365 days warning by Amit Shah : नक्सलवाद खत्म!

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365 days warning by Amit Shah

 भारत में नक्सलवाद एक लंबी अवधि से एक गंभीर समस्या बनी हुई है। यह समस्या 18 मई 1967 को पहली बार नक्सलबाड़ी, पश्चिम बंगाल में उभरी थी और धीरे-धीरे देश के कई हिस्सों में फैल गई। नक्सलवाद को समाप्त करने की दिशा में केंद्र सरकार ने कई कदम उठाए हैं, लेकिन यह समस्या अभी भी पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई है। हाल ही में गृहमंत्री अमित शाह ने घोषणा की कि सरकार 2026 तक नक्सलवाद का पूरी तरह से सफाया कर देगी। उन्होंने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए 365 दिनों की समय सीमा तय की है और इसे लेकर व्यापक रणनीति बनाई गई है।

नक्सलवाद के उन्मूलन के लिए सरकार ने तीन महत्वपूर्ण उपाय अपनाने की योजना बनाई है – सड़क संपर्क (road connectivity), मोबाइल संपर्क (mobile connectivity) और वित्तीय समावेशन (financial inclusion)। सरकार का मानना है कि इन तीन माध्यमों से नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास को गति दी जा सकती है और नक्सल गतिविधियों को खत्म किया जा सकता है। इसके अलावा, केंद्र सरकार ने इन क्षेत्रों में पुलिस बल और सुरक्षा ढांचे को मजबूत करने के लिए भारी मात्रा में धनराशि आवंटित की है। बताया जा रहा है कि 2024 में इस फंड को बढ़ाकर 3006 करोड़ रुपये कर दिया गया है, ताकि सुरक्षा बलों को अधिक संसाधन और सुविधाएं मिल सकें।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में नक्सलवाद के खिलाफ की गई कार्रवाई के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। 2024 तक 237 नक्सलियों को मार गिराया गया, 812 को गिरफ्तार किया गया और 723 ने आत्मसमर्पण कर दिया। छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और केरल जैसे राज्यों में नक्सलवाद की पकड़ मजबूत रही है, लेकिन हालिया अभियानों के बाद इन क्षेत्रों में नक्सली गतिविधियों में कमी देखी गई है। 2007 में नक्सल प्रभावित क्षेत्र काफी व्यापक था, लेकिन 2018 तक यह क्षेत्र काफी सिमट चुका था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने नक्सलवाद को समाप्त करने के लिए राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ भी चर्चा की है। इसमें यह तय किया गया कि सभी प्रभावित राज्यों को अपने स्तर पर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास योजनाओं को तेजी से लागू करना होगा। इसके तहत शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और कौशल विकास जैसे क्षेत्रों में बड़े स्तर पर कार्य किया जाएगा ताकि स्थानीय लोगों को मुख्यधारा से जोड़ा जा सके।

नक्सलवाद की जड़ें समाज में व्याप्त असमानता, गरीबी और सरकार की नीतियों के प्रति असंतोष में देखी जाती हैं। कई बुद्धिजीवी मानते हैं कि हरित क्रांति (green revolution) के प्रभाव और सामाजिक-आर्थिक असमानता ने नक्सलवाद को जन्म दिया। हालांकि, इस सिद्धांत की पुष्टि किसी ठोस प्रमाण से नहीं हुई है। नक्सली खुद को वंचित वर्गों का रक्षक बताते हैं और सरकारी नीतियों का विरोध करने के लिए हिंसा का सहारा लेते हैं। वे समानता और समाजवाद की विचारधारा को मानते हैं, लेकिन उनकी गतिविधियां लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ जाती हैं।

भारत सरकार नक्सलवाद को समाप्त करने के लिए सुरक्षा अभियानों के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक सुधारों पर भी जोर दे रही है। बीते कुछ वर्षों में इस समस्या को नियंत्रित करने में सफलता मिली है, लेकिन इसे पूरी तरह खत्म करने के लिए निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है। हाल ही में सरकार ने बॉर्डर सिक्योरिटी (border security) को मजबूत किया है ताकि नक्सलियों को हथियारों की आपूर्ति पर रोक लगाई जा सके। रिपोर्टों के मुताबिक, पाकिस्तान, म्यांमार और चीन से नक्सलियों को हथियारों की आपूर्ति की जाती रही है, लेकिन अब इस पर काफी हद तक नियंत्रण कर लिया गया है।

नक्सलवाद पर बनी फिल्मों और साहित्य में इसे अलग-अलग नजरिए से देखा गया है। हाल ही में आई फिल्म 'चक्रव्यूह' ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की समस्याओं और सरकार के प्रयासों को दर्शाया था। फिल्म में दिखाया गया था कि कैसे कुछ लोग नक्सल विचारधारा से प्रभावित होकर उनका हिस्सा बन जाते हैं और बाद में इसे छोड़ना उनके लिए मुश्किल हो जाता है।

यदि हम पिछले दो दशकों के आंकड़ों को देखें तो नक्सली हिंसा में उल्लेखनीय कमी आई है। 2007 से 2010 के बीच नक्सली हमलों की संख्या हजारों में हुआ करती थी, लेकिन 2022 तक यह घटकर 134 रह गई। इसका मतलब यह है कि सरकार के प्रयास सही दिशा में जा रहे हैं। लेकिन अभी भी नक्सलवाद पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। अगर 2026 तक सरकार अपने वादे के मुताबिक इसे खत्म करने में सफल होती है, तो यह भारत की सुरक्षा और विकास के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगी।

हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि 2026 तक सरकार अपने इस लक्ष्य को पूरा कर पाती है या नहीं। कई बार सरकारों ने बड़े वादे किए हैं, लेकिन वे समय पर पूरे नहीं हो सके। उदाहरण के लिए, किसानों की आय 2022 तक दोगुनी करने का वादा किया गया था, लेकिन यह अभी तक पूरा नहीं हो सका। इसी तरह, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 2022 तक सभी को घर देने का लक्ष्य रखा गया था, जिसे 2024 तक बढ़ा दिया गया और फिर आगे बढ़ाया गया। अब नक्सलवाद खत्म करने की समय सीमा 2026 रखी गई है।

देश की जनता चाहती है कि भारत नक्सलवाद से मुक्त हो, ताकि विकास बाधित न हो और लोग भयमुक्त वातावरण में रह सकें। सरकार ने इसके लिए कड़े कदम उठाए हैं, लेकिन इसके साथ ही उसे यह भी सुनिश्चित करना होगा कि स्थानीय समुदायों को बेहतर जीवन जीने का अवसर मिले, ताकि वे नक्सलवाद की ओर आकर्षित न हों।

क्या सरकार अगले 365 दिनों में नक्सलवाद को समाप्त कर पाएगी? यह सवाल समय के साथ ही स्पष्ट होगा। लेकिन एक बात तय है कि नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में सरकार ने अब तक जो प्रयास किए हैं, उनके कारण इस समस्या में काफी कमी आई है। यदि यह लड़ाई जारी रही, तो आने वाले वर्षों में भारत नक्सलवाद से पूरी तरह मुक्त हो सकता है।

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