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USA Betrays Ukraine? |
डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की के बीच हाल ही में हुए विवाद ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक बड़ा मोड़ ला दिया है। यह विवाद तब गहराया जब ट्रंप ने यूक्रेन को दी जाने वाली अमेरिकी सहायता पर अचानक रोक लगा दी। इस फैसले के तुरंत बाद ही वैश्विक राजनीति में हलचल मच गई और यह सवाल उठने लगे कि क्या अमेरिका अब यूक्रेन को अकेला छोड़ने की तैयारी कर रहा है। ट्रंप के इस फैसले के बाद न केवल यूक्रेन में बल्कि यूरोप और पूरी दुनिया में चिंता की लहर दौड़ गई, क्योंकि अगर अमेरिका अपने कदम पीछे खींच लेता है, तो रूस और अधिक आक्रामक हो सकता है।
रिपोर्ट्स के अनुसार, इस मीटिंग से पहले ही अमेरिकी सीनेट के एक वरिष्ठ सदस्य ने जेलेंस्की को चेतावनी दी थी कि उन्हें सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि यह एक जाल हो सकता है। लेकिन जेलेंस्की इस सलाह को नजरअंदाज कर बैठे और अंत में फंस गए। 50 मिनट की इस महत्वपूर्ण मीटिंग के दौरान सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन आखिरी के 10 मिनट में जेलेंस्की ने कुछ ऐसा कह दिया जिससे ट्रंप भड़क गए। उन्होंने सीधे तौर पर यह जता दिया कि अब अमेरिका यूक्रेन की सहायता नहीं करेगा और यूक्रेन को खुद अपनी लड़ाई लड़नी होगी।
अमेरिका पहले ही यूक्रेन को भारी मात्रा में आर्थिक और सैन्य सहायता दे चुका है। रिपोर्ट्स के अनुसार, अमेरिका ने अब तक यूक्रेन को 350 बिलियन डॉलर (billion dollars) की सहायता दी है, लेकिन अब जब अमेरिका ने हाथ पीछे खींच लिया है, तो यूक्रेन के लिए यह किसी बड़े झटके से कम नहीं है। यूक्रेन को उम्मीद थी कि अमेरिका और यूरोप हमेशा उसके साथ खड़े रहेंगे, लेकिन इस बैठक ने उन उम्मीदों पर पानी फेर दिया। अमेरिका ने साफ कह दिया कि अब कोई अतिरिक्त सैन्य सहायता नहीं दी जाएगी और जो भी डील्स होनी थीं, वह पहले ही हो चुकी हैं।
इस मीटिंग के दौरान एक और चौंकाने वाली बात सामने आई। रिपोर्ट्स के मुताबिक, जेलेंस्की ने गुस्से में आकर रूसी भाषा में कुछ अपशब्द कहे, जिससे ट्रंप और अधिक नाराज हो गए। इसके बाद ट्रंप ने जेलेंस्की को बिना खाना खिलाए ही बाहर निकाल दिया। इस अपमानजनक व्यवहार के बाद जेलेंस्की और उनकी टीम के चेहरे पर निराशा साफ झलक रही थी। उनकी उम्मीद थी कि अमेरिका उनकी मांगों को स्वीकार करेगा, लेकिन हुआ इसके ठीक उलट।
अब सवाल यह उठता है कि अगर अमेरिका अपनी सहायता रोक देता है तो यूक्रेन क्या करेगा? क्या यूरोप उसकी सहायता के लिए आगे आएगा? फिलहाल यूरोप में भी इस मुद्दे को लेकर मतभेद हैं। ब्रिटेन और फ्रांस ने एक महीने के संघर्ष विराम (ceasefire) की बात की है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यह कितना कारगर होगा। वहीं, रूस ने इस पूरी स्थिति को अपने पक्ष में जाते देखा और खुशी जाहिर की। व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) के लिए यह एक बड़ी जीत मानी जा रही है क्योंकि अगर अमेरिका मदद नहीं करेगा, तो यूक्रेन की स्थिति और कमजोर हो जाएगी।
डोनाल्ड ट्रंप की इस नीति के पीछे उनका यह तर्क है कि अमेरिका कोई बैंक नहीं है जो किसी भी देश की लड़ाई को फंड करता रहे। उनके अनुसार, अगर यूक्रेन को अपनी संप्रभुता (sovereignty) की रक्षा करनी है तो उसे अपने दम पर लड़ना होगा, न कि अमेरिका के पैसों पर निर्भर रहना होगा। ट्रंप ने यूरोप को भी इस मामले में अधिक जिम्मेदारी लेने के लिए कहा, क्योंकि रूस का असली खतरा यूरोप पर है, अमेरिका पर नहीं। जेलेंस्की ने अमेरिका को समझाने की कोशिश की कि यूरोप के लिए यह युद्ध बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन ट्रंप इस तर्क से सहमत नहीं हुए।
यूक्रेन पहले ही अपने सैन्य संसाधनों की कमी से जूझ रहा है और अब अमेरिकी सहायता बंद होने से यह संकट और गहरा सकता है। हालांकि, जेलेंस्की ने इस पूरे मामले पर अभी तक कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है, लेकिन माना जा रहा है कि यूक्रेन अब यूरोप की ओर सहायता की उम्मीद से देखेगा। अगर यूरोप भी यूक्रेन का साथ छोड़ देता है तो यूक्रेन के लिए यह बहुत बड़ी चुनौती होगी।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि रूस इस स्थिति का कैसे फायदा उठाता है। अगर अमेरिका और यूरोप यूक्रेन का समर्थन नहीं करते तो रूस को और अधिक बढ़त मिल सकती है। यह पूरी स्थिति न केवल यूक्रेन के लिए बल्कि पूरे यूरोप और अमेरिका के लिए भी एक बड़ा सबक है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में किसी भी देश पर पूरी तरह से निर्भर नहीं रहा जा सकता। इस फैसले के दूरगामी प्रभाव क्या होंगे, यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा, लेकिन फिलहाल यूक्रेन के लिए यह सबसे कठिन समय हो सकता है।