मां छिन्नमस्ता (Chinnamasta maa) देवी तंत्र साधना में अत्यंत शक्तिशाली और दुर्लभ देवियों में गिनी जाती हैं। वे दस महाविद्याओं में से एक हैं और उनका स्वरूप अत्यंत अद्भुत तथा रहस्यमय है। मां छिन्नमस्ता को आत्मबल, त्याग और दिव्य ऊर्जा की मूर्ति कहा जाता है। उनका रूप भयावह होते हुए भी गहन आध्यात्मिक संदेश समेटे हुए है — वह अपने ही सिर को काटकर दो सहेलियों को रक्त पान कराती हैं, जो असीम करुणा, बलिदान और शक्ति के अनंत प्रवाह का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि सृष्टि में ऊर्जा नष्ट नहीं होती, बल्कि निरंतर एक रूप से दूसरे रूप में प्रवाहित होती रहती है।
तांत्रिक परंपरा में मां छिन्नमस्ता की साधना को अत्यंत गुप्त और प्रभावशाली माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि जो साधक दृढ़ निश्चय, शुद्ध मन और विधिवत तांत्रिक नियमों का पालन करते हुए मां की साधना करता है, उसे मनवांछित फल अवश्य प्राप्त होता है। धन-समृद्धि, यश-कीर्ति, शत्रु पर विजय, भय और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति जैसी सिद्धियां मां की कृपा से सहज ही प्राप्त की जा सकती हैं।
मां छिन्नमस्ता साधक को आत्मविश्वास, निर्भयता और दिव्य तेज से परिपूर्ण कर देती हैं। उनकी साधना मन और शरीर की गहराइयों में छिपी सुप्त शक्तियों को जाग्रत करती है। यही कारण है कि इस साधना को साधारण जन के लिए नहीं, बल्कि दृढ़ इच्छाशक्ति और तांत्रिक शुद्धता रखने वाले साधकों के लिए उपयुक्त माना गया है। मां की उपासना करने वाला साधक अपने जीवन की बड़ी से बड़ी बाधाओं को पार कर सफलता और सिद्धि के मार्ग पर अग्रसर हो सकता है। मां छिन्नमस्ता न केवल भौतिक इच्छाओं की पूर्ति करती हैं बल्कि साधक को आध्यात्मिक ऊँचाइयों तक पहुँचने की शक्ति भी प्रदान करती हैं। उनकी साधना में मंत्रों की शक्ति और साधक की एकाग्रता का विशेष महत्व होता है। इसीलिए मां छिन्नमस्ता की तांत्रिक साधना को “मनवांछित फल देने वाली साधना” कहा गया है।
मंत्र- श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोंचनीये हुं हुं फट् स्वाहा ।
विधि-
एक लाख (1,00,000) बार जाप करने से इस देवी की सिद्धि गहरी और प्रभावशाली मानी जाती है — ऐसा माना गया है कि समर्पण, शुद्धता और निरंतरता के साथ किया गया एक लाख जप साधक को पूर्ण सफलता और मनोवांछित फल दिला सकता है। परन्तु यह सिद्धि केवल संख्या भर से नहीं आती; इसमें साधक की निष्ठा, आचरण की पवित्रता, अनुशासन और विधियों का सही पालन आवश्यक है। मंत्र जप करते समय हृदय की सच्ची श्रद्धा, वाणी की शुद्धता और मन की एकाग्रता सबसे बड़े सहायक होते हैं।
यह भी याद रखना चाहिए कि मां छिन्नमस्ता की साधना अत्यंत संवेदनशील और शक्तिशाली है — इसलिए इसे केवल अनुभवी गुरु के मार्गदर्शन में ही आरम्भ और संपन्न करें। बिना सही निर्देश, बिना शुद्धिकरण के या लोभी-स्वार्थी इरादों से की गई साधना का फल उल्टा भी हो सकता है; कई बार अनुचित प्रयोग से साधक को मानसिक तथा आध्यात्मिक असंतुलन का सामना भी करना पड़ सकता है। किसी के साथ अनुचित या अनैतिक काम करने के लिए इस शक्ति का उपयोग करने का विचार एक भारी पाप और पछतावे का कारण बन सकता है — इसलिए कभी भी दूसरों के अधिकारों, आज़ादी या भलाई के विरुद्ध साधना का प्रयोग न करें। सही मार्गदर्शक के साथ साधना में आहार-विहार पर संयम, दैनिक नियम (नियमित जाप, ध्यान, पूजन), और समय-समय पर गुरु से प्रगति का परीक्षण आवश्यक है। साथ ही मानसिक शुद्धि के लिए क्षमा, दान और सत्कर्मों का पालन भी आवश्यक माना जाता है।
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