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Is India Getting Pitch Advantage? |
चैंपियंस ट्रॉफी के सेमीफाइनल मुकाबले में एक नई बहस ने जन्म ले लिया है, जो क्रिकेट के मैदान से ज्यादा विवादों की पिच पर खेली जा रही है। यह बहस इस बात पर केंद्रित है कि दुबई में खेले जाने वाले मैचों में भारतीय टीम को पिच का फायदा मिल रहा है। इस आरोप ने खेल जगत में हलचल मचा दी है, और कई पूर्व क्रिकेटर, विशेषज्ञ और प्रशंसक इस विषय पर अपनी राय दे रहे हैं। इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब नासिर हुसैन और पैट कमिंस जैसे दिग्गज खिलाड़ियों ने यह आरोप लगाया कि दुबई की पिच भारतीय टीम के अनुकूल बनाई गई है, जिससे उन्हें अन्य टीमों की तुलना में अधिक लाभ मिल रहा है। विशेष रूप से, पाकिस्तान की ओर से इस विषय पर तीखी प्रतिक्रियाएँ देखने को मिलीं, जिसमें उन्होंने खुलकर कहा कि यह पूरी रणनीति भारत के पक्ष में बनाई गई है।
भारतीय क्रिकेट के दिग्गज सुनील गावस्कर ने इस विवाद पर अपनी बेबाक राय रखी और कहा कि अगर अन्य टीमें इस पिच पर खेलने में असहज महसूस कर रही हैं तो उनके पास एक ही विकल्प है – खेलिए या फिर प्रतियोगिता से बाहर हो जाइए। उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह के आरोप भारतीय क्रिकेट को नीचा दिखाने की एक कोशिश भर हैं, जबकि असली सवाल यह होना चाहिए कि विरोधी टीमें खुद को इस पिच के अनुसार ढाल क्यों नहीं पाईं। गावस्कर का यह बयान उन आलोचकों के लिए एक करारा जवाब था, जो यह मानते हैं कि भारतीय टीम को अनैतिक रूप से फायदा दिया जा रहा है।
इस पूरे विवाद के पीछे कुछ बड़े मुद्दे छिपे हुए हैं, जो सिर्फ क्रिकेट तक सीमित नहीं हैं। क्रिकेट में हमेशा से पिच का प्रभाव एक महत्वपूर्ण पहलू रहा है। हर देश में उसके घरेलू मैदानों पर पिच की प्रकृति अलग होती है, और वह आमतौर पर मेजबान टीम के अनुकूल होती है। भारत में स्पिनरों को मदद करने वाली पिचें बनाई जाती हैं, जबकि इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में तेज गेंदबाजों को मदद देने वाली पिचें होती हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब भारत या अन्य कोई देश अपने मैदानों पर पिच तैयार करता है, तो उसे ‘होम एडवांटेज’ कहा जाता है, लेकिन जब यही बात भारत को किसी अंतरराष्ट्रीय स्थल पर मिलती है तो इसे विवाद क्यों बना दिया जाता है?
इस बार के चैंपियंस ट्रॉफी टूर्नामेंट में भारतीय टीम के ट्रेवल शेड्यूल को लेकर भी विवाद हुआ। कुछ टीमों ने यह आरोप लगाया कि भारतीय टीम को कम यात्रा करनी पड़ी, जबकि अन्य टीमों को ज्यादा सफर करना पड़ा। पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने भी इस पर सवाल उठाया, लेकिन सच यह है कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में यह कोई नई बात नहीं है। 2011 विश्व कप में भी ऐसी व्यवस्था देखी गई थी, और इंग्लैंड में भी कई टूर्नामेंट्स इसी तरह के हाइब्रिड मॉडल (hybrid model) पर खेले गए हैं। क्रिकेट में यह कोई पहली बार नहीं हो रहा, लेकिन जब बात भारत की आती है, तो यह मुद्दा विवाद का रूप ले लेता है।
यह साफ नजर आता है कि कई देश भारतीय क्रिकेट की सफलता से असहज महसूस कर रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में भारत ने न केवल क्रिकेट के मैदान पर अपना दबदबा बनाया है, बल्कि आर्थिक रूप से भी यह खेल के केंद्र में आ गया है। इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) दुनिया की सबसे बड़ी क्रिकेट लीग बन चुकी है, और इसका प्रभाव अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट पर भी दिखाई देने लगा है। भारत की क्रिकेट शक्ति इतनी बढ़ गई है कि अब वह न केवल अपने प्रदर्शन बल्कि खेल की वैश्विक राजनीति को भी प्रभावित कर रहा है।
भारत के खिलाफ जलन (jealousy) और पक्षपात (bias) कोई नई बात नहीं है। अतीत में भी कई बार देखा गया है कि जब भारतीय टीम अच्छा प्रदर्शन करती है, तो कई विदेशी खिलाड़ी और कमेंटेटर इसके खिलाफ बोलने लगते हैं। नासिर हुसैन के बयानों को लेकर कई भारतीय प्रशंसकों ने नाराजगी जताई है। हुसैन को लेकर यह भी कहा जाता है कि अगर वह 18वीं या 19वीं सदी में होते, तो वे भारत में वायसराय बनकर नस्लवाद (racism) को बढ़ावा देते। उनका रवैया कई बार भारतीय क्रिकेट के प्रति नकारात्मक रहा है, और यह पहली बार नहीं है जब उन्होंने ऐसा बयान दिया हो।
पाकिस्तान की टीम इस समय बेहद मुश्किल दौर से गुजर रही है। उनका प्रदर्शन लगातार गिर रहा है, और हाल ही में अफगानिस्तान और बांग्लादेश जैसी टीमें भी उन्हें हराने लगी हैं। ऐसे में उनके प्रशंसकों और बोर्ड के लिए भारत को दोष देना एक आसान बहाना बन गया है। लेकिन सच्चाई यह है कि किसी भी टीम की सफलता उसकी रणनीति, खिलाड़ियों की काबिलियत और मेहनत पर निर्भर करती है। यदि भारत दुबई की पिच पर बेहतर खेल पा रहा है, तो अन्य टीमों को भी अपनी रणनीति बदलनी चाहिए, न कि इसे एक साजिश करार देना चाहिए।
आखिर में, यह विवाद सिर्फ एक बहाना भर है। असली मुद्दा यह है कि जो टीमें हार रही हैं, वे अपनी हार का ठीकरा किसी और पर फोड़ना चाहती हैं। अगर पिच की बात की जाए, तो पाकिस्तान में खेले जाने वाले मुकाबलों में 330-350 रन आम हो चुके हैं, और अगर भारत वहाँ खेलता, तो शायद 400 रन भी बना देता। यह सिर्फ रणनीति का खेल है, और अगर कोई टीम इसे नहीं समझ पाती, तो वह सिर्फ बहाने ही बनाती रहेगी।
चैंपियंस ट्रॉफी का यह विवाद भारतीय क्रिकेट के बढ़ते वर्चस्व को दर्शाता है। भारत न केवल खेल के मैदान पर बल्कि खेल प्रशासन और आर्थिक स्तर पर भी अपनी स्थिति मजबूत कर चुका है। आने वाले वर्षों में यह और बढ़ेगा, और यह स्वाभाविक है कि कई टीमें इससे असहज महसूस करेंगी। लेकिन खेल की असली भावना यह कहती है कि मैदान में उतरकर बेहतर प्रदर्शन किया जाए, न कि पिच या अन्य चीजों का रोना रोया जाए। भारत ने यह खेलना सीखा है, और अब यह दुनिया को सिखा रहा है कि अगर जीतना है, तो सिर्फ बहाने बनाकर नहीं, बल्कि मैदान में दम दिखाकर ही जीता जा सकता है।