति से उत्पन्न होता है। यह कालसर्प दोष मुख्य रूप से धन और प्रतिष्ठा संबंधी समस्याएं पैदा करता है, साथ ही परिवार में तनाव और वाणी में कठोरता ला सकता है, जिससे जातक को अपनी आर्थिक स्थिति और पारिवारिक संबंधों को संभालने में मुश्किल होती है, और उन्हें अनैतिक तरीके से धन कमाने से बचना चाहिए। तीसरा है वासुकि कालसर्प दोष (Vasuki Kaal Sarp Dosh), जिसमें राहु तृतीय भाव (पराक्रम, भाई-बहन) में और केतु नवम भाव (भाग्य, धर्म, लंबी यात्रा) में होते हैं; इस कालसर्प दोष से भाई-बहनों से संबंध खराब हो सकते हैं और जातक को जीवन में हर सफलता के लिए अत्यधिक संघर्ष के बाद ही संतुष्टि मिलती है, क्योंकि भाग्य भाव पर केतु की उपस्थिति से भाग्य का साथ देर से मिलता है, लेकिन उनका पराक्रम उन्हें अंततः विजय दिलाता है। चौथा है शंखपाल कालसर्प दोष (Shankhpal Kaal Sarp Dosh), जब राहु चतुर्थ भाव (सुख, माता, गृह) में और केतु दशम भाव (कर्म, करियर) में होता है; इस स्थिति में जातक के कार्यक्षेत्र में बाधाएं आ सकती हैं, सुख और संपत्ति प्राप्ति में विलम्ब होता है, और उन्हें अपनी माँ के स्वास्थ्य या सुख के प्रति विशेष ध्यान देना पड़ता है। पाँचवाँ है पद्म कालसर्प दोष (Padma Kaal Sarp Dosh), जो राहु पंचम भाव (संतान, विद्या, प्रेम) और केतु एकादश भाव (लाभ, मित्र) में होने पर बनता है। इस कालसर्प दोष के मुख्य प्रभावों में संतान सुख में कमी, वृद्धावस्था में दुख, शत्रु बाधा, और जुए आदि में हानि शामिल हैं; जातक को संतान संबंधी चिंताएँ अधिक रहती हैं और उन्हें अपनी शिक्षा या प्रेम संबंधों में निराशा का सामना करना पड़ सकता है। छठा है महापद्म कालसर्प दोष (Mahapadma Kaal Sarp Dosh), जब राहु षष्ठम भाव (शत्रु, रोग, ऋण) में और केतु द्वादश भाव (व्यय, हानि, मोक्ष) में होता है; यह एक दिलचस्प योग है क्योंकि षष्ठम भाव में राहु शत्रुओं पर विजय दिलाता है, लेकिन यह कालसर्प दोष जातक को शत्रु और कोर्ट-कचहरी संबंधी परेशानी भी दे सकता है, साथ ही जातक को गुप्त व्यय और स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है लेकिन यह मोक्ष की दिशा में भी ले जा सकता है।

🌑 कालसर्प दोष के अंतिम छः प्रकार: राहु सप्तम भाव से द्वादश भाव तक

अब बात करते हैं शेष छह कालसर्प दोष के प्रकारों की, जो क्रम को उलट देते हैं। सातवाँ है तक्षक कालसर्प दोष (Takshak Kaal Sarp Dosh), जो राहु सप्तम भाव में और केतु लग्न (पहला भाव) में स्थित होने पर बनता है। यह कालसर्प दोष सीधे जातक के व्यक्तित्व और वैवाहिक जीवन को प्रभावित करता है, जिससे विवाह में देरी, वैवाहिक जीवन में तनाव या तलाक की नौबत आ सकती है; जातक को अपने साथी के साथ संवाद और विश्वास पर विशेष रूप से काम करना पड़ता है, और उन्हें स्वास्थ्य संबंधी छोटी-मोटी समस्याएँ बनी रह सकती हैं। आठवाँ है कर्कोटक कालसर्प दोष (Karkotak Kaal Sarp Dosh), जो राहु अष्टम भाव में और केतु द्वितीय भाव में होने से बनता है। अष्टम भाव में राहु अचानक परिवर्तन लाता है, लेकिन यह कालसर्प दोष जातक को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और धन हानि दे सकता है; उन्हें गुप्त विद्याओं में रुचि हो सकती है, लेकिन उन्हें अपनी विरासत या पैतृक धन को संभालने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। नौवाँ है शंखचूड़ कालसर्प दोष (Shankhachooda Kaal Sarp Dosh), जब राहु नवम भाव में और केतु तृतीय भाव में होता है। यह कालसर्प दोष परिवार में अनबन और महत्वाकांक्षाओं को प्राप्त करने में अधिक समय लगने का कारण बनता है; जातक को अपने गुरुजनों, पिता या धर्म के प्रति संदेह हो सकता है, लेकिन उनके छोटे भाई-बहनों से संबंध अच्छे रह सकते हैं, और उन्हें लंबी दूरी की यात्राओं से लाभ मिल सकता है। दसवाँ है घातक कालसर्प दोष (Ghatak Kaal Sarp Dosh), जो राहु दशम भाव में और केतु चतुर्थ भाव में होने पर बनता है। दशम भाव में राहु अत्यंत महत्वाकांक्षी बनाता है, लेकिन यह कालसर्प दोष कानूनी और सरकारी मामलों में परेशानी पैदा कर सकता है; जातक को अपने करियर में उच्च सफलता पाने के लिए घर और पारिवारिक सुख का त्याग करना पड़ सकता है, और उन्हें माँ के स्वास्थ्य की चिंता हो सकती है। ग्यारहवाँ है विषधर कालसर्प दोष (Vishdhar Kaal Sarp Dosh), जो राहु एकादश भाव (लाभ) में और केतु पंचम भाव (संतान) में स्थित होने पर बनता है। लाभ भाव में राहु लाभ दिलाता है, लेकिन यह कालसर्प दोष शत्रुओं द्वारा षड्यंत्र, संतान संबंधी चिंता और व्यापार में हानि की संभावना उत्पन्न करता है; जातक को अपने बड़े भाई-बहनों और मित्रों के साथ संबंधों में सावधानी बरतनी चाहिए और उन्हें शेयर बाजार या सट्टेबाजी से दूर रहना चाहिए। और अंत में बारहवाँ है शेषनाग कालसर्प दोष (Sheshnaag Kaal Sarp Dosh), जो राहु द्वादश भाव (व्यय, विदेश) में और केतु षष्ठम भाव (शत्रु) में होने से बनता है। यह कालसर्प दोष व्यय की अधिकता और विदेश में निवास की संभावना को दर्शाता है; जातक को अस्पताल या जेल जैसी संस्थाओं पर अनावश्यक खर्च हो सकता है और उन्हें गुप्त शत्रुओं से सावधान रहना पड़ता है, लेकिन यह मोक्ष और आध्यात्मिकता की दिशा में भी एक शक्तिशाली मार्ग दे सकता है।

🙏 कालसर्प दोष के अचूक समाधान और निवारण के उपाय

इन 12 कालसर्प दोष के प्रकारों को जानने के बाद, यह समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि ज्योतिष केवल समस्याओं की पहचान नहीं करता, बल्कि समाधान भी प्रदान करता है। कालसर्प दोष के निवारण के लिए कई प्रभावी ज्योतिषीय उपाय बताए गए हैं, जिनमें सबसे प्रमुख है नागपंचमी के दिन भगवान शिव और नाग देवता की पूजा करना। इसके अतिरिक्त, जातक को नियमित रूप से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना चाहिए, राहु और केतु के मंत्रों का विधिपूर्वक जप करना चाहिए और भगवान शिव की पूजा के लिए सोमवार का व्रत रखना चाहिए, क्योंकि शिवजी ही काल और नागों के स्वामी हैं। दोष की गंभीरता के आधार पर विशिष्ट उपाय जैसे कि त्र्यंबकेश्वर या नासिक में विशेष पूजा या अनुष्ठान करवाना भी अत्यंत लाभकारी माना जाता है। धार्मिक स्थानों की यात्रा जैसे नाग देवता के मंदिर में दर्शन और गरीबों को दान देना, विशेष रूप से काले कपड़े या उड़द दाल का दान करना भी राहु-केतु के नकारात्मक प्रभावों को शांत करने में सहायक होता है। जातक को यह भी याद रखना चाहिए कि इस कालसर्प दोष का वास्तविक समाधान सकारात्मक कर्म और धैर्य में निहित है। पूर्वजन्म के ऋण को केवल वर्तमान में सही निर्णय और नैतिक आचरण से ही चुकाया जा सकता है। इसलिए उन्हें ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, किसी को धोखा नहीं देना चाहिए, और हर चुनौती को एक अवसर के रूप में देखना चाहिए।

🕉️ कालसर्प दोष शांति के लिए शक्तिशाली मंत्र

कालसर्प दोष के निवारण के लिए ज्योतिष में मंत्रों को सबसे सरल और सबसे प्रभावी उपाय माना गया है, क्योंकि ये सीधे राहु, केतु और नाग देवता की ऊर्जा को शांत करते हैं और व्यक्ति को मानसिक बल प्रदान करते हैं ताकि वह चुनौतियों का सामना कर सके। इन मंत्रों के जाप से जातक के चारों ओर एक सुरक्षा कवच का निर्माण होता है और दोष का नकारात्मक प्रभाव कम होने लगता है। सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण है महामृत्युंजय मंत्र (ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥), जो भगवान शिव को समर्पित है और जो काल के भय को हर लेता है; इसका प्रतिदिन 108 बार जाप करना अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि शिव ही कालसर्प दोष के प्रभावों को नियंत्रित करने वाले एकमात्र देवता हैं। दूसरा प्रमुख उपाय है नाग गायत्री मंत्र ( ॐ नवकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्पः प्रचोदयात्॥) का जाप, जो नाग देवताओं को प्रसन्न करता है और उनके आशीर्वाद से कालसर्प दोष के दुष्प्रभाव कम होते हैं; इस मंत्र का उच्चारण विशेष रूप से नागपंचमी और श्रावण मास में करना बहुत फलदायी होता है, जिससे सर्प दंश का भय समाप्त होता है और जीवन में स्थायित्व आता है। तीसरा, व्यक्ति को राहु का वैदिक मंत्र (ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः॥) और केतु का वैदिक मंत्र (ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः॥) का भी नियमित जाप करना चाहिए; राहु का मंत्र जातक को भ्रम और नकारात्मकता से बचाता है, जबकि केतु का मंत्र आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष की ओर प्रेरित करता है, जिससे इन छाया ग्रहों का अशुभ प्रभाव शुभता में बदलने लगता है। इन मंत्रों का जाप किसी भी सोमवार से शुरू करके रुद्राक्ष की माला से करना चाहिए, और जाप करते समय जातक को अपना ध्यान पूरी तरह से भगवान शिव और नाग देवता पर केंद्रित करना चाहिए, यह मानसिक शांति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए सबसे उत्तम विधि मानी जाती है।

✨ मंत्र जाप की सही विधि और नियम

इन शक्तिशाली मंत्रों से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए, जातक को कुछ विशेष विधि और नियमों का पालन करना अनिवार्य है, क्योंकि विधिपूर्वक किया गया जाप ही पूर्ण फल देता है। जाप की शुरुआत किसी भी माह के सोमवार या पंचमी तिथि को करना सबसे उत्तम माना जाता है, और इसके लिए सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर, साफ वस्त्र पहनकर, एकांत और शांत स्थान का चुनाव करना चाहिए, जहां कोई व्यवधान न हो। जातक को बैठने के लिए कुश के आसन का उपयोग करना चाहिए, और अपना मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए जो ऊर्जा के सही प्रवाह के लिए शुभ माना जाता है। जाप के लिए रुद्राक्ष की माला का उपयोग करें और ध्यान रखें कि माला को जमीन पर न रखें, बल्कि किसी स्वच्छ कपड़े या पात्र पर रखें; प्रत्येक मंत्र का जाप कम से कम 108 बार (एक माला) किया जाना चाहिए, और यह संख्या प्रतिदिन समान रहनी चाहिए। जाप शुरू करने से पहले भगवान शिव और नाग देवता को प्रणाम करें और अपने कालसर्प दोष निवारण के लिए सच्चे मन से प्रार्थना करें; यह शुद्ध भावना ही मंत्रों में शक्ति भरती है। जाप के दौरान शुद्धता (पवित्रता) बनाए रखना आवश्यक है, इसलिए मांस, मदिरा और तामसिक भोजन का सेवन करने से बचना चाहिए। मंत्रों का उच्चारण स्पष्ट और लयबद्ध होना चाहिए, न तो बहुत तेज और न ही बहुत धीमा, और जाप के समय मन को भटकने से बचाकर पूरी तरह से मंत्र और ईश्वर पर केंद्रित करना चाहिए; यदि आप किसी कारणवश किसी दिन जाप नहीं कर पाते हैं, तो अगले दिन उसकी पूर्ति करने का प्रयास करें, वैसे जप साधना मे नियमितता सबसे जरूरी होता है। इस विधि का लगातार 40 दिनों तक पालन करना मंडला सिद्धि प्राप्त करने में सहायक होता है, और धीरे-धीरे जातक को स्वयं ही अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन, मानसिक शांति और कालसर्प दोष से जुड़ी समस्याओं में कमी महसूस होने लगती है।

Also Read- Kemdrum Dosh: क्या आप भी महसूस करते हैं गहरा अकेलापन?

NCI

Join WhatsApp

Join Now

Join Telegram

Join Now
error: Content is protected !!