Bengaluru Water Crisis! क्या IT हब रेगिस्तान बनने वाला है?

NCI

Bengaluru Water Crisis!

 बेंगलुरु, जो भारत का आईटी हब कहलाता है, आज गंभीर जल संकट से जूझ रहा है। यह शहर कभी "सिटी ऑफ लेक्स" के नाम से जाना जाता था, लेकिन अब इसकी झीलें सूख रही हैं, भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है, और भविष्य में यहां रेगिस्तान बनने की आशंका जताई जा रही है। बेंगलुरु की मौजूदा स्थिति को देखकर लगता है कि यदि पानी का सही प्रबंधन नहीं किया गया तो यह शहर एक बड़े जल संकट का सामना कर सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस समस्या की जड़ में जनसंख्या वृद्धि, जल संसाधनों का अति दोहन, झीलों और जल निकायों पर अतिक्रमण, और बारिश में आई कमी जैसी समस्याएं शामिल हैं। बेंगलुरु में डेढ़ करोड़ से अधिक लोग रहते हैं, और लगातार बढ़ती आबादी की जरूरतें पूरा करने के लिए रोजाना 800 मिलियन लीटर पानी निकाला जा रहा है, जिससे भूजल स्तर पर गंभीर असर पड़ रहा है।

बेंगलुरु का इतिहास देखें तो 16वीं सदी में विजयनगर साम्राज्य के दौरान यहां के शासक नाद प्रभु केंपे गौड़ा ने शहर की नींव रखी थी और इसे सुनियोजित ढंग से बसाया था। उन्होंने इस बात का विशेष ध्यान रखा कि शहर में जल स्रोतों की कमी न हो, इसलिए कई झीलों और तालाबों का निर्माण करवाया गया। इन जल स्रोतों को जोड़ने के लिए नालों (drainage system) का एक नेटवर्क तैयार किया गया था ताकि किसी एक झील में अधिक पानी होने पर वह दूसरे झीलों तक पहुंच सके। यह जल प्रबंधन की एक बेहतरीन प्रणाली थी, जिससे पूरे साल झीलों में पानी बना रहता था। लेकिन जैसे-जैसे शहर का विस्तार हुआ, इन झीलों को अतिक्रमण की भेंट चढ़ा दिया गया।

1970 के दशक तक बेंगलुरु में करीब 262 झीलें बची थीं, लेकिन अब मुश्किल से 20 झीलें अस्तित्व में हैं। आईटी पार्क, अपार्टमेंट्स और सड़क निर्माण के लिए झीलों को पाट दिया गया, जिससे जल संचयन की प्राकृतिक व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई। शहर में तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण पानी की मांग बढ़ी, और कावेरी नदी से आने वाले पानी की निर्भरता भी बढ़ गई। लेकिन यह समाधान स्थायी नहीं है क्योंकि कावेरी नदी का जल स्तर भी लगातार गिरता जा रहा है और इस पर कई शहरों की निर्भरता है।

बेंगलुरु का मौसम आमतौर पर सुहावना रहता है, इसे भारत का 'लंदन' भी कहा जाता है, लेकिन यह शहर समुद्र तल से काफी ऊंचाई पर स्थित है, जिससे यहां मानसून कमजोर पड़ जाता है। बारिश की कमी के कारण भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है, जिससे बोरवेल (borewell) भी सूख रहे हैं। पहले 200-300 फीट की गहराई पर पानी मिल जाता था, लेकिन अब 1500 फीट गहरे बोरवेल भी सूखने लगे हैं। पानी की यह स्थिति इतनी भयावह हो चुकी है कि खुद कर्नाटक के डिप्टी सीएम ने स्वीकार किया था कि उनके घर का बोरवेल भी सूख चुका है।

साल 2018 में केंद्र सरकार ने एक रिपोर्ट में चेतावनी दी थी कि यदि जल संकट पर काबू नहीं पाया गया, तो 2030 तक भारत की 40% आबादी को पीने का पानी नहीं मिलेगा। इसी तरह 2018 में दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन शहर में भी पानी का गंभीर संकट आ गया था, जिसे ‘डे जीरो’ (Day Zero) की स्थिति कहा गया था। डे जीरो का मतलब होता है कि जब किसी शहर में पानी की इतनी किल्लत हो जाए कि वहां के लोगों को पीने तक के लिए पानी न मिले। बेंगलुरु में भी इस तरह की स्थिति बनने के संकेत मिल रहे हैं।

शहर में पानी की बर्बादी रोकने के लिए प्रशासन ने 5000 रुपये तक का जुर्माना लगाया है और जल संकट को दूर करने के लिए सरकार ने एक स्पेशल टास्क फोर्स बनाई है। लेकिन यह उपाय तब तक कारगर नहीं हो सकते जब तक कि जल संरक्षण और झीलों के पुनर्जीवन की दिशा में ठोस कदम न उठाए जाएं। वैज्ञानिकों के अनुसार, यदि किसी इलाके में 25 सेंटीमीटर से कम वार्षिक वर्षा दर्ज की जाती है तो उसे रेगिस्तान घोषित कर दिया जाता है। भारत में औसतन 120 सेंटीमीटर बारिश होती है, लेकिन यदि यह लगातार कम होती रही, तो भविष्य में बेंगलुरु को मरुस्थलीकरण (desertification) का सामना करना पड़ सकता है।

बेंगलुरु को इस जल संकट से बचाने के लिए प्रशासन को झीलों और भूजल संरक्षण पर काम करना होगा। जल संचयन (rainwater harvesting) को अनिवार्य बनाना होगा और अतिक्रमण हटाकर झीलों को पुनर्जीवित करना होगा। यदि सरकार और जनता ने इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया तो आने वाले वर्षों में बेंगलुरु का जल संकट और गहराएगा और यह शहर रहने लायक नहीं बचेगा।

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