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Trump-Zelensky Clash |
डोनाल्ड ट्रंप और जेलेंस्की के बीच हाल ही में हुई बातचीत ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हलचल मचा दी है। इस मुलाकात के दौरान कई विवादास्पद घटनाएं घटीं, जिन्होंने दुनिया भर का ध्यान खींचा। एक ओर जहां ट्रंप ने अपनी कूटनीतिक रणनीति के तहत जेलेंस्की पर दबाव बनाने की कोशिश की, वहीं दूसरी ओर यूक्रेनी राष्ट्रपति ने भी खुलकर जवाब दिया। ट्रंप की ओर से कैमरों के सामने खुलेआम सवाल-जवाब की रणनीति अपनाई गई, जिससे माहौल और भी तनावपूर्ण हो गया। यह पहली बार नहीं है जब ट्रंप ने इस तरह की रणनीति अपनाई हो। पहले भी वे यूरोपीय नेताओं को इसी तरह असहज कर चुके हैं। इस बैठक में भी कुछ ऐसा ही हुआ जब ट्रंप ने जेलेंस्की से उनके पहनावे को लेकर सवाल किया। यह सवाल न सिर्फ अपमानजनक था, बल्कि यह दिखाता है कि ट्रंप कूटनीतिक शिष्टाचार को कम अहमियत देते हैं। जेलेंस्की ने भी इस टिप्पणी का करारा जवाब देते हुए कहा कि जब यूक्रेन युद्ध जीत जाएगा, तब वे सूट पहनकर आएंगे।
इस पूरी घटना का सबसे बड़ा फायदा रूस और चीन को हुआ है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस पूरी स्थिति से बेहद खुश नजर आ रहे हैं क्योंकि इससे अमेरिका और यूरोप के बीच दरार और गहरी हो गई है। रूस के लिए यह एक बड़ी कूटनीतिक जीत साबित हो रही है, क्योंकि अब अमेरिका यूक्रेन की आर्थिक और सैन्य मदद को सीमित कर सकता है। इससे यूक्रेन के पास रूस के खिलाफ लड़ने के लिए कम संसाधन बचेंगे। वहीं, चीन भी चुपचाप इस पूरे घटनाक्रम को देख रहा है और अपनी रणनीति बना रहा है। चीन के लिए यह स्पष्ट संकेत है कि अगर भविष्य में वह ताइवान पर कोई कार्रवाई करता है, तो अमेरिका की प्रतिक्रिया उतनी प्रभावी नहीं होगी। ट्रंप ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वे अमेरिका को वैश्विक संकटों से अलग रखना चाहते हैं। ऐसे में चीन को लगता है कि ताइवान पर हमले का यह सही मौका हो सकता है।
यूक्रेन को अब समझ में आ रहा है कि अमेरिका उसकी मदद के लिए पहले की तरह आगे नहीं आएगा। अमेरिका ने पहले ही यूक्रेन को दिए जा रहे फंड पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है। अब अमेरिका चाहता है कि उसे यूक्रेन में अपने निवेश का प्रत्यक्ष लाभ मिले, इसलिए वह वहां की खनिज संपत्तियों (mineral resources) पर नियंत्रण की कोशिश कर सकता है। अमेरिका का हथियार उद्योग इस पूरे संघर्ष से बहुत लाभ कमा रहा है, इसलिए उसके लिए यह युद्ध जितना लंबा खिंचे, उतना बेहतर है।
इस विवाद का असर केवल रूस और यूक्रेन तक सीमित नहीं है, बल्कि यूरोप भी इससे बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। यूरोपीय यूनियन अब इस चिंता में है कि अगर अमेरिका ने अपनी मदद रोक दी, तो यूक्रेन का समर्थन अकेले करना उसके लिए मुश्किल हो जाएगा। जर्मनी, फ्रांस और अन्य यूरोपीय देश इस पर चर्चा कर रहे हैं कि आगे की रणनीति क्या होनी चाहिए। यूरोप को यह भी डर है कि अगर यूक्रेन कमजोर पड़ता है, तो रूस की आक्रामकता (aggression) बढ़ सकती है और वह पोलैंड या अन्य पूर्वी यूरोपीय देशों की ओर भी बढ़ सकता है। यूरोप को अब खुद अपनी रक्षा नीति को मजबूत करने की जरूरत महसूस हो रही है।
भारत के लिए भी यह स्थिति बहुत महत्वपूर्ण है। भारत हमेशा से शांति का पक्षधर रहा है और किसी भी सैन्य संघर्ष में सीधे हस्तक्षेप करने से बचता है। नरेंद्र मोदी सरकार इस पूरे मामले पर सतर्क नजर बनाए हुए है। हालांकि, भारत के लिए यह जरूरी है कि वह अमेरिका और रूस दोनों के साथ अपने संबंधों को संतुलित रखे। भारत को भी यह समझना होगा कि अगर अमेरिका वैश्विक मामलों से पीछे हटता है, तो चीन की ताकत बढ़ेगी, जो भारत के लिए खतरा बन सकता है।
डोनाल्ड ट्रंप की नीतियां अमेरिका को दुनिया के मामलों से अलग करने की ओर इशारा कर रही हैं। उन्होंने कई बार कहा है कि अमेरिका को अपने मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए और अन्य देशों की समस्याओं में ज्यादा दखल नहीं देना चाहिए। यह नीति अमेरिका को अंदरूनी रूप से मजबूत कर सकती है, लेकिन इससे उसकी वैश्विक स्थिति कमजोर हो सकती है। अमेरिका का प्रभाव घटने से रूस, चीन और अन्य शक्तियां दुनिया में अपनी पकड़ मजबूत कर सकती हैं।
इस पूरी स्थिति का नतीजा यह होगा कि आने वाले दिनों में अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं। अगर अमेरिका यूक्रेन से अपने हाथ खींचता है, तो रूस अपनी स्थिति को और मजबूत करेगा। वहीं, चीन ताइवान को लेकर अपनी रणनीति बदल सकता है। यूरोप को अपनी रक्षा नीति पर दोबारा विचार करना होगा और भारत को भी अपने कदम संभलकर उठाने होंगे।
यह घटना यह भी दर्शाती है कि वैश्विक राजनीति में स्थिरता बनाए रखना कितना मुश्किल होता जा रहा है। ट्रंप की आक्रामक नीति ने अमेरिका को कई देशों से दूर कर दिया है। कनाडा, मैक्सिको, चीन, यूरोप—कई देशों के साथ अमेरिका के रिश्ते बिगड़ते जा रहे हैं। यह अमेरिका के लिए खतरे की घंटी है, क्योंकि अगर वह अलग-थलग पड़ गया, तो उसकी वैश्विक शक्ति कमजोर हो जाएगी।
अमेरिका की वर्तमान नीति का एक अन्य पहलू यह भी है कि इससे उसके हथियार उद्योग को फायदा हो सकता है। अगर दुनिया में संघर्ष बढ़ता है, तो हथियारों की मांग बढ़ेगी और अमेरिका की रक्षा कंपनियां (defense companies) इससे भारी मुनाफा कमाएंगी। यह रणनीति अमेरिका के आर्थिक हितों के लिए फायदेमंद हो सकती है, लेकिन इससे वैश्विक अस्थिरता (instability) भी बढ़ेगी।
अगर आने वाले दिनों में यह संघर्ष और बढ़ता है, तो इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा। रूस अगर यूक्रेन पर पूरी तरह कब्जा कर लेता है, तो यूरोप की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी। अमेरिका अगर दुनिया से अलग होने की कोशिश करता है, तो चीन अपने प्रभाव को बढ़ा सकता है। भारत के लिए यह समय बहुत सोच-समझकर फैसले लेने का है।
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जहां हर देश को अपनी नीति पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। अमेरिका को समझना होगा कि दुनिया में स्थिरता बनाए रखना उसकी भी जिम्मेदारी है। अगर वह पूरी तरह अपने मुद्दों में उलझ जाता है और वैश्विक समस्याओं से दूरी बना लेता है, तो यह अमेरिका की दीर्घकालिक शक्ति (long-term power) के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है।
अभी यह देखना बाकी है कि डोनाल्ड ट्रंप आने वाले समय में कौन से और विवादास्पद फैसले लेंगे। लेकिन एक बात तय है कि उनकी नीतियां दुनिया में बड़े बदलाव लाने वाली हैं। यूरोप, रूस, चीन, भारत—हर कोई इस नए परिदृश्य में अपनी रणनीति बना रहा है। अब यह देखने वाली बात होगी कि कौन इस स्थिति से सबसे ज्यादा लाभ उठाता है और कौन नुकसान उठाता है।