मनुष्य का मन (Mind) बेहद चंचल (restless) होता है, कभी इधर भागता है, कभी उधर। इस चंचलता को नियंत्रित (control) करना सबसे बड़ा कार्य है, क्योंकि मन यदि वश में आ जाए तो जीवन सुखमय हो जाता है। उदाहरण के तौर पर मदारी (juggler) को देखिए, वह सबसे चंचल जीव बन्दर (monkey) को भी अपने इशारे पर नचाता है। बन्दर को वह अभ्यास (practice) और अनुशासन (discipline) से अपना अनुयायी बनाता है। इसी तरह, जब सबसे तेज भागने वाले बन्दर को रोका जा सकता है, तो मानव का मन भी प्रयास और अभ्यास से वश में लाया जा सकता है। रोजाना नाम स्मरण (chanting), जप, शास्त्र पाठ (scripture recitation) और सत्संग (spiritual gathering) की आदत डालनी चाहिए। जैसे छोटे बच्चे यदि प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा गीता (Gita), रामायण (Ramayan) या कोई धार्मिक ग्रन्थ पढ़ना शुरू करें, नियमित सत्संग सुनना शुरू करें, तो उनके मन का अभ्यास धीरे-धीरे भक्ति (devotion) में होने लगता है। ‘करत करत अभ्यास के जड़ मति होत सुजान, रसरी आवत जात है सिल पर परत निशान’ – अर्थात सतत अभ्यास से पत्थर पर भी निष्टा के निशान पड़ जाते हैं, तो मन को भी संसाधन (discipline) में ढाला जा सकता है।
जीवन में ‘कुछ भी असंभव (impossible) नहीं है’, यदि उसमें लगन (dedication) और जज्बा (passion) हो। मन को वश में करने वाले लोग ही वास्तव में समर्थ (capable), सफल (successful) और संपन्न (prosperous) कहलाते हैं। सवाल यह उठता है कि मन हमारा गुलाम (slave) है या हम मन के गुलाम हैं? आज के समय में अधिकांश मनुष्य अपने मन के वशीभूत होकर चलते हैं। जबकि सही स्थिति यह है कि मन हमारा औजार (tool) है, वह हमारी आज्ञा (instruction) का पालन करे। लेकिन कालांतर में मन इतना बलवती (dominant) हो गया है कि उसने हमें अपना गुलाम बना लिया है। इसीलिए, मन को बार-बार यह समझाने की जरूरत है कि जो उसे करना है, वही करना है – कथा सुननी है तो मन को उसमें लगाना है, जप करना है तो उसमें लगाना है, दान-धर्म करना है तो उसमें लगाना है। यदि अच्छे कार्यों (good deeds) में मन नहीं लगाया, तो यह स्वाभाविकतः बुरे कार्यों (bad deeds) की ओर स्वयं लगा लेता है – इसमें अभ्यास (habit) की भूमिका होती है। यदि किसी व्यक्ति को शराब पीने या सिगरेट पीने की आदत लग जाती है, तो इसके लिए कोई विशेष प्रयास नहीं करना पड़ता। मन तुरंत बुराई में रम जाता है, क्योंकि यह पिछले कई जन्मों के अभ्यास का परिणाम होता है। बार-बार जन्म और मृत्यु में पड़कर, मन पहले भी भटकता रहा है और आज भी भटक रहा है।
सनातन संस्कृति (Sanatan culture) की सबसे बड़ी शिक्षा यह है कि किसी और को जीतना आवश्यक नहीं है, सबसे महत्वपूर्ण स्वयं के मन को जीतना है। यदि कोई स्वयं को जीत सकता है, तो सबको जीत सकता है। यदि स्वयं को नहीं जीत सकता, तो किसी को नहीं जीत सकता। मन जब पड़ोस, मोह, वासना, या बुराइयों की ओर भागे तो उसे कठोरता से रोकना चाहिए। अपने मन को इतनी छूट (freedom) कभी न दें कि वह किसी भी दिशा में भाग चले। रावण (Ravana) का पराभव (downfall) भी इसी कारण हुआ था – उसका मन वश में नहीं था, उसे वह अपनी मर्जी से भटकने देता था।
मन को अनुशासित (disciplined) करने के लिए जरूरी है कि जब भी मन भटकने लगे तो उसे झिड़का जाए, जैसे माता अपने बच्चे को शरारत करते समय डांट देती है। अगर मन कहीं अनुचित चला जाए, तो उसे तुरंत समझाना और मूल कार्य में लगाना आवश्यक है। आजकल के युवाओं में मन नियंत्रण की कमी (lack of control) देखी जाती है – वे क्लबों (clubs) में नाचने, शराब पीने, नशा करने जैसी आदतों में पड़ जाते हैं। “माय लाइफ, माय चॉइस (my life, my choice)” जैसे आदर्श के नाम पर लोग मनमानी (arbitrariness) करने लगे हैं, जिससे वे भटकाव और पतन (downfall) की ओर चले जाते हैं।
मन को आजादी देना अच्छी बात है, लेकिन उसकी सीमाएं (boundaries) तय करनी जरूरी है, वरना यही मन जीवन की दिशा बदल सकता है। मन अगर बुरी लतों की ओर ले जाए तो वो मानव को चरित्रहीन (characterless), नशेड़ी (addict), और पतित (fallen) बना देता है। इसलिए मन की हार जीवन की हार है और मन की जीत ही वास्तविक विजय (real victory) है – ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’।
मन का अंतर्निहित स्वभाव (inherent nature) चंचलता (restlessness) है, लेकिन इसे अभ्यास (practice) से संयमित किया जा सकता है। रोजाना सत्संग, ध्यान, शास्त्र पाठ करना, गीता, रामायण, भागवत, महाभारत का अध्ययन करना, धार्मिक किताबें पढ़ना जरूरी है। इससे मन में ठहराव (stability) आता है। आजकल लोग सोशल मीडिया (social media), व्हाट्सएप (WhatsApp), फेसबुक (Facebook), इंस्टाग्राम (Instagram) पर इतना समय बिताने लगे हैं कि उनकी याददाश्त (memory) कमजोर हो गई है। छोटी-छोटी वीडियो, रील्स (reels) देखकर मन की स्थिरता (stability) समाप्त हो जाती है और स्मरण शक्ति (power of recall) घट जाती है।
जिस प्रकार, अगर बार-बार किसी स्मृति का अभ्यास न किया जाए, तो वो स्मृति भ्रमित (confused) हो जाती है। ऐसे मोबाइल (mobile) की बार-बार चमकती हुई लाइट (flickering light) आँखों की रोशनी (eye sight) को गिरा देती है, वैसे ही बार-बार विचार (thoughts) बदलने से मन की स्थिरता समाप्त हो जाती है। संगीत (music) में भी अच्छा गायक (singer) बनना है, तो स्थिरता (consistency) आवश्यक है, एक सुर (note) को पकड़े रहकर, लंबे समय तक उसका अभ्यास करना पड़ता है। जैसे परिवार में अच्छे रिश्ते (relationships) बनाना हों, तो अपने साथी को समय (time) देना पड़ता है, जल्दबाज़ी (hurry) से कोई रिश्ता नहीं टिकता। यही सिद्धांत (principle) काम, शिक्षा, साधना हर जगह लगता है।
ठहराव (patience) का महत्व समझिए। पिछली पीढ़ी तालाब, नदी, समुद्र (pond, river, ocean) देखा करती थी, प्रकृति (nature) को निहारती थी, जिससे मन में स्थिरता आती थी और लक्ष्य (goal) पर ध्यान केंद्रित रहता था। जैसे तीरंदाज (archer) को लंबा समय लक्ष्य (target) पर ध्यान रखना पड़ता है, वैसे ही मन को लक्षित करना पड़ता है।
सच्चा साधु (ascetic/sage) वही है, जो अपने मन को साध ले, अन्यथा वह असाधु (non-ascetic) है। इसलिए बार-बार एक ही विषय को, एक ही कथा, एक ही पुस्तक को पढ़ना आवश्यक है – बार-बार अभ्यास से ही बात मन में बैठती है। सोशल मीडिया पर बार-बार विषय बदलने से मन में अस्थिरता आ जाती है, और कोई भी ज्ञान (knowledge) या सूचना (information) गहराई से नहीं उतरती। मोबाइल का उपयोग (use of mobile) यदि जरूरी हो तो उतना ही करें जितनी आवश्यकता है, जिसका उद्देश्य (purpose) स्पष्ट हो। पढ़ाई, भक्ति, या रचनात्मकता (creativity) के लिए मोबाइल का इस्तेमाल अच्छा है, मगर रील्स, अनावश्यक वीडियो, या बेमतलब कंटेंट देखने से पूरी तरह बचना चाहिए। लोग कई बार सवाल करते हैं कि मोबाइल पर क्या देखना चाहिए? उत्तर है – वही चीज़ देखें जो आपके लिए उपयुक्त (appropriate) हो, जो आपके व्यक्तित्व (personality) को निखारे, जो आपकी शिक्षा (education), भक्ति, या जिंदगी के उद्देश्य (purpose) को पूरा करे। सोशल मीडिया पर जो आता है, उसे देखने के बजाय, सर्च (search) करके वही कंटेंट देखें जिससे आपको सच में लाभ (benefit) हो।
महाभारत (Mahabharata) जैसे ग्रंथ में भी दृष्टांत (example) है – जब भरी सभा में द्रौपदी (Draupadi) का चीरहरण (disrobing) हो रहा था, तो सभी देखते रहे, विरोध (opposition) किसी ने नहीं किया, इसलिए महान विपत्ति (great crisis) आ गई। हर चीज देखना, हर चीज सुनना, हर चीज कहना, हर चीज़ खाना चाहिए – यह विचार कदापि ठीक नहीं। केवल वह देखिए, जो उचित (appropriate) है; वही बोलिए, जो जरूरी (necessary) है; वही खाइए, जो सेहत (health) के लिए सही है। अधकचरा ज्ञान (half knowledge) सबसे घातक (dangerous) होता है – आधा जल निकालते वक्त गगरी (pitcher) से गिर जाता है, आधी जानकारी (partial knowledge) कभी किसी के काम नहीं आती।
अंततः, बच्चों को बुराइयों (evils) से बचाना हर माता-पिता (parents) का कर्तव्य (duty) है। बच्चों को समझाइए कि मोबाइल का उपयोग जरूरत भर करें, अपना लक्ष्य (goal) स्पष्ट रखें, और मन को मोह, क्रोध, वासना, द्वेष (attachment, anger, lust, jealousy) जैसे विकारों (vices) से दूर रखें। प्रत्येक दिन कुछ समय धर्म (religion), साधना (meditation), सत्संग (spiritual company), और शुद्धता (purity) में लगाइए। अभ्यास और धैर्य (patience) के साथ जीवन में ठहराव लाइए, तभी मन शांत (calm) और मजबूत (strong) बन सकेगा।
हर महान कार्य (great task) में समय (time) और साधना (practice) जरूरी है। नया ज्ञान, नई योग्यता (skill), या नया गुण (virtue) सीखने में उतावलापन (impatience) नहीं चलेगा। किसी भी बीमारी (disease) का इलाज करना है, तो एक ही डॉक्टर (doctor), एक ही दवा (medicine) पर धैर्यपूर्वक (patiently) टिकना पड़ेगा, बार-बार डाक्टर या दवा बदलने से कोई फायदा नहीं होगा। सच्ची समझ (understanding), विवेक (wisdom) और शांति (peace) के लिए ठहराव, साधना और निरंतर अभ्यास अनिवार्य (essential) है।
बच्चों को मोबाइल देखने दें, परंतु साफ निर्देश दें कि केवल वही जानकारी (information) लें जो उनके लक्ष्य, पढ़ाई, और विकास (development) के लिए मिले। जिस तरह दान में दिया जाने वाला अन्न (food), दया (compassion), और सेवा (service) केवल सोचे-समझे व्यक्ति को दी जाती है, उसी तरह मन को भी सिखाइए कि कहां लगाना है, किस काम में लगाना है, और क्या देखना है।इस तरह, मन की चंचलता को अभ्यास, सत्संग, शास्त्र अध्ययन, ध्यान और ठहराव द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। मन जैसे-जैसे नियंत्रित होता जाएगा, जीवन में शांति, ज्ञान, और सफलता (success) अपने आप बरसने लगेगी। महान लक्ष्य (great goals) को साधना है तो मन को अनुशासित (disciplined) और केंद्रित (focused) बनाइये। मन की जीत ही संसार की सबसे बड़ी जीत है – उसी से सच्चा सुख (true happiness) और शांति (peace) मिलती है।