A Thief Ate Prasad from Shiva Lingam & Became a King! प्रसाद ने चोर को बना दिया राजा!

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Ate Prasad from Shiva Lingam?

 शिवलिंग पर चढ़े प्रसाद को ग्रहण करने को लेकर समाज में विभिन्न धारणाएँ प्रचलित हैं। कुछ लोग इसे पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ स्वीकार करते हैं, जबकि कुछ का मानना है कि इसे ग्रहण करना उचित नहीं होता। इसी विषय पर एक प्राचीन कथा का उल्लेख मिलता है, जो हमें यह समझने में मदद करता है कि शिवलिंग पर चढ़ा प्रसाद ग्रहण करने से क्या होता है और यह धार्मिक दृष्टि से कितना महत्वपूर्ण है। इस कथा का वर्णन महाशिव पुराण में किया गया है, जिसमें एक चोर की कहानी सुनाई जाती है, जो अपने जीवन के एक विशेष क्षण में भोलेनाथ की कृपा का पात्र बन जाता है।

कहानी के अनुसार, एक चोर था जो चोरी करके अपना जीवन यापन करता था। उसने कभी पूजा-पाठ नहीं किया था और न ही किसी धर्म या आस्था में उसकी कोई रुचि थी। एक दिन वह चोरी करने निकला, लेकिन उसे कहीं कुछ भी चुराने लायक वस्तु नहीं मिली। भूख से व्याकुल होकर वह इधर-उधर भटकने लगा और अंततः उसे एक मंदिर दिखा। मंदिर में अंधेरा था, जिससे उसे कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। उसने अपने तन पर पहना हुआ वस्त्र उतारकर जलाया, ताकि रोशनी हो सके और वह देख सके कि मंदिर में क्या रखा है। इस रोशनी में उसे शिवलिंग पर चढ़ा हुआ प्रसाद नजर आया। भूख से बेहाल चोर ने बिना किसी संकोच के वह प्रसाद ग्रहण कर लिया और अपनी भूख मिटाई।

समय बीतता गया और अंततः जब चोर की मृत्यु हुई, तब यमराज के दूत उसे अपने साथ ले गए। यमराज ने उसके कर्मों का लेखा-जोखा देखा और पाया कि उसने अपने जीवन में अनेकों पाप किए थे, क्योंकि वह हमेशा चोरी करता था और अधर्म के मार्ग पर चला था। इस आधार पर उसे नर्क में भेजने का निर्णय किया गया। लेकिन जब देवताओं ने उसके जीवन का संपूर्ण विवरण देखा, तो पता चला कि एक बार वह मंदिर गया था और वहाँ उसने शिवलिंग पर प्रकाश करने के लिए अपना वस्त्र जलाया था। इसके अतिरिक्त, उसने शिवलिंग पर चढ़ा हुआ प्रसाद भी ग्रहण किया था।

भगवान शिव को अपने भक्तों की छोटी-छोटी भक्ति भी प्रिय होती है। वह भक्तों के प्रति अत्यंत दयालु और क्षमाशील हैं। जब यह मामला भगवान शिव के समक्ष प्रस्तुत किया गया, तो उन्होंने इस चोर को नर्क भेजने की बजाय पुनर्जन्म देकर एक राजा बनने का आशीर्वाद दिया। इस घटना से प्रेरित होकर उस व्यक्ति ने अपने पूरे राज्य में कई शिव मंदिर बनवाए और प्रत्येक मंदिर में दीप जलवाने की परंपरा शुरू कर दी। यह उसके द्वारा पूर्व जन्म में किए गए एक छोटे से पुण्य का प्रतिफल था।

यह कथा हमें यह सिखाती है कि भगवान शिव अपने भक्तों की भक्ति को किसी भी रूप में स्वीकार कर लेते हैं, चाहे वह कितनी ही छोटी क्यों न हो। जब एक चोर, जिसने अपने स्वार्थ के लिए मंदिर में प्रकाश किया और प्रसाद ग्रहण किया, उसे इतना बड़ा फल प्राप्त हो सकता है, तो जो व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति के साथ शिवलिंग पर चढ़े प्रसाद को ग्रहण करता है, उसे निश्चित रूप से शिव की कृपा प्राप्त होती है।

आज भी भारत के कई हिस्सों में यह परंपरा देखने को मिलती है कि लोग अपने घरों में शिवलिंग स्थापित करते हैं और प्रतिदिन उन्हें जल अर्पित करते हैं। कई स्थानों पर शिवलिंग पर चढ़े बेलपत्र, जल और अन्य प्रसाद को ग्रहण किया जाता है। धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव पर चढ़ाया गया प्रसाद अत्यंत पवित्र होता है और इसे ग्रहण करने से न केवल शारीरिक बल्कि आध्यात्मिक लाभ भी प्राप्त होते हैं।

कई लोग इस धारणा से ग्रसित होते हैं कि शिवलिंग पर चढ़े प्रसाद को ग्रहण नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह भगवान शिव के लिए अर्पित किया गया होता है। लेकिन इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि भगवान शिव का प्रसाद ग्रहण करना पुण्यदायी होता है। यह न केवल व्यक्ति के पापों को कम करता है, बल्कि उसके जीवन में सुख-शांति भी लेकर आता है।

शिवलिंग पर चढ़े प्रसाद को ग्रहण करने का एक वैज्ञानिक आधार भी हो सकता है। जब भक्तजन बेलपत्र, दूध, जल, धतूरा आदि भगवान शिव को अर्पित करते हैं, तो इन वस्तुओं के औषधीय गुणों से वातावरण शुद्ध होता है। इसके अलावा, जब यह प्रसाद ग्रहण किया जाता है, तो यह शरीर को शुद्ध करने और मन को शांत करने में सहायक होता है।

यदि हम आध्यात्मिक दृष्टि से देखें, तो प्रसाद केवल भोजन नहीं होता, बल्कि यह भगवान की कृपा का प्रतीक होता है। जब कोई व्यक्ति इसे श्रद्धा से ग्रहण करता है, तो उसमें सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यही कारण है कि किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के बाद प्रसाद वितरण की परंपरा होती है।

यह भी उल्लेखनीय है कि किसी भी देवी-देवता के मंदिर में अर्पित किया गया प्रसाद, जब भक्तों को वितरित किया जाता है, तो इसे ग्रहण करने में कोई दोष नहीं होता। मंदिरों में भगवान को भोग अर्पित करने के बाद प्रसाद वितरण किया जाता है, जिसे भक्तगण ग्रहण करके स्वयं को धन्य मानते हैं। इसी प्रकार, शिवलिंग पर चढ़े प्रसाद को ग्रहण करने में भी कोई दोष नहीं है, बल्कि यह भगवान की कृपा प्राप्त करने का एक सरल माध्यम है।

कुल मिलाकर, यह कथा और धार्मिक मान्यताएँ हमें यह संदेश देती हैं कि भगवान शिव अपने भक्तों की भक्ति के हर रूप को स्वीकार करते हैं। चाहे वह एक साधारण दीप जलाने का कार्य हो, प्रसाद ग्रहण करने का कार्य हो, या फिर जल अर्पित करने का कार्य हो, हर छोटी-छोटी भक्ति का फल भगवान शिव अवश्य प्रदान करते हैं। इसलिए, जो भी श्रद्धा और विश्वास के साथ शिवलिंग पर चढ़े प्रसाद को ग्रहण करता है, उसे भगवान शिव की असीम कृपा प्राप्त होती है। यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि भगवान के प्रति श्रद्धा और प्रेम ही सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है, और भक्ति में किसी भी प्रकार का संकोच या संदेह नहीं होना चाहिए।

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