तारा माता (Tara Maa) हिन्दू धर्म की दस महाविद्याओं में से एक प्रमुख शक्ति हैं। उनका स्वरूप देवी दुर्गा के उग्र रूपों में गिना जाता है, लेकिन साथ ही वे करुणामयी और कल्याणकारी माता भी हैं। पौराणिक मान्यता है कि तारा माता साधक को संकटों से बचाती हैं, अज्ञान को दूर करती हैं और शत्रु के अत्याचार से रक्षा करती हैं। वे ज्ञान, शक्ति और सिद्धियों की देवी मानी जाती हैं।
तारा माता का वर्णन शास्त्रों में नीले आभा से युक्त, कमल पर विराजमान और हाथों में खड्ग, कपाला, कमंडलु व अन्य आयुध धारण किए हुए मिलता है। उनका स्वरूप साधक को यह संदेश देता है कि वे अज्ञान और अधर्म के नाश के लिए ही प्रकट हुई हैं। माता तारा की साधना विशेष रूप से शत्रु नाश, भय दूर करने और आत्मबल बढ़ाने के लिए की जाती है। ऐसा कहा गया है कि जब कोई व्यक्ति जीवन में लगातार विरोधियों, ईर्ष्यालु लोगों या छिपे शत्रुओं से परेशान होता है, तब तारा माता के मंत्र का जाप उसे सुरक्षा प्रदान करता है। मंत्र साधना से साधक को आत्मविश्वास, साहस और अदृश्य शक्ति मिलती है।
इसलिए तारा माता का यह मंत्र केवल शत्रु विनाश के लिए ही नहीं, बल्कि आंतरिक शक्ति और दिव्य संरक्षण पाने का मार्ग भी माना जाता है। श्रद्धा, विश्वास और नियमपूर्वक मंत्र जाप करने वाला साधक हर प्रकार की बाधाओं से पार पा सकता है। लेकिन इस मंत्र को बिना योग्य गुरु के सनिध्य के करना हानिकारक हो सकता है। इसलिए इसका इस्तेमाल सोच समझकर करे। किसी निर्दोष व्यक्ति और अपने लालच या गलत सोच मे आकार इसका इस्तेमाल ना करे। किसी भागवत भगत के खिलाफ अगर इसका इस्तेमाल करेंगे तो इसके भारी विपरीत परिणाम हो सकते है ।
मंत्र – ऐं ओं ह्रीं क्रीं हूं फट।
जाप विधि- तारा देवी की साधना में चार लाख (4,00,000) बार मंत्र जप का विधान प्रचलित है। इस आग्रहपूर्ण और लम्बी साधना का उद्देश्य साधक के चारों ओर बनने वाली नकारात्मक शक्तियों, छिपे शत्रु-प्रभाव और लगातार होने वाली बाधाओं को मिटाना होता है। जप पूर्ण निष्ठा, शुद्ध मन और नियमबद्ध अनुशासन से किया जाना चाहिए — हर दिन समय, स्थान और मन की शुद्धता का ध्यान रखना आवश्यक है।
जप की समाप्ति के तुरंत बाद एक हवन किया जाता है जिसमें विशेष रूप से लाल कमल के फूलों का प्रयोग होना चाहिए। कहा जाता है कि हवन में लाल कमल के फूलों का दशांश अर्पित करना चाहिये — यानी हवन समाग्री का एक दसवाँ भाग फूलों के रूप में विशेष रूप से समर्पित करें। इस हवन से तारा देवी की कृपा और बल तेज़ी से सक्रिय होता है और साधना का फल स्थायी रूप से सुदृढ़ होता है।
लोकमान्या देवी-पुराणों तथा साधना-परम्पराओं में इस नियम का पालन करने से साधक को न केवल शत्रु-नाश की सिद्धि मिलती है, बल्कि भीतरी सुरक्षा, आत्मबल और संरक्षण की अनुभूति भी प्राप्त होती है। परन्तु ध्यान रहे कि इस प्रकार की शक्ति का उपयोग केवल रक्षा, निवारण और न्याय के लिए होना चाहिए — किसी पर अनावश्यक अत्याचार या बदला लेने के उद्देश्य से इसका उपयोग नैतिक और धार्मिक दृष्टि से अनुचित माना जाता है। गुरु या अनुभवी साधक की देखरेख में और शुद्ध मन से किए गए जप-हवन का प्रभाव सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
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