Uttarakhand’s New Land Law Shocks Everyone! ज़मीन खरीदना अब नामुमकिन?

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Uttarakhand’s New Land Law

 उत्तराखंड ने हाल ही में अपने भूमि कानूनों में एक महत्वपूर्ण संशोधन किया है, जिससे बाहरी लोगों के लिए इस राज्य में जमीन खरीदना और बेचना पहले की तुलना में कहीं अधिक कठिन हो गया है। यह संशोधन उत्तराखंड ज़मींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम, 1950 में किया गया है, जिसे उत्तराखंड संशोधन विधेयक 2025 के रूप में पारित किया गया। इस नए कानून के तहत, राज्य के 13 जिलों में से 11 जिलों में गैर-निवासियों (non-residents) को कृषि या बागवानी (horticulture) के लिए भूमि खरीदने की अनुमति नहीं होगी। केवल हरिद्वार और उधम सिंह नगर दो ऐसे जिले होंगे जहां बाहरी लोग कुछ शर्तों के साथ भूमि खरीद सकते हैं।

यह कानून इसलिए लाया गया है ताकि राज्य की सांस्कृतिक और भौगोलिक संरचना को संरक्षित किया जा सके। उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य है जहां पर भूमि बहुत सीमित है और पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र हैं। हाल के वर्षों में कई बाहरी निवेशकों ने यहां पर जमीन खरीदी और बड़े होटल, रिसॉर्ट्स और अन्य व्यावसायिक गतिविधियां शुरू कीं, जिससे वहां के मूल निवासियों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इसके अलावा, भूमि माफिया और लैंड शार्क्स (land sharks) द्वारा बड़े पैमाने पर जमीन खरीदने के कारण स्थानीय लोगों के अधिकार भी प्रभावित हो रहे थे। इस कानून के लागू होने से बाहरी लोगों द्वारा अनियंत्रित रूप से भूमि खरीदने की प्रक्रिया पर रोक लगेगी और स्थानीय लोगों के हक सुरक्षित रहेंगे।

उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए यह कानून और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। राज्य में आए दिन भूस्खलन (landslides) और भूकंप (earthquakes) जैसी प्राकृतिक आपदाएं होती रहती हैं, जिनका मुख्य कारण पहाड़ियों में अत्यधिक निर्माण कार्य और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई है। पिछले कुछ दशकों में उत्तराखंड के प्रमुख पर्यटन स्थलों जैसे मसूरी, नैनीताल, ऋषिकेश, और देहरादून में बाहरी लोगों द्वारा खरीदी गई जमीनों पर बड़े-बड़े होटल और कॉम्प्लेक्स बनाए गए, जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी (ecology) को भारी नुकसान हुआ।

अगर हम उत्तराखंड के भूमि कानूनों की तुलना अन्य राज्यों से करें तो यह पाया जाता है कि भारत के कई राज्यों में बाहरी लोगों के लिए भूमि खरीद पर प्रतिबंध हैं। उदाहरण के लिए, हिमाचल प्रदेश में धारा 118 के तहत किसी भी बाहरी व्यक्ति को जमीन खरीदने के लिए सरकार से अनुमति लेनी होती है। इसी तरह, नागालैंड में अनुच्छेद 371A और सिक्किम में अनुच्छेद 371F लागू है, जिसके तहत वहां की स्थानीय जनजातियों और निवासियों के अधिकार सुरक्षित किए गए हैं। अरुणाचल प्रदेश और झारखंड में भी ऐसे ही कानून लागू हैं। उत्तराखंड ने भी अब इसी दिशा में कदम बढ़ाया है और अपने भूमि कानूनों को सख्त किया है।

इसके अलावा, यह संशोधन भूमि के व्यावसायिक उपयोग को भी नियंत्रित करता है। अगर कोई बाहरी व्यक्ति उत्तराखंड में पर्यटन, उद्योग या शैक्षिक संस्थानों के लिए जमीन खरीदना चाहता है, तो अब उसके लिए अधिकतम सीमा 12.5 एकड़ होगी। इससे पहले यह सीमा 250 वर्ग मीटर थी, लेकिन अब इसे संशोधित कर दिया गया है ताकि कोई भी व्यक्ति अनावश्यक रूप से बड़ी जमीन न खरीद सके। यह संशोधन मुख्य रूप से बड़े उद्योगपतियों और जमीन दलालों को रोकने के लिए किया गया है ताकि वे स्थानीय लोगों की जमीन पर कब्जा न कर सकें।

हालांकि, इस कानून के कुछ सकारात्मक और नकारात्मक पहलू भी हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह कानून उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था के विकास में बाधा बन सकता है। कई निवेशक इस कानून की वजह से उत्तराखंड में निवेश करने से पीछे हट सकते हैं, जिससे राज्य में आर्थिक विकास धीमा पड़ सकता है। उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति उत्तराखंड में होटल खोलना चाहता है तो उसे 30 साल की लीज (lease) पर जमीन लेनी होगी, लेकिन इसके बाद जमीन फिर से सरकार को लौटानी होगी। इस स्थिति में कई निवेशक अपनी पूंजी लगाने से बचेंगे, जिससे पर्यटन और अन्य व्यावसायिक क्षेत्रों पर असर पड़ सकता है।

दूसरी ओर, यह कानून स्थानीय लोगों को सुरक्षा प्रदान करता है। यह सुनिश्चित करेगा कि राज्य की जमीन पर केवल वही लोग मालिकाना हक रखेंगे जो वास्तव में उत्तराखंड के निवासी हैं। इसके अलावा, इस कानून के लागू होने से पहाड़ों में अनावश्यक निर्माण कार्यों पर भी रोक लगेगी, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचने की संभावना कम हो जाएगी।

एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इस संशोधन के तहत अगर कोई व्यक्ति कृषि या बागवानी के लिए जमीन खरीदता है, तो उसे इसे तीन साल के भीतर उपयोग में लाना होगा। अगर वह ऐसा नहीं करता है, तो यह जमीन सरकार को वापस सौंप दी जाएगी। इसके अलावा, यदि कोई व्यक्ति 30 साल की लीज पर जमीन लेता है तो उसे तय समय के भीतर इसका उपयोग करना अनिवार्य होगा।

उत्तराखंड सरकार का मानना है कि इस कानून से राज्य में जमीन के अतिक्रमण (encroachment) को रोका जा सकेगा और बाहरी निवेशकों की अनियंत्रित खरीदारी पर रोक लगेगी। सरकार का यह भी कहना है कि यह संशोधन उत्तराखंड की संस्कृति और परंपराओं की सुरक्षा के लिए बहुत आवश्यक था।

हालांकि, कुछ लोग इस कानून की आलोचना भी कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह कानून बाहरी लोगों के साथ भेदभाव करता है और भारत के संविधान के उस मूलभूत अधिकार का उल्लंघन करता है, जिसमें देश के किसी भी नागरिक को कहीं भी बसने और संपत्ति खरीदने का अधिकार दिया गया है। इसके अलावा, कुछ लोगों का यह भी मानना है कि अगर उत्तराखंड में बाहरी लोगों के लिए जमीन खरीदना पूरी तरह से बंद हो जाएगा, तो यह राज्य के आर्थिक विकास को प्रभावित कर सकता है।

अब देखना यह होगा कि आने वाले वर्षों में इस कानून का उत्तराखंड पर क्या प्रभाव पड़ता है। क्या इससे राज्य की अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा या फिर यह कानून वास्तव में स्थानीय लोगों के अधिकारों की रक्षा करने में सफल होगा? यह सवाल भविष्य के आंकड़ों पर निर्भर करेगा। लेकिन फिलहाल, इस नए संशोधन ने उत्तराखंड की भूमि नीति में एक बड़ा बदलाव ला दिया है और यह देखना दिलचस्प होगा कि इसका दीर्घकालिक प्रभाव कैसा रहेगा।

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