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Massacre in Syria! |
सीरिया में हाल ही में हुए संघर्षों ने पूरे विश्व को झकझोर कर रख दिया है। यह कहानी 27 नवंबर से शुरू होती है, जब जबल श्याम ग्रुप एचटीएस (HTS) ने अचानक हमला बोल दिया और इदलिब, अलेप्पो, हमा और आखिरकार दमिश्क तक नियंत्रण कर लिया। केवल दस दिनों के भीतर ही बशर अल-असद की सरकार ध्वस्त हो गई और वे रूस भागने को मजबूर हो गए। इस सत्ता परिवर्तन के साथ ही एचटीएस के नेता अहमद अल शरा को राष्ट्रपति घोषित कर दिया गया। उन्होंने सत्ता संभालने के बाद घोषणा की कि अब देश में नया संविधान लागू होगा और पुराने नियमों को समाप्त कर दिया जाएगा। लेकिन इस नई शुरुआत में अत्यधिक रक्तपात और हिंसा भी शामिल रही, जिसने लाखों लोगों की जिंदगी को प्रभावित किया।
सीरिया इस समय पूरी तरह से एचटीएस और उनके सहयोगियों के नियंत्रण में है। बशर अल-असद के समर्थकों के पास अब केवल कुछ ही छोटे इलाके बचे हैं, जिन पर वे मुश्किल से अपनी पकड़ बनाए हुए हैं। संघर्ष के दौरान महिलाओं और बच्चों को भी बर्बरता का सामना करना पड़ा। रिपोर्टों के अनुसार, सड़कों पर लाशें बिखरी हुई थीं और कई महिलाओं को निर्वस्त्र कर गोली मार दी गई। यह सब बेहद क्रूर और दिल दहला देने वाला था। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक लगभग 1300 लोग मारे गए, लेकिन वास्तविक संख्या इससे कई गुना अधिक हो सकती है।
सीरिया का इतिहास लंबे समय से संघर्षों और सत्ता पलट से भरा हुआ है। 1960 के दशक में कई बार सत्ता परिवर्तन हुआ, लेकिन 1967 में हाफिज अल-असद, जो उस समय सीरिया के रक्षा मंत्री थे, ने सरकार पर नियंत्रण कर लिया और सत्ता स्थिर हो गई। हाफिज अल-असद का शासन मजबूत रहा, लेकिन उनके पुत्र बशर अल-असद इसे बनाए रखने में असफल रहे। अरब स्प्रिंग के दौरान, जब पूरे मध्य पूर्व में क्रांति की लहर चल रही थी, तब बशर अल-असद ने अपने विरोधियों पर दमन चक्र चला दिया, जिससे देश में गृहयुद्ध भड़क गया। अमेरिका और रूस ने इस युद्ध में अलग-अलग पक्षों का समर्थन किया, जिससे स्थिति और भी जटिल हो गई।
नए राष्ट्रपति अहमद अल शरा की पृष्ठभूमि भी विवादास्पद रही है। उन्होंने सबसे पहले अल-नुसरा फ्रंट नामक संगठन बनाया, जो बाद में अल-कायदा से जुड़ा। हालांकि, बाद में उन्होंने खुद को अल-कायदा से अलग कर लिया और 2017 में एचटीएस की स्थापना की। उनका मुख्य उद्देश्य था बशर अल-असद की सरकार को उखाड़ फेंकना और सीरिया को "स्वतंत्र" बनाना। अंततः, दिसंबर में उन्होंने असद सरकार को गिरा दिया और दस दिनों के भीतर पूरा नियंत्रण हासिल कर लिया। हालांकि, असद समर्थकों की संख्या अभी भी काफी अधिक है और वे हार मानने को तैयार नहीं हैं।
सीरिया के तटीय शहरों जैसे लताकिया, बनियास, तारतूस और जबलेह में अब भी असद समर्थक बड़ी संख्या में मौजूद हैं। ये शहर व्यापार और रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि यह भूमध्य सागर के किनारे स्थित हैं। अमीर लोग भी अधिकतर इन्हीं शहरों में रहते हैं, जिनमें से अधिकतर अलवाइट समुदाय के हैं। यही कारण है कि इन शहरों में संघर्ष अब भी जारी है। अहमद अल शरा की सरकार ने यहां अपने सैनिकों को तैनात कर दिया है, जबकि असद समर्थक इनसे लड़ने के लिए तैयार हैं। दोनों पक्षों के बीच लगातार हिंसा हो रही है, जिसमें आम नागरिकों को सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।
6 मार्च को खबर आई कि असद समर्थकों ने एक मिलिट्री पर्सनल की हत्या कर दी। इसके बाद सरकारी बलों ने पलटवार किया और तटीय क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर हिंसा शुरू हो गई। मात्र दो दिनों के भीतर 1300 से अधिक लोगों की मौत हो गई, जिनमें से अधिकतर अलवाइट समुदाय के थे। ह्यूमन राइट्स संगठनों ने इस हत्याकांड की कड़ी निंदा की, लेकिन किसी भी अंतरराष्ट्रीय ताकत ने इसमें हस्तक्षेप नहीं किया। महिलाओं को सार्वजनिक रूप से परेड करवा कर गोली मारी गई, जिससे पूरे विश्व में आक्रोश फैल गया। रिपोर्टों के अनुसार, यह हिंसा बदले की भावना से की गई थी, जिसमें असद समर्थकों को सबक सिखाने की कोशिश की गई।
नई सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह अब पूरे देश पर नियंत्रण करना चाहती है और किसी भी असंतोष को बर्दाश्त नहीं करेगी। कई लोग मानते हैं कि यह सत्ता परिवर्तन केवल नाममात्र का है और इससे आम नागरिकों की स्थिति में कोई सुधार नहीं होगा। मीडिया पर पूरी तरह से सरकारी नियंत्रण है, जिससे सच्चाई का पता लगाना मुश्किल हो गया है। कई रिपोर्टें इस ओर इशारा कर रही हैं कि यह सब योजनाबद्ध तरीके से किया गया नरसंहार (genocide) है, जिसमें सरकार अपने विरोधियों को पूरी तरह से समाप्त करना चाहती है।
सीरिया का भविष्य इस समय बेहद अनिश्चित नजर आ रहा है। राष्ट्रपति अहमद अल शरा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। सीरिया में अमेरिका, रूस, इज़राइल और ईरान जैसे देशों के भी हित जुड़े हुए हैं, जो इस संघर्ष को और जटिल बना रहे हैं। बाहरी ताकतों के हस्तक्षेप की संभावना भी बनी हुई है, जिससे स्थिति और भी बिगड़ सकती है।
इस संघर्ष ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि सत्ता के लिए की जाने वाली लड़ाइयों में सबसे अधिक नुकसान आम लोगों को उठाना पड़ता है। घरों से बेघर हुए लाखों लोग, अनाथ हुए बच्चे, बर्बाद हुए शहर और लहूलुहान गलियां इस बात का प्रमाण हैं कि युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। फिलहाल, हिंसा में थोड़ी कमी आई है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह संघर्ष जल्द खत्म होने वाला नहीं है। आगे क्या होगा, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन फिलहाल सीरिया का भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा है।