The Dark Truth of Indian Railways! क्या आपकी ट्रेन भी खतरे में है?

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The Dark Truth of Indian Railways! 

 भारतीय रेलवे, जो कभी देश की जीवनरेखा मानी जाती थी, आज गंभीर संकट से गुजर रही है। 1853 में जब पहली ट्रेन मुंबई के बोरीबंदर स्टेशन से ठाणे तक चली थी, तब किसी ने नहीं सोचा था कि यह रेलवे नेटवर्क एक दिन दुनिया के सबसे बड़े रेलवे नेटवर्क्स में से एक बन जाएगा। यह न केवल लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचाता है बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी गति प्रदान करता है। वर्तमान में भारतीय रेलवे 1.3 लाख किलोमीटर से अधिक लंबे ट्रैक नेटवर्क पर संचालित होता है और प्रतिदिन 23 मिलियन से अधिक यात्रियों को सफर करवाता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में रेलवे की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है, जिसका मुख्य कारण खराब प्रबंधन, पुराना बुनियादी ढांचा, वित्तीय घाटा और स्टाफ की भारी कमी है।

भारतीय रेलवे का वित्तीय संकट बेहद गंभीर हो चुका है। एक समय था जब रेलवे का अलग बजट पेश किया जाता था, लेकिन 2016 में इसे आम बजट में मिला दिया गया। इसका मकसद संसाधनों का बेहतर प्रबंधन और योजनाओं को अधिक प्रभावी बनाना था, लेकिन इसका असर उल्टा पड़ा। रेलवे की कमाई मुख्य रूप से यात्री किराए और माल ढुलाई से होती है। माल ढुलाई से रेलवे को 66% तक का राजस्व प्राप्त होता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में भारी गिरावट आई है। पहले रेलवे माल परिवहन के लिए प्रमुख माध्यम था, लेकिन अब सड़क परिवहन की ओर झुकाव बढ़ गया है, जिससे रेलवे का बाजार कम होता जा रहा है। 2024 तक माल ढुलाई का हिस्सा 80% से घटकर 29% रह गया है। यह रेलवे के लिए बेहद खतरनाक संकेत है, क्योंकि अधिकतर यात्री सेवाएं घाटे में चल रही हैं और रेलवे की यह कोशिश रहती है कि माल ढुलाई से होने वाले लाभ से यात्री सेवाओं का घाटा पूरा किया जाए।

भारतीय रेलवे में कर्मचारियों की भारी कमी भी एक बड़ा मुद्दा बन चुकी है। 2024 में रेलवे में 1.52 लाख से अधिक सेफ्टी कैटेगरी की पोस्ट खाली थीं, यानी इन पदों पर कोई कर्मचारी नहीं था। इसका असर ट्रेन परिचालन और सुरक्षा दोनों पर पड़ रहा है। कई लोको पायलट्स को हफ्ते में 100 से अधिक घंटे काम करना पड़ रहा है, जिससे थकान और दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ जाती है। 2023 में हुए 120 रेल दुर्घटनाओं में से 40% का कारण स्टाफ की कमी को माना गया। इसी के चलते रेलवे ने 2024 में 25,000 नई भर्तियों की योजना बनाई है, लेकिन यह भी एक अस्थायी समाधान ही साबित हो सकता है।

सुरक्षा के मोर्चे पर भी भारतीय रेलवे की हालत बेहद चिंताजनक है। पिछले 5 वर्षों में 200 से अधिक बड़ी रेल दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। रेलवे के ट्रैक्स और रोलिंग स्टॉक्स (coaches और इंजन) की हालत खराब है। ट्रैक की मरम्मत के लिए ₹1 लाख करोड़ की जरूरत है, लेकिन अब तक सरकार द्वारा आवंटित बजट इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए अपर्याप्त साबित हो रहा है। कवच नामक ट्रेन टक्कर-रोकथाम प्रणाली केवल 1,548 किलोमीटर रूट पर लागू की गई है, जबकि देश में रेलवे नेटवर्क 1.4 लाख किलोमीटर से अधिक लंबा है। इससे स्पष्ट है कि सुरक्षा के मोर्चे पर रेलवे अभी बहुत पीछे है।

भारतीय रेलवे में ओवरक्राउडिंग (अधिक भीड़) भी एक गंभीर समस्या बन गई है। ट्रेनों में यात्रियों की अधिक भीड़ ट्रैक्स पर अतिरिक्त दबाव डालती है और इससे दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है। कई मुख्य मार्गों पर रेल पटरियां अपनी निर्धारित क्षमता से 140% से 150% अधिक लोड झेल रही हैं। यह ओवरलोडिंग रेलवे की कार्यक्षमता को भी कम कर रही है, जिससे ट्रेनें लेट हो रही हैं और यात्रियों को असुविधा हो रही है।

रेलवे का बुनियादी ढांचा भी बेहद जर्जर हालत में है। अधिकांश रेलवे स्टेशनों पर यात्रियों के लिए पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। कई स्टेशनों पर प्लेटफॉर्म की संख्या बहुत कम है, जिससे यात्रियों को असुविधा होती है। उदाहरण के लिए, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से प्रतिदिन 5 लाख से अधिक यात्री यात्रा करते हैं, लेकिन यहां केवल 16 प्लेटफॉर्म ही उपलब्ध हैं। यह स्थिति दर्शाती है कि रेलवे को अपने बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की सख्त जरूरत है।

हालांकि सरकार रेलवे को आधुनिक बनाने के लिए प्रयास कर रही है। पिछले 10 वर्षों में रेलवे के बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण पर ₹10 लाख करोड़ से अधिक खर्च किए गए हैं। रेलवे ट्रैक्स का विद्युतीकरण 95% तक पूरा हो चुका है और नई ट्रेनों को शुरू किया जा रहा है। स्टेशन पुनर्विकास योजना के तहत 1,351 स्टेशनों पर नई सुविधाएं जोड़ी जा रही हैं। 866 स्टेशनों पर कोच गाइडेंस सिस्टम और 6,112 स्टेशनों पर मुफ्त वाई-फाई की सुविधा दी गई है। ‘वन स्टेशन, वन प्रोडक्ट’ योजना के तहत 1,900 स्टेशनों पर 2,163 स्टॉल खोले गए हैं, जिससे स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा दिया जा सके।

सरकार ने रेलवे के वित्तीय संकट को दूर करने और उसकी कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए कुछ अहम कदम उठाए हैं। रेलवे को प्राइवेट सेक्टर के लिए खोला जा रहा है और निजी कंपनियों को ट्रेन संचालन में भाग लेने की अनुमति दी जा रही है। निजी निवेश को आकर्षित करने के लिए सरकार रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल लागू कर रही है। लेकिन निजीकरण को लेकर भी कुछ चिंताएं हैं। कई विशेषज्ञों का मानना है कि रेलवे का निजीकरण यात्रियों के लिए किराया बढ़ाने का कारण बन सकता है और गरीब यात्रियों के लिए सफर करना मुश्किल हो सकता है।

भारतीय रेलवे की मौजूदा समस्याओं का समाधान केवल वित्तीय सुधारों से संभव नहीं है। रेलवे को अपनी रणनीतियों में बड़ा बदलाव करने की जरूरत है। सबसे पहले, रेलवे को माल ढुलाई से मिलने वाले राजस्व को बढ़ाने के लिए अपनी नीतियों में सुधार करना होगा। रेलवे को यात्री किरायों और माल भाड़े के बीच संतुलन स्थापित करने की जरूरत है, ताकि दोनों क्षेत्र लाभदायक बने रहें। इसके अलावा, रेलवे को अपने ट्रैक्स और रोलिंग स्टॉक के रखरखाव में बड़े पैमाने पर निवेश करने की आवश्यकता है। ट्रेनों की देरी को कम करने और यात्रियों को बेहतर अनुभव देने के लिए ऑटोमेटिक सिग्नलिंग और मॉडर्न ट्रेन कंट्रोल सिस्टम को लागू किया जाना चाहिए।

निष्कर्षतः भारतीय रेलवे की मौजूदा स्थिति बेहद चिंताजनक है। यह प्रणाली देश के करोड़ों लोगों की जरूरतों को पूरा करती है और इसकी विफलता पूरे देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती है। हालांकि सरकार रेलवे को सुधारने के लिए कदम उठा रही है, लेकिन सुधारों की गति बहुत धीमी है। रेलवे को एक समग्र सुधार योजना अपनाने की जरूरत है, जिसमें वित्तीय स्थिरता, बेहतर सुरक्षा उपाय, आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर और प्रभावी प्रबंधन शामिल हों। यदि ये कदम नहीं उठाए गए, तो भारतीय रेलवे की स्थिति आने वाले वर्षों में और भी खराब हो सकती है।

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