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If God is Everywhere, Why Don't We Worship Donkeys? |
हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि ईश्वर सर्वत्र विद्यमान हैं, हर जीव और वस्तु में उनकी उपस्थिति है। लेकिन सवाल यह उठता है कि यदि भगवान सभी में हैं तो हम हर जीव की पूजा क्यों नहीं करते, जैसे सूअर, गधा, कुत्ता आदि? यह प्रश्न कई बार विवाद का कारण बनता है और लोगों के मन में भ्रम उत्पन्न करता है। इसी विषय पर दिए गए प्रवचन में एक संत ने विस्तार से समझाया कि क्यों कुछ विशेष प्रतीकों और जीवों की पूजा की जाती है और क्यों सभी जीवों की पूजा नहीं की जाती।
संत ने समझाया कि हिंदू धर्म में प्रत्येक वस्तु और जीव में ईश्वर का अंश माना जाता है, लेकिन व्यवहारिक रूप में केवल उनके प्रतिनिधियों की पूजा की जाती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति भारत का प्रधानमंत्री है तो उसका सम्मान करना पूरे देश का सम्मान करने के बराबर होता है। इसी प्रकार, पक्षियों के प्रतिनिधि गरुड़ माने जाते हैं, जो भगवान विष्णु के वाहन हैं, इसलिए उनकी पूजा की जाती है। इसी तरह, सिंह देवी दुर्गा का वाहन है, इसलिए सिंह की भी पूजा की जाती है। नाग पंचमी पर सर्प की पूजा की जाती है क्योंकि नागों को सर्पों के प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता है। इसी प्रकार, भगवान शिव के नंदी बैल की पूजा की जाती है क्योंकि वे बैलों के प्रतिनिधि हैं।
प्रवचन में यह भी स्पष्ट किया गया कि एक मंदिर बनाने के लिए कई ईंटें लगती हैं, लेकिन जब हम मंदिर में प्रवेश करते हैं तो हम पूरी इमारत को प्रणाम नहीं करते, बल्कि विशेष रूप से मंदिर की चौखट पर माथा टेकते हैं। इसका अर्थ यह है कि हम पूरे निर्माण का सम्मान करते हैं, लेकिन पूजन के लिए हम किसी विशेष स्थान या प्रतीक को चुनते हैं। इसी सिद्धांत के आधार पर हिंदू धर्म में 84 लाख योनियों (प्रजातियों) के स्थान पर केवल उनके प्रतिनिधियों की पूजा की जाती है।
भाव और व्यवहार का अंतर भी इस प्रवचन में समझाया गया। यह कहा गया कि हम भावनात्मक रूप से सभी जीवों में भगवान को देख सकते हैं, लेकिन व्यवहार में हम हर किसी की पूजा नहीं कर सकते। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति अपनी मां, पिता, गुरु और अतिथि को भगवान के समान मान सकता है, लेकिन वह हर किसी के साथ समान व्यवहार नहीं कर सकता। पत्नी के प्रति जो व्यवहार होता है, वह मां के प्रति नहीं हो सकता। इसी प्रकार, गधे में भगवान को भाव रूप में देखा जा सकता है, लेकिन व्यवहारिक रूप में उसकी पूजा नहीं की जा सकती।
संत ने उदाहरण देकर यह भी समझाया कि ईश्वर को देखने के लिए श्रद्धा और भक्ति आवश्यक होती है। भक्त प्रह्लाद ने खंभे में भगवान को देखा, संत नामदेव ने कुत्ते में भगवान को देखा, एकनाथ जी ने गधे में भगवान को देखा। लेकिन उन्हीं के पास खड़ा हुआ एक साधारण व्यक्ति इन्हीं चीजों में भगवान को नहीं देख पाया। इसका कारण यह था कि भक्ति और आस्था ही ईश्वर को देखने की क्षमता प्रदान करती है। बिना भक्ति के, ईश्वर को कण-कण में देख पाना संभव नहीं होता।
इसके अलावा, यह भी बताया गया कि पहले हमें अपने माता-पिता में भगवान को देखना चाहिए। जो व्यक्ति अपनी मां और पिता में भगवान को नहीं देख सकता, वह पत्थर में भगवान को कैसे देखेगा? पहले छोटे-छोटे पाठ पढ़े जाते हैं, फिर आगे जाकर कठिन विषयों को समझा जाता है। ठीक उसी प्रकार, पहले हमें अपने माता-पिता, गुरु, अतिथि और गौ माता में भगवान को देखना चाहिए। जब यह भाव प्रबल हो जाएगा, तब आगे चलकर व्यक्ति हर जगह भगवान को देख सकेगा।
अंत में यह बताया गया कि ईश्वर सब जगह होते हैं, लेकिन हमें उन्हें देखने के लिए अपनी श्रद्धा और भक्ति को विकसित करना होगा। केवल कहने से कि "सब में भगवान हैं" से कुछ नहीं होगा, बल्कि हमें अपने भीतर उस दृष्टि को जागृत करना होगा जिससे हम ईश्वर को देख सकें। जब तक हम स्वयं को आंतरिक रूप से विकसित नहीं करेंगे, तब तक हमें भगवान का अनुभव नहीं होगा। इस प्रवचन में समझाया गया कि ईश्वर को अनुभव करना ही असली भक्ति है, न कि मात्र किसी जीव की पूजा करना।