Chardham Yatra: Badrinath Dham : शब्दों से महसूस कीजिए हरि की दिव्यता!

By NCI
On: October 26, 2025 12:43 PM
Badrinath dham
Writer- Dhanvansha Pandit via NCI

Chardham Yatra: Badrinath Dham : आप सभी को जय श्री महाकाल! आज से मैं आप सभी के साथ अपने चारधाम यात्रा के अनुभवों को साझा करूंगा। ये केवल एक यात्रा नहीं है बल्कि ईश्वर के सानिध्य का एक अनुभव है जिसने मेरे जीवन के कई पहलुओ को छुआ और मेरे लिए पथप्रदर्शक का काम किया। हालांकि यात्रा आसान नहीं थी लेकिन उनके आशीर्वाद ने इस यात्रा को ऐसा बना दिया जैसे वो खुद पिता बनके अपनी उंगली पकड़वाके इस यात्रा को पूरा करवा रहे हो। इस लेख के एक-एक शब्द आपको चारधाम यात्रा का ही अनुभव करवाएंगे । तो चलिए मेरे साथ शब्दों के इस सफर मे और अनुभव कीजिए चारधाम यात्रा को । चारधाम मे मुख्यतः बद्रीनाथ, जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम और द्वारकापुरी आता है । आज के इस लेख मे हम बद्रीनाथ एक अनुभवों को आपके साथ साझा करेंगे । हमारी यात्रा सितंबर के महीने मे उज्जैन से शुरू होती है, रेल मार्ग से मैं और मेरी टीम सबसे पहले योग नगरी ऋषिकेश पहुचती है और वहाँ हमारा स्वागत बारिश की बूंदों के साथ होता है । प्रकृति का ये सौन्दर्य देख के मन प्रफुल्लित हो उठा।

कभी-कभी जीवन का अर्थ हमें उन यात्राओं में मिलता है, जहाँ हम खुद को सबसे अधिक परखते हैं और ईश्वर से सबसे गहरी मुलाकात करते हैं। मेरे लिए यह अनुभूति “चारधाम यात्रा” से जुड़ी है। इस पवित्र यात्रा की शुरुआत मैंने बद्रीनाथ धाम से की, एक ऐसी जगह जहाँ हर सांस भक्ति में डूबी लगती है और हर शिला से भगवान नारायण का आशीर्वाद महसूस होता है। ऋषिकेश पहुँचना किसी और संसार में प्रवेश करने जैसा था। यहाँ की हवा में ही अध्यात्म घुला हुआ है। कार के लिए प्रतीक्षा करते हुए मैंने देखा – विदेशी सैलानी ध्यान में लीन हैं, साधु-संत गंगा किनारे भजन गा रहे हैं, और आरती की घंटियों की ध्वनि मानो स्वर्ग से उतर रही हो। सुबह का वह समय था जब मैंने बद्रीनाथ के लिए कार ली। पहाड़ों की तरफ बढ़ते हुए घाटियाँ धीरे-धीरे अपना जादू बिखेरने लगीं। हर मोड़ पर गंगा का स्वरूप कुछ नया दिखता – कहीं शांत, कहीं उफनती लहरों के रूप में। हरियाली से ढकी पहाड़ियों के बीच से गुजरती कार , और खिड़की से आती ठंडी हवा ने पूरी यात्रा को भक्ति का उत्सव बना दिया।

Badrinath dham
Badrinath dham

अगर मैं ये कहू की सब कुछ दिल खुश करने वाला था तो ऐसा नहीं है , कुछ चीजे डराने वाली भी थी। जैसे पहाड़ों का टूटना, मौसम का खराब होना, पहाड़ों पर बादल भी कम नहीं डराते। देखते-देखते कब आपके आस-पास बादलों की धुंद आ जाए आप समझ ही नहीं पाते है । कई बार पहाड़ खिसकने की वजह से 2-2 घंटे इंतज़ार करना पड़ा। आस-पास के लोगों ने बताया की ये तो कम इंतज़ार है कभी कभार तो 7 घंटे से भी ज्यादा इंतज़ार करना पड़ जाता है। ये बात सुन के एक एहसास हुआ की जब भी पहाड़ों पे आओ कम से कम 2 दिन तो फालतू ले के चलो ताकि अगर ऊपर किसी वजह से रुकना भी पड़े तो ट्रेन कैन्सल ना करना पड़े । खैर धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए और पहाड़ों और खाई के दर्शन करते गए । उसके बाद माँ भगवती धारी देवी का मंदिर आया । सभी उतरे और दर्शन को चल दिए । मंदिर के रास्ते पैदल मार्ग पर हम सभी मंदिर की तरफ जा रहे थे तो ढलान थी और हसते-मुस्कुराते हुए जा रहे थे लेकिन दर्शन कर के लौटते हुए लोग के चेहरे पसीने से लतपत। अंदाजा लग गया की ये ऊंचाई की माया है जिसके दर्शन हमे भी होंगे जब हम दर्शन कर के लौटेंगे। मंदिर बीच नदी मे है और सड़क ऊपर, तो जब दर्शन करने जाओ तो ढलान और दर्शन कर के वापस आओ तो पहाड़ चढ़ने सा सफर। हम लोग हस्ते मुस्कुराते माँ धारी देवी के परिसर पहुचे । जब मंदिर मे प्रवेश किया और भगवती को सामने पाया  तो लगा की धन्य है ये समय जिसने हमे माँ से मिलाया । माँ के सुंदर नेत्र जो हर पल ममता बरसा रही थी, भाव ऐसा की हमारे नेत्र भर आए । और जब उनकी मुस्कुराहट को देखा तो लगा जैसे अपने बच्चों को देख कर माँ प्रसन्न है । मेरे चेहरे पर अपने आप मुस्कुराहट आ गयी और जीवन मे पहली बार आँसू और हंसी एक साथ अनुभव करने का मौका मिला । मुझे लगा क्यूँ मैं अब तक इनसे मिलने नहीं आया। मन किया की उनसे पूछू की माँ क्यूँ इतने दिन मुझे दर्शन नहीं दिए, इतना लेट क्यू बुलाया। फिर लगा शिकायत क्यूँ करना जिस पल ने तुमको उनसे मिलाया है उस पल का अनुभव करो, आनंद लो , अपने नेत्रों मे तस्वीर बना लो उनकी। वैसे भी आज कल भीड़ होने की वजह से बहुत कम टाइम मिलता है दर्शन के लिए। तो कार मैं उन्हे निहारता रहा और माँ मुझे देखती रही । शब्दों मे वो ताकत ही नहीं जो इस भाव को आप तक पहुचा सके,  ये तो उनके आशीर्वाद से स्वयं अनुभव करने की चीज है । मंदिर के अंदर हमारे महाकाल भी विराजित थे, उनके दर्शन करके बाहर आ गए। फिर देखा लोग सेल्फी लेने के लिए जाने कहाँ-कहाँ टंगे जा रहे है । खैर उन्हे और देखता तो मेरे शब्द खराब हो जाते तो बस हम सभी वापस कार की तरफ आने को निकाल पड़े। जैसे-जैसे चल रहे थे वैसे-वैसे मजा बढ़ता जा रहा था। और हांफते हुए पसीने से तर-बतर चढ़े जा रहे थे । हालांकि मैंने अपना हाँफना किसी को महसूस नहीं होने दिया, अब जवान व्यक्ति हाँफे तो लोग अलग मुस्कुराहट से देखते है। इसलिए हस्ते हुए अपना ये दर्द छुपाये चलते जा रहे थे और विडंबना तो देखिए कार दिखने का नाम ही नहीं ले रही थी । बीच मे दुकानदारों ने बैठने की व्यवस्था की थी जिसमे महिलाये और बुजुर्ग लोग बैठ के सुस्ता रहे थे ।  ऐसे ही चलते चलते कार तक पहुचे और चुपचाप अपनी सीट पे बैठ कर साँसे नॉर्मल होने का इंतज़ार करने लगा । धीरे-धीरे मेरे बाँकी साथी भी आ गए और कार चल पड़ी। मैंने माँ के मंदिर को चलती कार से निहारा और दुबारा बुलाने का आग्रह कर के प्रणाम कर लिया । रास्ते मे और भी जगह रुके जहां संगम था, लेकिन ये सब सेल्फी समुदाय के लिए ही अवसर जैसा था और इसका उन लोगों ने लाभ भी उठाया।

Badrinath dham : Dhari Maa Temple
Badrinath dham : Dhari Maa Temple

कार मे भक्ति का माहौल था हम सब भजन कीर्तन कर रहे थे, ये सब सुन के लग रहा था की काश ये समय यही रुक जाए और काम-काज के दौरान तो ये सुकून कभी मिल ही नहीं। ऐसे ही धीरे-धीरे कार चलती रही और हम सड़कों के मोड़ की कृपा से हिलते डुलते सूर्यास्त के समय तक जोशीमठ पहुँचे, ऊपर नजर गयी तो देखा आसमान लाल-गुलाबी रंगों से सजा हुआ था। पहाड़ों की ऊँचाई पर बसी उस नगरी का अपना एक अलग ही सौंदर्य है। थकान तो थी, लेकिन उससे कहीं अधिक मन में उत्साह था – आखिर हर क्षण बद्रीनाथ के करीब जो जा रहे थे।

Badrinath dham : Narsingh dev Temple
Badrinath dham : Narsingh dev Temple

जोशीमठ केवल रुकने का ठिकाना नहीं, अपने आप में एक तीर्थ है। होटल मे समान रखते ही सीधा प्रसिद्ध नृसिंह देव मंदिर गया। किसी ने बताया यहीं भगवान विष्णु का नृसिंह रूप विराजमान है, और जब यह मूर्ति पतली होती जाएगी, तब बद्रीनाथ का द्वार हमेशा के लिए बंद हो जाएगा। इस कथा को सुनते हुए मन श्रद्धा से भर गया। मैंने जब देख तो मुझे भगवान नरसिंह शालिग्राम स्वरूप मे नजर आए । और भी देवी देवता आसपास विराजित थे सबको प्रणाम करते हुए नजर नरसिंह भगवान पर ठहर गयी। मन मे आया की उनको प्रसन्न करने के लिए उनके सबसे प्रिय भक्त प्रह्लाद की जय बोलो । तो जैसे ही मन मे ये बात आयी मैं मन ही मन “भक्त प्रह्लाद की जय” बोल उठा और प्रभु को निहारता रहा । भीड़ कम होने की वजह से कोई धक्का मुक्की नहीं हुई, आराम से जी भर के उनके दर्शन किए हालांकि दर्शन से मन भर लेने के मामले मे संतुष्ट होना मुमकिन नहीं लेकिन फिर भी विदाई तो लेनी ही थी तो अपनी भूल-चूक की क्षमा मांग कर बाहर आए तो मंदिर के बिल्कुल सामने माता लक्ष्मी का मंदिर भी है। हरि प्रिया बिल्कुल श्री हरि के सामने विराजित है , ऐसा लग रहा था जैसे माता और पिता के बीच मे खड़ा मैं उनके प्रेम और वात्सल्य का अनुभव ले रहा हूँ। इस अनुभव से मुस्कुराते हुए जैसे ही आगे एक कमरे मे गया तो देखा वहाँ सामने प्राचीन प्रतिमाये और बीच मे बालों का गुच्छा जैसे कुछ था, पंडित जी से पूछने पर पता चला की ये माँ दुर्गा की जटाए है । इसका चित्र आप लोग भी देख सकते है । उनसे और बात करने की इच्छा थी लेकिन मेरे साथ आए थके हारे मुझे खिच कर वापस बाहर ले आए । बाहर का नजारा तो मानो ऐसा था की माता प्रकृति अपने सभी बच्चों को आशीर्वाद दे रही हो। सभी चित्र आप लोगों के साथ साझा कर रहा हु ताकि आप लोग भी ये पल महसूस कर सके। फिर हम लोग होटल मे लौट आए, डिनर किया और कमरे मे आने के बाद बैल्कनी का व्यू लेने की इच्छा हुई तो बाहर आए। आप खुद देखिए क्या नजारा है, शानदार, अद्भुत और अकल्पनीय ।  दिवाली की लाइट की तरह पूरा जोशीमठ चमक रहा था, सपने मे भी नहीं सोच था की ऐसा व्यू देखने को मिलेगा ।

Badrinath dham
Badrinath dham

प्रातःकालीन यात्रा – Badrinath Dham के द्वार की ओर

अगले दिन सुबह की पहली किरणों के साथ हमने जोशीमठ से बद्रीनाथ के लिए प्रस्थान किया। जैसे-जैसे कार ऊँचाई चढ़ती गई, तापमान घटता गया और दृश्यों की दिव्यता बढ़ती गई। रास्ते में अलकनंदा नदी लगातार हमारे साथ बहती रही, मानो वह खुद बद्री नारायण तक हमारा मार्गदर्शन कर रही हो। और नदी की आवाज इतनी तेज की सब उसे आसानी से सुन पा रहे थे। रास्ते मे हमारी यात्रा पर्ची चेक हुई और लगभग तीन घंटे की यात्रा के बाद दूर से बद्रीनाथ मंदिर के सुनहरे शिखर दिखाई दिए। वह दृश्य शब्दों में बयां करना कठिन है। मानो हिमालय की विशाल गोद में कोई दिव्य दीप जल रहा हो। जैसे-जैसे हम समीप पहुंचे, हवा में अगरबत्तियों और देसी घी के दीपों की सुगंध घुलने लगी। कार “माना पार्किंग” मे लगी और हम सभी कार से उतरते ही मंदिर की ओर चल पड़े। पार्किंग से मंदिर की दूरी लगभग 700 मीटर होगी, मन मे उनके दर्शन की इच्छा इतनी प्रबल थी की मानो आसपास क्या है कुछ देखा ही नहीं, तेज कदमों के साथ मंदिर पहुच गए । तुलसी की माला और प्रसाद लिया और सीधा लाइन मे लग गए। मंदिर के गेट पर गरुड जी की प्रतिमा को नमन किया।  उतनी भीड़ थी नहीं इसलिए 30 मिनट मे ही वो घड़ी आगयी जिसका इंतज़ार था, मेरे महाकाल के प्रिय बद्री नारायण बिल्कुल मेरे नेत्रों के सामने थे । एक मिनट के लिए ऐसा लगा सब कुछ ठहर सा गया है । बस एक भक्त और भगवान बाकी कुछ भी नहीं । ना कोई आवाज सुनाई दे रही थी और ना ही उनके अलावा कुछ दिखाई दे रहा था । नेत्र बंद कर के प्रार्थना करने का तो सवाल ही नहीं उठता, जो दर्शन के पल इतने मुश्किल से मिले है उन्हे आँखे बंद कर के कैसे गंवा सकता था। इसलिए उन्हे जी भर के निहारा, थोरी दूरी जरूर थी लेकिन एहसास ऐसा हो रहा था जैसे बिल्कुल मेरे करीब है। मेरा रोम-रोम उन्हे महसूस कर रहा था । फिर जब आगे बढ़ने का समय आया तो मुख से बस यही निकला “शिव शिव नारायण” और प्रभु का चरणामृत पी के मंदिर से बाहर आ गए और शिखर दर्शन कर, उन्हे दर्शन देने के लिए धन्यवाद किया, फिर माता लक्ष्मी के दर्शन कीये और वही परिसर मे बैठ कर के ॐ नमः शिवाय और ॐ नमो नारायणाय का जाप किया और भक्ति से भाव-विभोर होकर बाहर निकले। बाहर आते ही प्रकृति की चमक ने जैसे हमे नया जीवन मिलने का एहसास करवाया । ऐसा प्रकीर्तिक सौन्दर्य मुझे अपने जीवन मे कभी देखने को नहीं मिला। मंदिर से नीचे घाट की तरफ आते ही प्राचीन केदार बाबा के दर्शन किए, फिर अलकनंदा नदी को प्रणाम किया।  एक मान्यता है जिसमे ऐसा कहा जाता है की चारधाम यात्रा मे बद्रीनाथ से जल लेकर रामेश्वरम मे अर्पित किया जाता है । तो मैंने भी इस मान्यता का सम्मान और विश्वास करते हुए अलकनंदा का जल ले लिया। नदी का पानी इतना ठंडा था मानो किसी ने बर्फ को पिघला दिया हो, मैं एक मिनट भी अपना हाथ पानी मे नहीं रख पा रहा था, ठंडे पानी से हाथ जैसे लाल और सुन्न हो जाता था । वही पास मे मोक्षतीर्थ ब्रह्मकपाल के भी दर्शन किए । ब्रह्मशिला को छुआ और अपने महाकाल के हाथों के स्पर्श को महसूस किया। ब्रह्मशिला पर बाबा भोलेनाथ के हाथ के निशान आपको मिल जाएंगे। इस धाम ने मुझे हरिहर के साक्षात्कार का जो एहसास करवाया वो शायद कही और मिलना मुश्किल है। हरिहर एक है यह इस सृष्टि है सबसे बड़ा सत्य है, इनके बीच भेद करना मूर्खता की भी पराकाष्ठा है। बड़ी मुश्किल से मैंने अपना जल का डिब्बा भरा और बद्री विशाल के मंदिर को निहार के वापस अपनी कार की तरफ आ गए ।

वापसी की ओर – जोशीमठ से ऋषिकेश तक

दर्शन के बाद हम लोग माना गाँव गए फिर शाम तक हम वापस जोशीमठ अपने होटल लौट आए। रात को दोबारा नृसिंह देव मंदिर में दर्शन किया और मन ही मन भगवान से इस पूरी यात्रा के लिए आभार व्यक्त किया। अगले दिन सुबह कार से वापस ऋषिकेश के लिए रवाना हुआ। बर्फीले शिखर धीरे-धीरे पीछे छूटते जा रहे थे, लेकिन मन में उनका चित्र हमेशा के लिए अंकित हो गया। ऋषिकेश पहुँचकर जब गंगा आरती में शामिल हुआ, तो भीतर एक अजीब-सी शांति थी। लगा कि इस यात्रा ने न केवल मुझे स्थान से स्थान तक पहुँचाया, बल्कि मेरे भीतर भी बहुत कुछ बदल दिया है।

बद्रीनाथ की यह यात्रा मेरे लिए केवल एक तीर्थयात्रा नहीं थी, बल्कि यह आत्मा को शुद्ध करने वाली तपस्या थी। यहाँ आकर महसूस हुआ कि भगवान सिर्फ मंदिर की मूर्ति तक सीमित नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति में हैं जो सच्चे मन से उन्हें खोजता है।जब कोई यात्री बद्रीनाथ पहुँचता है, तो वह सिर्फ पहाड़ों में नहीं चढ़ता — वह अपने भीतर की अंधकार से भी ऊपर उठता है। वहाँ जाकर समझ आया कि भक्ति कोई प्रदर्शन नहीं, एक अनुभव है। बद्रीनाथ धाम अपने आप में ईश्वर की साक्षात झलक है — जहाँ धरती, जल, वायु, अग्नि और आकाश सभी “नारायण” में विलीन प्रतीत होते हैं। अगर कभी आपको मौका मिले, तो बद्रीनाथ जरूर जाइए। वहाँ की हवाओं में ईश्वर बहते हैं, और हर यात्री के हृदय में भक्ति का एक दीपक अपने आप जल उठता है।

इसके बाद हमारा अगला पड़ाव था जगन्नाथपुरी और इस रास्ते मे हम लोग बनारस भी गए थे वहाँ का भी अनुभव आपसे अगले लेख मे साझा करूंगा। तब तक के लिए जय श्री महाकाल! आप सब अपना ख्याल रखिएगा।

 

Also Read- Maa Dhari Devi- जब माँ हुई थी क्रोधित!

NCI

Join WhatsApp

Join Now

Join Telegram

Join Now
error: Content is protected !!