Mayong: The Dark Secrets of India’s Black Magic Capital! खौफनाक सच!

By NCI
On: October 2, 2025 11:55 AM

असम का मायोंग गांव, जिसे “भारत की काला जादू की राजधानी” भी कहा जाता है, सदियों से तंत्र-मंत्र और रहस्यमयी विद्याओं का केंद्र रहा है। यह गांव मोरीगांव जिले में स्थित है और यहां के इतिहास में अनेक अद्भुत और रहस्यमयी घटनाएं दर्ज हैं। पुराने समय में इस क्षेत्र में नरबलि (human sacrifice) की प्रथा प्रचलित थी, और यह कथा भी इसी कुप्रथा से जुड़ी हुई है। इस कथा में दो तांत्रिक भाईयों की कहानी सुनाई जाती है, जो अपनी तांत्रिक शक्तियों को बनाए रखने के लिए इंसानों की बलि दिया करते थे। यह कहानी मायोंग म्यूजियम में लिखित रूप में सुरक्षित है, जहां उस अस्त्र (weapon) को भी रखा गया है जिससे बलि दी जाती थी।

मायोंग गांव में स्थित बूढ़ा मायोंग पहाड़ के तल पर मां कालिका का एक मंदिर है, जिसे “कसाय खाती” मंदिर कहा जाता है। कसाय खाती का अर्थ होता है “कच्चा खाने वाली देवी”। यह मंदिर माता काली को समर्पित है, लेकिन इसमें देवी की कोई मूर्ति नहीं है। इसके स्थान पर उस अस्त्र को स्थापित किया गया है जिससे बलि दी जाती थी। आज भी हर साल इस अस्त्र की विधिवत पूजा की जाती है। इस क्षेत्र में तंत्र-साधना की गुप्त परंपरा चली आ रही है, जिसे सिर्फ कुछ विशेष तांत्रिकों द्वारा आगे बढ़ाया जाता था।

मायोंग गांव नीलांचल पहाड़ से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, इस स्थान पर मां सती के शरीर का एक हिस्सा गिरा था, जिससे यह एक शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। इस रहस्यमयी स्थान में दो साधक भाई रहते थे, जो तंत्र विद्या में बहुत पारंगत थे। वे इतने शक्तिशाली थे कि उड़ने की शक्ति (flying ability) प्राप्त कर चुके थे और स्वर्गलोक तक यात्रा कर सकते थे। लेकिन उनकी शक्ति का मुख्य स्रोत नरबलि था। वे हर साल एक निश्चित समय पर स्वर्ग जाते थे, जहां वे अपने इष्टदेव, स्वर्ग के राजा इंद्र की आराधना करते थे।

इन दोनों भाईयों के पास “उड़न मंत्र” था, जिससे वे आकाश में उड़ सकते थे। वे हर साल एक विशेष प्रजाति की लाल रंग की घास, जिसे “खागो” कहा जाता था, से रथ बनाते थे और बलि देने वाले अस्त्र “दाखोर” को लेकर स्वर्ग की यात्रा पर निकलते थे। वहां तीन दिन बिताने के बाद वे लौटते थे। किंतु लौटते समय उनकी चेतना मानवीय नहीं रहती थी और यदि इस दौरान कोई इंसान उन्हें दिख जाता तो वे उसकी गर्दन काटकर उसका रक्त पी जाते थे। यह उनकी शक्ति को बनाए रखने के लिए आवश्यक था। यदि उन्हें कोई मनुष्य नहीं मिलता, तो वे केले के वृक्ष को काटकर उसका रस पी लेते थे, जिसे वे जादुई रक्त मानते थे।

गांव के लोग इस बात से भली-भांति परिचित थे और जब यह तांत्रिक भाई स्वर्ग से लौटते थे, तो सभी को अपने घरों में बंद रहने की चेतावनी दी जाती थी। यदि गलती से भी कोई उनके रास्ते में आ जाता, तो वह उनकी बलि चढ़ा दिया जाता। यह परंपरा सालों तक चलती रही और उनकी शक्तियां बढ़ती रहीं। लेकिन समय के साथ इस भयावह प्रथा का अंत हो गया। अब इस स्थान को एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में देखा जाता है, जहां मायोंग म्यूजियम में वे अस्त्र और अन्य अवशेष सुरक्षित रखे गए हैं, जो इस प्रथा की गवाही देते हैं।

मायोंग गांव की रहस्यमयी कहानियां और तंत्र-मंत्र की विद्या आज भी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं। कई लोग इसे अंधविश्वास मानते हैं, जबकि कुछ का मानना है कि इस स्थान की ऊर्जा और शक्ति अद्भुत है। तंत्र विद्या में रुचि रखने वाले लोग यहां शोध करने आते हैं और इसकी प्राचीन मान्यताओं को समझने का प्रयास करते हैं। मायोंग की यह कथा इस बात का प्रमाण है कि भारत के इतिहास में कई रहस्यमयी और अविश्वसनीय घटनाएं दर्ज हैं, जो आज भी लोगों को आश्चर्यचकित कर देती हैं।

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