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Pre-Marital Sex |
भारत में प्री-मैरिटल सेक्स (शादी से पहले यौन संबंध) को लेकर एक लंबे समय से बहस जारी है। समाज में इसे लेकर तरह-तरह के विचार मौजूद हैं। एक ओर इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आधुनिकता से जोड़कर देखा जाता है, वहीं दूसरी ओर इसे भारतीय संस्कृति और परंपराओं के खिलाफ माना जाता है। हाल ही में, मेरठ शहर में कपल्स के लिए होटल रूम्स की बुकिंग पर रोक लगाने जैसे फैसलों ने इस मुद्दे को और अधिक गरमा दिया है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या भारत में प्री-मैरिटल सेक्स पर कानूनी रूप से प्रतिबंध लगाना जरूरी है या यह एक व्यक्तिगत पसंद का मामला होना चाहिए।
हमारा समाज दोहरे मानकों का शिकार है। एक ओर फिल्मों, सोशल मीडिया और वेब सीरीज के जरिए युवा पीढ़ी को रोमांस और आधुनिक रिश्तों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, तो दूसरी ओर जब यही युवा प्रेम संबंधों में पड़ते हैं या शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाते हैं, तो समाज उन्हें नैतिकता का पाठ पढ़ाने लगता है। दिलचस्प बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि एक निश्चित उम्र के बाद सहमति से बनाए गए यौन संबंध कानूनन अपराध नहीं हैं। इसके बावजूद, देश के कई हिस्सों में सामाजिक और धार्मिक संगठनों द्वारा इसे अनैतिक और भारतीय संस्कृति के खिलाफ बताया जाता है।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) के आंकड़ों के अनुसार, 15 से 29 वर्ष की आयु के पुरुषों में 13.5% और महिलाओं में 2.8% ने स्वीकार किया कि उन्होंने शादी से पहले यौन संबंध बनाए हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह आंकड़ा वास्तविकता से बहुत कम है, क्योंकि भारतीय समाज में इस विषय पर खुलकर बात करना अब भी टैबू (वर्जित) माना जाता है। यह भी देखा गया है कि देश के टियर-2 और टियर-3 शहरों में 29% युवा प्री-मैरिटल सेक्स के प्रति खुले विचार रखते हैं। इस बदलाव की एक वजह ऑनलाइन डेटिंग ऐप्स का बढ़ता प्रचलन भी है, जिससे युवा पहले की तुलना में ज्यादा स्वतंत्र रूप से अपने रिश्तों को आगे बढ़ा रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि प्री-मैरिटल सेक्स भारत में हाल ही में शुरू हुआ है। प्राचीन भारतीय सभ्यता में भी प्रेम और विवाह पूर्व संबंधों के उदाहरण देखने को मिलते हैं। वैदिक काल में गंधर्व विवाह को मान्यता प्राप्त थी, जिसमें दो व्यक्ति समाज या परिवार की सहमति के बिना केवल आपसी सहमति से विवाह कर सकते थे। महाभारत और अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं, जहां विवाह से पहले संबंधों को गलत नहीं माना गया था। लेकिन समय के साथ समाज में पितृसत्तात्मक सोच हावी होती गई और महिलाओं की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया गया।
वर्तमान समय में प्री-मैरिटल सेक्स पर बैन लगाने की मांग को लेकर कई तरह की दलीलें दी जाती हैं। सबसे बड़ा तर्क यह दिया जाता है कि इससे युवा पीढ़ी गलत दिशा में जा सकती है और पारंपरिक पारिवारिक मूल्यों को नुकसान पहुंच सकता है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि शादी से पहले बनाए गए संबंधों से सामाजिक अस्थिरता पैदा हो सकती है, क्योंकि इससे अवैध संतान, यौन संचारित रोग (STD), और अनियोजित गर्भधारण की समस्या बढ़ सकती है। विशेष रूप से, किशोरावस्था में यौन संबंधों के मामले में स्थिति और भी जटिल हो जाती है, क्योंकि कम उम्र में शारीरिक संबंध बनाने के नकारात्मक प्रभाव दीर्घकालिक हो सकते हैं।
हालांकि, इन चिंताओं को केवल बैन लगाने से नहीं सुलझाया जा सकता। सबसे बड़ी समस्या यह है कि हमारे समाज में सेक्स एजुकेशन (यौन शिक्षा) को अब भी वर्जित माना जाता है। जब तक युवाओं को सुरक्षित यौन संबंधों और उनके प्रभावों के बारे में सही जानकारी नहीं दी जाएगी, तब तक वे गलत फैसले लेते रहेंगे। इसीलिए विशेषज्ञों का मानना है कि प्री-मैरिटल सेक्स को अपराध मानने की बजाय, युवाओं को सही दिशा में मार्गदर्शन देना ज्यादा आवश्यक है।
कुछ साल पहले बेंगलुरु के स्कूलों में एक चौंकाने वाली घटना सामने आई थी, जब एक सरप्राइज़ चेकिंग के दौरान छात्रों के बैग में कंडोम और गर्भनिरोधक गोलियां पाई गईं। यह घटना यह दर्शाती है कि युवा पहले की तुलना में कहीं अधिक स्वतंत्र हो चुके हैं और वे अपनी इच्छाओं को लेकर ज्यादा जागरूक हैं। लेकिन समस्या यह है कि उन्हें सही शिक्षा और मार्गदर्शन नहीं मिल पा रहा, जिससे कई बार वे बिना जानकारी के गलत फैसले ले लेते हैं।
बैन लगाने की मांग करने वालों को यह समझना होगा कि किसी भी सामाजिक मुद्दे का हल केवल प्रतिबंध लगाने से नहीं निकलता। जिस तरह शराबबंदी के बावजूद अवैध शराब का व्यापार फलता-फूलता है, उसी तरह प्री-मैरिटल सेक्स पर बैन लगाने से यह समस्या खत्म नहीं होगी, बल्कि यह और अधिक गुप्त रूप से जारी रहेगा, जिससे और भी गंभीर सामाजिक समस्याएं जन्म ले सकती हैं। इसके बजाय, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे युवा सुरक्षित और जागरूक तरीके से अपने रिश्तों को संभालें।
दुनिया के कई देशों में प्री-मैरिटल सेक्स को लेकर अलग-अलग कानून हैं। मलेशिया, इंडोनेशिया, पाकिस्तान और ईरान जैसे देशों में इसे कानूनी रूप से प्रतिबंधित किया गया है और इस कानून के उल्लंघन पर कड़ी सजा दी जाती है। लेकिन पश्चिमी देशों में इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता के रूप में देखा जाता है। भारत में हमें इन दोनों मॉडल्स के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है।
यदि सरकार इस मुद्दे पर कोई सख्त निर्णय लेना चाहती है, तो उसे सबसे पहले स्कूलों और कॉलेजों में सेक्स एजुकेशन को अनिवार्य बनाना चाहिए। साथ ही, समाज को भी अपनी रूढ़िवादी सोच से बाहर निकलना होगा और यह समझना होगा कि यौन संबंध केवल नैतिकता का विषय नहीं हैं, बल्कि यह एक व्यक्तिगत निर्णय है, जिसे सही दिशा में ले जाना आवश्यक है।
अंततः, भारत में प्री-मैरिटल सेक्स पर बैन लगाना कोई व्यावहारिक समाधान नहीं होगा। समाज में जागरूकता बढ़ाने, यौन शिक्षा को प्रोत्साहित करने, और युवाओं को सही जानकारी देने की जरूरत है। यह मुद्दा कानूनी से ज्यादा सामाजिक और नैतिक पहलुओं से जुड़ा हुआ है। जब तक समाज इस विषय पर खुलकर चर्चा नहीं करेगा और इसे एक स्वस्थ दृष्टिकोण से नहीं देखेगा, तब तक यह विवाद जारी रहेगा।