Mysterious "Gravity Hole" Found in Indian Ocean! वैज्ञानिक भी रह गए दंग!

NCI

Gravity Hole

 भारतीय महासागर के नीचे एक विशाल गुरुत्वाकर्षण छिद्र (Gravity Hole) होने की खोज ने वैज्ञानिकों को हैरान कर दिया है। इस रहस्यमयी खोज को भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) बैंगलोर के वैज्ञानिकों ने सुपर कंप्यूटर की मदद से सिमुलेट किया और यह निष्कर्ष निकाला कि यह छिद्र करीब 100 मीटर गहरा है। इस खोज के अनुसार, गुरुत्वाकर्षण का यह असामान्य क्षेत्र समुद्र तल को नीचे की ओर खींच रहा है, जिससे वहां एक बड़ा गड्ढा बन चुका है। इस अध्ययन के मुताबिक, 140 मिलियन वर्ष पहले हुए भूगर्भीय घटनाक्रमों के कारण यह गुरुत्वाकर्षण असमानता बनी। वैज्ञानिकों ने पाया कि यह क्षेत्र लो डेंसिटी (कम घनत्व) का है, जिससे गुरुत्वाकर्षण बल वहां अपेक्षाकृत कम है। इस क्षेत्र का अध्ययन करने से यह स्पष्ट होता है कि पृथ्वी की संरचना पूरी तरह से गोल नहीं है, बल्कि इसका आकार थोड़ा अनियमित (Irregular) है, जिसे वैज्ञानिक भाषा में जिओइड (Geoid) कहा जाता है। पृथ्वी का यह असमान स्वरूप गुरुत्वाकर्षण बल को विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग करता है।

यह गुरुत्वाकर्षण छिद्र मेरियाना ट्रेंच (Mariana Trench) की तरह नहीं है, जो विश्व का सबसे गहरा महासागरीय गर्त है। मेरियाना ट्रेंच, जो फिलीपींस के पास स्थित है, समुद्री प्लेटों के टकराने और एक-दूसरे के नीचे धंसने (Subduction) के कारण बना था। लेकिन भारतीय महासागर में स्थित यह गुरुत्वाकर्षण छिद्र अलग तरह से बना है। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह छिद्र प्लेट टेक्टोनिक्स (Plate Tectonics) के कारण बना, जब भारतीय टेक्टोनिक प्लेट अफ्रीकी प्लेट से अलग हुई थी। जब यह प्लेटें अलग हुईं, तब महासागर की सतह पर लो डेंसिटी और लो ग्रेविटी वाले क्षेत्र बने, जिससे यह छिद्र विकसित हुआ। इस अध्ययन से यह भी पता चलता है कि जब भारतीय प्लेट गोंडवाना लैंड (Gondwana Land) से अलग हुई और उत्तर की ओर बढ़ी, तब इस क्षेत्र में भारी भूगर्भीय परिवर्तन हुए। इस घटना के कारण भारतीय महासागर के कुछ हिस्सों में असमान गुरुत्वाकर्षण बल बना, जिससे वहां का समुद्री तल धंसने लगा।

गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव पूरी पृथ्वी पर समान नहीं होता। यह पृथ्वी की आंतरिक संरचना, प्लेटों की गति और पृथ्वी की घूर्णन गति (Rotation) पर निर्भर करता है। पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल औसतन 9.8 मीटर प्रति सेकंड स्क्वायर होता है, लेकिन इस छिद्र के कारण इस क्षेत्र में गुरुत्वाकर्षण बल अपेक्षाकृत कम हो गया है। इससे यह क्षेत्र एक निम्न-घनत्व क्षेत्र (Low-Density Region) बन गया, जहां समुद्री जल का स्तर सामान्य समुद्र तल की तुलना में थोड़ा नीचे है। वैज्ञानिकों ने इस छिद्र का अध्ययन करते हुए यह पाया कि यह क्षेत्र लाखों वर्षों में विकसित हुआ और इसके पीछे प्लेटों की गतिविधियों और मैग्मा के प्रवाह (Magma Plume) का मुख्य योगदान रहा।

आईआईएससी बैंगलोर के वैज्ञानिकों ने सुपर कंप्यूटर की मदद से इस क्षेत्र के पिछले 140 मिलियन वर्षों के भूगर्भीय परिवर्तनों को सिमुलेट किया। उन्होंने पाया कि अफ्रीकी सुपरप्लम (Superplume) नामक एक विशाल भूगर्भीय घटना के कारण भारतीय महासागर के इस क्षेत्र में लो डेंसिटी बनी। जब मैग्मा (Magma) गहराई से ऊपर की ओर उठता है, तो वह आसपास की चट्टानों को गर्म कर देता है और यह क्षेत्र कम घनत्व वाला बन जाता है। इस प्रक्रिया से गुरुत्वाकर्षण बल कमजोर हो जाता है और समुद्री तल नीचे धंसने लगता है।

इतिहास को देखें तो 1948 में डच भू-भौतिक विज्ञानी (Geophysicist) फेलिक्स एंड्रियास वैन मिज्स (Felix Andrias Van Mijs) ने पहली बार इस क्षेत्र की गुरुत्वाकर्षण असमानता (Gravity Anomaly) का उल्लेख किया था। उन्होंने इसे "एनॉमली" (Anomaly) नाम दिया, जिसका अर्थ है सामान्य से भिन्न या असामान्य। उनकी रिसर्च के अनुसार, पृथ्वी की सतह पर कुछ स्थानों पर गुरुत्वाकर्षण अधिक और कुछ स्थानों पर कम होता है। उनकी इस खोज के बाद, वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र में और अधिक अध्ययन किए, लेकिन हाल ही में आईआईएससी बैंगलोर की टीम ने सुपर कंप्यूटर सिमुलेशन का उपयोग करके इस रहस्य को और गहराई से समझने में सफलता प्राप्त की।

भारतीय महासागर में बना यह छिद्र लगभग 1.2 मिलियन स्क्वायर मील के क्षेत्र में फैला हुआ है। यह कोई छोटा सा गुरुत्वाकर्षण परिवर्तन नहीं है, बल्कि यह एक विशाल भूगर्भीय संरचना है, जिसका प्रभाव समुद्र के जल स्तर, समुद्री धाराओं (Ocean Currents) और पृथ्वी के घूर्णन (Rotation) पर पड़ सकता है। हालांकि, यह छिद्र किसी भी तरह का खतरा पैदा नहीं करता, लेकिन यह पृथ्वी की आंतरिक भूगर्भीय गतिविधियों को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह खोज हमें भविष्य में अन्य भूगर्भीय घटनाओं और पृथ्वी की आंतरिक परतों (Earth’s Mantle) के बारे में अधिक जानकारी दे सकती है।

गुरुत्वाकर्षण छिद्र की इस खोज का महत्व केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि भौगोलिक और जलवायु परिवर्तन (Climate Change) की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। पृथ्वी की सतह पर गुरुत्वाकर्षण असमानता समुद्री स्तर में बदलाव ला सकती है, जो कि जलवायु परिवर्तन और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र (Marine Ecosystem) को प्रभावित कर सकता है। हालांकि, इस छिद्र का समुद्र के स्तर पर प्रत्यक्ष प्रभाव अभी तक स्पष्ट नहीं है, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि इस पर अधिक शोध की आवश्यकता है।

अध्ययन से यह भी पता चलता है कि यदि पृथ्वी के अन्य हिस्सों में भी इस तरह की गुरुत्वाकर्षण असमानता मौजूद है, तो यह हमारी पृथ्वी की संरचना को नए दृष्टिकोण से समझने में मदद कर सकती है। गुरुत्वाकर्षण बल और पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेटों के बीच संबंध को समझने के लिए इस अध्ययन से महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले गए हैं। पृथ्वी की आंतरिक प्रक्रियाओं को समझने के लिए इस तरह के अध्ययन बेहद आवश्यक हैं, क्योंकि यह हमें भविष्य में होने वाले भूगर्भीय परिवर्तनों का अनुमान लगाने में मदद कर सकते हैं।

कुल मिलाकर, भारतीय महासागर में यह गुरुत्वाकर्षण छिद्र पृथ्वी की भूगर्भीय संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसकी खोज वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है, जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण असंतुलन और टेक्टोनिक गतिविधियों को बेहतर तरीके से समझने में सहायक होगी। यह अध्ययन केवल अतीत की भूगर्भीय घटनाओं को उजागर नहीं करता, बल्कि भविष्य में भूगर्भीय परिवर्तनों के अध्ययन के लिए भी एक नई राह खोलता है। भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा की गई यह खोज पृथ्वी की सतह के रहस्यों को उजागर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो भविष्य में और अधिक रोचक निष्कर्ष सामने ला सकती है।

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