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Panama Exits China's BRI! |
पनामा ने हाल ही में चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) से खुद को अलग करने का फैसला लिया है, जिससे वैश्विक राजनीति में नई बहस छिड़ गई है। अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती तनातनी के बीच यह निर्णय पनामा की भौगोलिक स्थिति और व्यापारिक महत्त्व को देखते हुए काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। पनामा कैनाल, जो अटलांटिक और पैसिफिक महासागरों को जोड़ता है, वैश्विक व्यापार का एक प्रमुख केंद्र है और दुनिया के लगभग 6% व्यापार का मार्ग यहीं से होकर गुजरता है। अमेरिका ने 1914 में इस कैनाल को बनाया था और 1999 तक इसे अपने नियंत्रण में रखा था। हालांकि, बाद में यह पनामा सरकार को सौंप दिया गया, लेकिन अमेरिका की नजरें इस पर हमेशा बनी रहीं।
2017 में, जब पनामा ने चीन के BRI को जॉइन किया, तो इसे चीन के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत के रूप में देखा गया। BRI चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना है, जिसका उद्देश्य एशिया, अफ्रीका और यूरोप को सड़कों, रेलमार्गों और समुद्री मार्गों से जोड़ना है। चीन ने इसे आर्थिक विकास का जरिया बताया, लेकिन अमेरिका समेत कई देश इसे 'डेट ट्रैप' (ऋण-जाल) कूटनीति के रूप में देखते हैं। इसी रणनीति के तहत, चीन ने श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह को 99 साल की लीज पर ले लिया था, जब श्रीलंका उसके ऋणों को चुकाने में असमर्थ हो गया था। भारत और अमेरिका पहले से ही BRI का विरोध कर रहे थे और अब पनामा ने भी इससे बाहर निकलने का निर्णय लिया है।
पनामा के इस फैसले के पीछे अमेरिका की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। जब डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने, तो उन्होंने पनामा पर दबाव बनाना शुरू किया कि वह BRI से अलग हो जाए, अन्यथा अमेरिका पनामा कैनाल पर फिर से अपना नियंत्रण स्थापित कर सकता है। इस धमकी को पनामा सरकार ने गंभीरता से लिया और हाल ही में राष्ट्रपति जोस रॉल मुलीनो ने अमेरिकी सीनेटर मार्को रूबियो के साथ मुलाकात के बाद घोषणा की कि पनामा BRI से खुद को अलग कर रहा है। यह अमेरिका की बड़ी कूटनीतिक जीत मानी जा रही है क्योंकि यह पहला लैटिन अमेरिकी देश है जिसने BRI को छोड़ा है।
अमेरिका का मानना है कि चीन के BRI के तहत बनने वाले इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स दीर्घकालिक रूप से उस देश की संप्रभुता को खतरे में डाल सकते हैं। चीन जरूरत से ज्यादा कर्ज देता है और जब देश इसे चुकाने में असमर्थ हो जाते हैं, तो वह उनकी संपत्तियों को अपने नियंत्रण में ले लेता है। अमेरिका नहीं चाहता कि पनामा भी इसी जाल में फंसे, क्योंकि पनामा कैनाल वैश्विक व्यापार के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यही वजह है कि अमेरिका ने कूटनीतिक दबाव बनाकर पनामा को BRI से बाहर करवा दिया।
चीन के लिए यह एक बड़ा झटका है क्योंकि उसने लैटिन अमेरिका में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए अरबों डॉलर का निवेश किया है। पनामा का इस परियोजना से बाहर होना इस बात का संकेत देता है कि कई अन्य देश भी आने वाले समय में इस पहल से पीछे हट सकते हैं। अमेरिका अब अन्य लैटिन अमेरिकी देशों पर भी दबाव बना सकता है कि वे BRI से बाहर निकलें, जिससे चीन की वैश्विक परियोजना कमजोर हो सकती है।
हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि चीन इस पर कैसे प्रतिक्रिया देता है। क्या वह पनामा को मनाने की कोशिश करेगा या फिर आर्थिक दबाव डालने की रणनीति अपनाएगा? अभी तक चीन ने इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन यह तय है कि आने वाले समय में अमेरिका और चीन के बीच कूटनीतिक खींचतान और तेज होगी।
अमेरिका और चीन के बीच यह टकराव केवल व्यापार तक सीमित नहीं है बल्कि यह वैश्विक प्रभुत्व की लड़ाई का हिस्सा बन चुका है। जहां अमेरिका चाहता है कि दुनिया उसकी शर्तों पर चले, वहीं चीन अपनी आर्थिक ताकत के बल पर नए भू-राजनीतिक समीकरण बना रहा है। ऐसे में पनामा का BRI से हटना इस वैश्विक संघर्ष का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो आने वाले वर्षों में और भी दिलचस्प मोड़ ले सकता है।