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Secret to Becoming Rich at a Young Age! |
धन का वास्तविक अर्थ क्या है? क्या केवल भौतिक संपत्ति ही धन का मापदंड है, या फिर सच्चा धन कुछ और होता है? यही प्रश्न इस प्रवचन में उठाया गया, जिसमें बताया गया कि सच्चा धन वही होता है जो मनुष्य को भीतर से संपन्न बनाता है। भौतिक संपत्ति तो एक पापी के पास भी हो सकती है, लेकिन आध्यात्मिक संपन्नता केवल उन्हीं के पास होती है जो सत्संग, ईश्वर-भक्ति और सद्कर्मों में रुचि रखते हैं। कई लोग ऐसे होते हैं जिनके जीवन में यदि एक दिन भी कथा या सत्संग न हो, तो उन्हें बेचैनी होने लगती है, और यह बेचैनी ही उनके सच्चे धनवान होने का प्रमाण है।
ऐसे लोग धन्य हैं, जो सत्संग में रुचि रखते हैं, जो हरि कथा सुनते हैं, और जिनका जीवन उसी के अनुरूप ढल जाता है। सच्चा धनवान बनने के लिए भजन, संकीर्तन, और भगवान के नाम स्मरण को अपनाना चाहिए। भगवान का धाम सदैव हमारे निकट होता है, और जो उस धाम को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर होते हैं, वही वास्तव में धन्य हैं। सत्संग कोई एक सप्ताह का खेल नहीं होता, न ही कोई नाटक या प्रदर्शन होता है, बल्कि यह जीवन जीने की कला सिखाने वाला माध्यम है। यह वह साधन है जिससे आत्मा की उन्नति होती है, और जीवन का वास्तविक उद्देश्य स्पष्ट होता है।
अक्सर लोग प्रवचनों को एक मनोरंजन का साधन समझ लेते हैं, लेकिन यह सोच गलत है। प्रवचन केवल एक कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन का मार्गदर्शन करने वाला प्रकाश स्तंभ है। किसी भी कथा का उद्देश्य केवल सुनना नहीं, बल्कि उसे अपने जीवन में उतारना होता है। भागवत कथा मात्र एक कहानी नहीं, बल्कि यह जीवन का गूढ़ सत्य उजागर करने वाली गीता है, जो आत्मा और परमात्मा के संबंध को स्पष्ट करती है।
भारत में हजारों स्थानों पर एक साथ भागवत कथाएँ चल रही होती हैं, और लाखों लोग इन्हें सुनते हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि भगवान की कथा का प्रभाव समय के साथ कम नहीं होता, बल्कि यह अनंतकाल तक प्रासंगिक बनी रहती है। अन्य कहानियाँ पुरानी हो जाती हैं, लेकिन भगवान की कथा सदैव नई बनी रहती है। यह कथा किसी स्वार्थवश नहीं सुनाई जाती, न ही इसे मजबूरी में बोला जाता है, बल्कि इसमें आनंद और रस समाया होता है। जो इसे सुनता है, उसका जीवन बदल जाता है, और वह प्रभु की ओर अग्रसर होने लगता है।
जो लोग कथा में आते हैं, वे किसी बाध्यता के कारण नहीं आते, बल्कि वे इसलिए आते हैं क्योंकि उनके भीतर ईश्वर के प्रति प्रेम उत्पन्न हो चुका होता है। यही प्रेम उन्हें सत्संग तक खींच लाता है। यदि प्रेम बना रहे और निरंतर बढ़ता रहे, तो यही हमारे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी। यही प्रेम हमें भगवान के और निकट ले जाता है और यही प्रेम भक्ति का आधार बनता है।
हमारे धर्म में तीन मार्ग माने गए हैं—कर्म, ज्ञान और भक्ति। कर्म के लिए मीमांसा ग्रंथ हैं, ज्ञान के लिए सिद्धांत ग्रंथ हैं, और भक्ति के लिए भागवत महापुराण है। भागवत केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि यह भक्तों का जीवन आधार है, जो उन्हें भक्ति मार्ग पर अग्रसर करता है। भक्ति के माध्यम से ही भगवान हमारे हृदय में आते हैं, और जब तक भक्ति हृदय में नहीं होगी, तब तक भगवान का साक्षात्कार संभव नहीं होगा।
भक्ति एक देवी स्वरूप है, जो भक्तों के हृदय में प्रकट होती है। जब कोई कथा में बैठता है, तो उसके भीतर धीरे-धीरे भक्ति जाग्रत होती है, और जब भक्ति जाग्रत हो जाती है, तो भगवान स्वयं उसके हृदय में स्थान ग्रहण कर लेते हैं। यही कारण है कि संत-महात्मा सदैव कथा श्रवण की महिमा बताते हैं और लोगों को प्रेरित करते हैं कि वे अधिक से अधिक सत्संग में जाएँ, कथा सुनें और अपने जीवन को सच्चे अर्थों में धनवान बनाएँ।
इसलिए, यदि कोई व्यक्ति धनवान बनना चाहता है, तो उसे केवल भौतिक संपत्ति पर ध्यान देने के बजाय आध्यात्मिक संपन्नता को अपनाना चाहिए। सच्चा धन वही है, जो आत्मा को शांति प्रदान करे, जीवन को सार्थक बनाए, और परमात्मा के निकट ले जाए। यही वास्तविक धन है, और यही हमारे जीवन का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए।