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Trump Ends Birthright Citizenship! |
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एक नए एग्जीक्यूटिव ऑर्डर ने एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है, जिसमें उन्होंने जन्मजात नागरिकता (Birthright Citizenship) को समाप्त करने की घोषणा की है। इस फैसले का असर विशेष रूप से उन लोगों पर पड़ेगा, जो अमेरिका में जन्म लेने के आधार पर नागरिकता प्राप्त कर लेते थे, चाहे उनके माता-पिता अमेरिकी नागरिक हों या न हों। यह निर्णय अमेरिका के आव्रजन (Immigration) नीतियों में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाएगा और इसका व्यापक असर भारतीय समुदाय पर भी पड़ सकता है, जो बड़ी संख्या में अमेरिका में पढ़ाई और काम करने के लिए जाते हैं।
अमेरिका में अब तक यह नियम था कि यदि कोई बच्चा अमेरिकी भूमि पर जन्म लेता है, तो उसे अमेरिकी नागरिकता स्वचालित रूप से मिल जाती थी, भले ही उसके माता-पिता अवैध रूप से अमेरिका में रह रहे हों या वे अस्थायी वीजा (Temporary Visa) पर ही क्यों न आए हों। इस नीति के कारण कई प्रवासी अमेरिका में जन्म देने के लिए अस्थायी रूप से वहां जाते थे ताकि उनके बच्चे को अमेरिकी नागरिकता प्राप्त हो सके। लेकिन ट्रंप के नए आदेश के बाद अब ऐसा नहीं होगा। अब केवल उन्हीं बच्चों को नागरिकता मिलेगी, जिनके माता-पिता या तो अमेरिकी नागरिक होंगे या फिर वैध स्थायी निवासी (Permanent Resident) होंगे।
इस नीति का सबसे बड़ा प्रभाव भारतीय समुदाय पर पड़ सकता है, क्योंकि अमेरिका में बड़ी संख्या में भारतीय छात्र और पेशेवर एच-1बी वीजा (H-1B Visa) पर काम करते हैं। 2023 में करीब 75% एच-1बी वीजा धारक भारतीय थे, और इनमें से कई लोग अपने बच्चों के जन्म के लिए अमेरिका में रहना पसंद करते थे, ताकि उनके बच्चों को अमेरिकी नागरिकता मिल सके। लेकिन अब इस नीति में बदलाव के कारण, कई भारतीय पेशेवरों और छात्रों को झटका लग सकता है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या इस नीति के चलते अमेरिका से "रिवर्स ब्रेन ड्रेन" (Reverse Brain Drain) हो सकता है? ब्रेन ड्रेन (Brain Drain) का मतलब होता है किसी देश से प्रतिभाशाली और शिक्षित लोगों का अन्य देशों में प्रवास कर जाना। भारत से हर साल हजारों कुशल पेशेवर अमेरिका जाते हैं, खासकर आईटी और टेक्नोलॉजी सेक्टर में नौकरी पाने के लिए। लेकिन अगर अमेरिकी नागरिकता प्राप्त करने के नियम कड़े हो जाते हैं, तो संभव है कि भारतीय पेशेवर वापस भारत लौटने को प्राथमिकता दें। यह भारत के लिए एक बड़ा अवसर बन सकता है।
अगर बड़े पैमाने पर भारतीय पेशेवर वापस लौटते हैं, तो भारत के टेक्नोलॉजी और स्टार्टअप इकोसिस्टम (Startup Ecosystem) को जबरदस्त फायदा हो सकता है। बेंगलुरु, हैदराबाद और पुणे जैसे शहरों में पहले से ही एक मजबूत आईटी उद्योग मौजूद है, और अगर वहां वैश्विक स्तर के अनुभवी भारतीय पेशेवर लौटकर आते हैं, तो इससे भारतीय टेक इंडस्ट्री को और मजबूती मिलेगी। अमेरिका के एआई (AI), ब्लॉकचेन (Blockchain) और क्वांटम कंप्यूटिंग (Quantum Computing) क्षेत्रों में काम करने वाले भारतीय विशेषज्ञ अगर भारत लौटते हैं, तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा वरदान साबित हो सकता है।
इसके अलावा, अगर कुशल भारतीय पेशेवर भारत लौटते हैं, तो यह सरकार के लिए भी एक बड़ा अवसर बन सकता है। भारत सरकार अगर सही नीतियां अपनाए, तो वह इन पेशेवरों को आकर्षित कर सकती है। उदाहरण के लिए, सरकार टेक्नोलॉजी सेक्टर के लिए टैक्स इंसेंटिव (Tax Incentive) दे सकती है, जिससे भारतीय कंपनियां अधिक प्रतिस्पर्धी वेतन (Competitive Salary) दे सकें। कई देशों जैसे दुबई और सिंगापुर में सरकारें प्रवासी भारतीयों को वापस लाने के लिए विशेष सुविधाएं देती हैं, जैसे टैक्स में छूट, रियल एस्टेट में निवेश की सुविधा आदि। भारत को भी ऐसी ही नीतियां अपनानी होंगी, ताकि प्रतिभाशाली भारतीय पेशेवर विदेश में रहने की बजाय भारत में ही काम करना पसंद करें।
इसके अलावा, अमेरिका में अगर कुशल भारतीय पेशेवरों की संख्या घटती है, तो इससे अमेरिकी कंपनियों को भी नुकसान हो सकता है। भारत के आईटी सेक्टर से जुड़े कई पेशेवर माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft), गूगल (Google), अमेज़न (Amazon) और फेसबुक (Facebook) जैसी कंपनियों में काम करते हैं। अगर वे भारत लौटते हैं, तो अमेरिकी कंपनियों को अपने टेक्नोलॉजी सेक्टर में बड़ी कमी का सामना करना पड़ सकता है। इससे हो सकता है कि ये कंपनियां भारत में अपने ऑपरेशन (Operations) बढ़ाएं और भारत में ही अधिक रिसर्च एंड डेवलपमेंट (R&D) सेंटर्स खोलें। इससे भारत में रोजगार के नए अवसर पैदा हो सकते हैं।
इस पूरे घटनाक्रम का एक और बड़ा पहलू यह है कि यह नीति कानूनी विवादों में फंस सकती है। अमेरिका एक संघीय (Federal) प्रणाली वाला देश है, जहां किसी भी बड़े बदलाव को लागू करने के लिए राज्यों की सहमति भी जरूरी होती है। ट्रंप के इस आदेश का पहले ही कई राज्यों और संगठनों द्वारा विरोध किया जा रहा है। कई मानवाधिकार संगठन (Human Rights Organizations) इस फैसले के खिलाफ अदालत में जा सकते हैं, क्योंकि यह संविधान के 14वें संशोधन (14th Amendment) का उल्लंघन कर सकता है। अमेरिका में 18 राज्यों ने इस नीति को लागू करने के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए हैं और इसे रोकने की मांग की है।
अगर यह नीति लागू हो जाती है, तो अमेरिका के अंदर भी सामाजिक और राजनीतिक हलचल तेज हो सकती है। प्यू रिसर्च (Pew Research) के एक सर्वे के मुताबिक, 56% अमेरिकी वयस्क इस नीति के खिलाफ हैं। इसका मतलब है कि आधे से ज्यादा अमेरिकी इस बदलाव को स्वीकार नहीं कर रहे हैं। इसके अलावा, अमेरिकी अदालतें भी इस फैसले को पलट सकती हैं, क्योंकि अतीत में भी कई ऐसे विवादास्पद (Controversial) आदेश कानूनी चुनौतियों के कारण लागू नहीं हो सके थे।
भारत के लिए यह समय आत्मविश्लेषण (Self Analysis) का है। अगर सच में भारतीय पेशेवर अमेरिका छोड़कर वापस आते हैं, तो भारत को उन्हें सही अवसर देने होंगे। सरकार को नई टेक्नोलॉजी कंपनियों को समर्थन देना होगा, स्टार्टअप कल्चर को और मजबूत करना होगा और शिक्षा के क्षेत्र में बड़े बदलाव करने होंगे। अगर यह सब सही तरीके से होता है, तो भारत सिर्फ "रिवर्स ब्रेन ड्रेन" का फायदा ही नहीं उठाएगा, बल्कि एक नया "ब्रेन गेन" (Brain Gain) भी कर सकता है, जिसमें विदेशी कंपनियां भी भारत की ओर आकर्षित होंगी और देश का टेक्नोलॉजी सेक्टर वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम होगा।
ट्रंप का यह फैसला चाहे अमेरिका के लिए विवादास्पद हो, लेकिन भारत के लिए यह एक सुनहरा अवसर बन सकता है। अब यह भारत सरकार और भारतीय कंपनियों पर निर्भर करता है कि वे इस अवसर का कितना फायदा उठा सकते हैं। अगर सही नीतियां बनाई गईं, तो यह भारत के लिए एक नए आर्थिक युग की शुरुआत हो सकती है, जहां देश के होनहार और प्रतिभाशाली पेशेवर विदेश जाने की बजाय अपने देश में ही विश्वस्तरीय इनोवेशन (Innovation) कर सकें।