Kerala on the Brink of Economic Collapse! सच जानें!

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Kerala on the Brink of Economic Collapse! 

 केरल इस समय गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है, और यह संकट इतना गहरा हो गया है कि राज्य के वित्तीय भविष्य पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। केरल को अब तक भारत का एक मॉडल राज्य माना जाता था, जहां साक्षरता दर 100% के करीब है, और एक मजबूत वेलफेयर सिस्टम (कल्याणकारी व्यवस्था) मौजूद है। लेकिन हालात अब बेहद खराब हो चुके हैं। राज्य सरकार पर कर्ज का बोझ इतना अधिक हो गया है कि उसके लिए अपने ही कर्मचारियों की सैलरी, पेंशन और अन्य वित्तीय दायित्व पूरे करना मुश्किल हो गया है।

केरल का आर्थिक संकट इस वजह से और बढ़ गया है क्योंकि उसकी अधिकांश वित्तीय रणनीतियां उधारी पर आधारित रही हैं। यानी कि राज्य सरकार बार-बार कर्ज लेती रही है, लेकिन उस कर्ज से ऐसी कोई गतिविधि नहीं की गई जिससे राजस्व (revenue) बढ़े। परिणामस्वरूप अब स्थिति यह हो गई है कि सरकार को मिलने वाले राजस्व का 75% हिस्सा केवल सैलरी, पेंशन और ब्याज भुगतान में चला जाता है, जिससे विकास कार्यों के लिए कुछ नहीं बचता। विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक अस्थिर (unsustainable) मॉडल है, जो लंबे समय तक टिक नहीं सकता।

अगर पिछले कुछ वर्षों की बात करें, तो 2016 से 2022 के बीच केरल का कुल कर्ज 1.8 लाख करोड़ से बढ़कर 3.5 लाख करोड़ हो गया, यानी पांच सालों में इसमें 80% की वृद्धि हुई। यह दर्शाता है कि सरकार लगातार कर्ज पर निर्भर रही है, लेकिन इस कर्ज का कोई उपयोगी परिणाम नहीं निकला। यही कारण है कि अब कर्ज का ब्याज चुकाने में भी सरकार की हालत पतली हो गई है।

एक और बड़ी समस्या केरल की नौकरशाही (bureaucracy) में ओवरस्टाफिंग (अत्यधिक कर्मचारी) है। सरकारी विभागों में जरूरत से ज्यादा लोग भरे गए हैं, जिससे सरकार के खर्चे बढ़ते जा रहे हैं। उदाहरण के लिए, केरल में प्रति लाख जनसंख्या पर सरकारी कर्मचारियों की संख्या कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों की तुलना में कहीं अधिक है। जहां कर्नाटक में एक अधिकारी औसतन 1,425 हेक्टेयर क्षेत्र संभालता है, वहीं केरल में यह आंकड़ा मात्र 141 हेक्टेयर है। इससे साफ जाहिर होता है कि संसाधनों का सही तरीके से उपयोग नहीं हो रहा है और सरकार को अनावश्यक रूप से वेतन पर खर्च करना पड़ रहा है।

इसके अलावा, केरल सरकार ने सामाजिक कल्याण योजनाओं पर इतना अधिक खर्च कर दिया है कि अब उसे खुद ही वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है। पिछले 13 वर्षों में राज्य में सामाजिक सुरक्षा पेंशन पाने वालों की संख्या 16 लाख से बढ़कर 57 लाख हो गई है। इससे सरकार पर आर्थिक बोझ बढ़ा है और अब हालत यह है कि पेंशन की चार किश्तें अभी तक जारी नहीं हो पाई हैं। राज्य सरकार खुद स्वीकार कर रही है कि वह समय पर पेंशन देने में सक्षम नहीं है।

सरकार ने इस संकट से उबरने के लिए केरल इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड (KIIFB) जैसी संस्थाओं का गठन किया, ताकि बजट से इतर (off-budget financing) तरीके से फंड्स जुटाए जा सकें। लेकिन यह रणनीति पूरी तरह से विफल हो गई क्योंकि अब उधारी की सीमा पार हो चुकी है और राज्य को और अधिक कर्ज मिलने की संभावना बहुत कम है।

राज्य सरकार अपनी नाकामी को स्वीकार करने के बजाय केंद्र सरकार को इस संकट के लिए जिम्मेदार ठहराने की कोशिश कर रही है। केरल की लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) सरकार का कहना है कि केंद्र सरकार ने राज्य के 5,000 करोड़ रुपये रोक दिए, जिससे उसकी वित्तीय स्थिति बिगड़ गई। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि असली समस्या केरल की फिजिकल इनडिसिप्लिन (वित्तीय अनुशासन की कमी) है।

राज्य की आर्थिक स्थिति का असर यहां के उद्योगों और व्यवसायों पर भी पड़ा है। पिछले नौ वर्षों में केरल में 42,180 छोटे और मध्यम उद्योग (MSME) बंद हो चुके हैं, जिससे हजारों लोग बेरोजगार हो गए हैं। सरकार की नीतियों के कारण नए व्यापार शुरू करना मुश्किल होता जा रहा है, और जो उद्योग पहले से काम कर रहे थे, वे भी बंद होने की कगार पर हैं।

इसके अलावा, केरल की स्वास्थ्य सेवाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली आशा (ASHA) वर्कर्स भी संकट में हैं। पिछले तीन महीनों से इन वर्कर्स को वेतन नहीं मिला है, और वेतन बढ़ाने की उनकी मांग भी अनसुनी कर दी गई है। दूसरी तरफ, केरल पब्लिक सर्विस कमीशन (PSC) के अध्यक्ष और सदस्यों की सैलरी में भारी इजाफा कर दिया गया है। PSC के अध्यक्ष की सैलरी 7,000 रुपये से बढ़ाकर एक लाख रुपये कर दी गई, जबकि सदस्यों की सैलरी 71,000 रुपये से बढ़ाकर दो लाख रुपये कर दी गई। यह विरोधाभास (contradiction) दर्शाता है कि सरकार किस तरह से गलत प्राथमिकताओं पर खर्च कर रही है।

कुल मिलाकर, केरल की मौजूदा आर्थिक स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। अगर समय रहते जरूरी सुधार नहीं किए गए, तो यह संकट और भी गहरा सकता है। सरकार को चाहिए कि वह व्यापार और निवेश को बढ़ावा दे, नौकरशाही में सुधार करे और वित्तीय अनुशासन अपनाए। अन्यथा, केरल का आर्थिक पतन (economic collapse) अब केवल समय की बात रह जाएगी।

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