Iraq is Sinking! वैज्ञानिकों का बड़ा खुलासा

NCI

Iraq is Sinking!

 इराक आज गंभीर भूवैज्ञानिक संकट से गुजर रहा है, और हाल ही में हुई एक स्टडी ने इस संकट की गंभीरता को उजागर किया है। वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि इराक का उत्तरी भाग धीरे-धीरे धरती में समा रहा है, विशेष रूप से जगरोस पर्वत (Zagros Mountains) का क्षेत्र, जो समय के साथ नीचे धंसता जा रहा है। यह प्रक्रिया लाखों वर्षों से जारी है, लेकिन हाल के शोध बताते हैं कि यह प्राकृतिक घटना धीरे-धीरे इराक के पूरे भौगोलिक परिदृश्य को बदल सकती है।

इराक, जो कभी महान मेसोपोटामियन सभ्यता (Mesopotamian Civilization) का केंद्र था, अब राजनीतिक अस्थिरता और आतंकवाद के कारण पहले ही कमजोर स्थिति में है। लेकिन अब यह भूवैज्ञानिक कारणों से भी खतरे में आ गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इराक का उत्तरी हिस्सा धीरे-धीरे नीचे धंस रहा है, और इसका मुख्य कारण टेक्टोनिक प्लेट्स (Tectonic Plates) की हलचल है। धरती के अंदर मैग्मा (Magma) लगातार मूवमेंट कर रहा है, और इसी के कारण टेक्टोनिक प्लेट्स एक-दूसरे से टकरा रही हैं, अलग हो रही हैं, और धंसती जा रही हैं। खासकर उत्तरी इराक के नीचे एक "सिंकिंग ओशनिक स्लैब" (Sinking Oceanic Slab) मौजूद है, जो धीरे-धीरे नीचे जा रहा है।

वैज्ञानिकों के अनुसार, यह पूरा क्षेत्र लगभग 66 मिलियन वर्ष (6.6 करोड़ साल) पुराना है और लगातार भूगर्भीय परिवर्तनों से गुजर रहा है। धरती के अंदर मौजूद कोर (Core), मेंटल (Mantle), और क्रस्ट (Crust) की हलचल से यह प्रक्रिया प्रभावित होती है। जब टेक्टोनिक प्लेट्स टकराती हैं, तो उनमें दरारें (Cracks) बनती हैं और कमजोर प्लेटें धीरे-धीरे धरती के नीचे समाने लगती हैं। यही कारण है कि उत्तरी इराक का क्षेत्र धीरे-धीरे धंस रहा है। यह एक बेहद धीमी प्रक्रिया है, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि लाखों सालों में इसका असर पूरी तरह दिखाई देगा।

इराक की भौगोलिक स्थिति को समझें, तो यह पश्चिम में सीरिया, उत्तर में तुर्की, पूर्व में ईरान और दक्षिण में सऊदी अरब से घिरा हुआ है। इसकी कोस्टलाइन (Coastline) बहुत छोटी है, लगभग 50 किलोमीटर के आसपास। इसका अधिकांश भाग रेगिस्तान और पहाड़ी क्षेत्र से भरा हुआ है। हालांकि, टिगरिस (Tigris) और यूफ्रेट्स (Euphrates) जैसी नदियों के कारण इसका कुछ हिस्सा उपजाऊ भी है। लेकिन अब यह उपजाऊ क्षेत्र भी धीरे-धीरे प्रभावित हो सकता है, क्योंकि भूगर्भीय हलचलों के कारण इसका जलवायु और भौगोलिक संतुलन बिगड़ सकता है।

वैज्ञानिकों की इस स्टडी को "सॉलिड अर्थ" (Solid Earth) नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है, जिसे एमआईटी (MIT) के शोधकर्ताओं ने तैयार किया है। इस स्टडी में यह बताया गया है कि जिस प्रकार जगरोस पर्वत (Zagros Mountains) का क्षेत्र धंस रहा है, वह टेक्टोनिक प्लेटों की हलचल और समुद्र के नीचे दबे स्लैब्स (Slabs) के खिसकने का नतीजा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि धरती का यह हिस्सा एक बड़ी भूगर्भीय प्रक्रिया का हिस्सा है, जो लाखों वर्षों से जारी है।

भूगर्भीय वैज्ञानिकों का मानना है कि यह धंसने की प्रक्रिया "टेथिस ओशनिक स्लैब" (Tethys Oceanic Slab) नामक एक पुराने समुद्री क्षेत्र से जुड़ी हुई है। यह स्लैब लगभग 66 मिलियन साल पहले बना था और अब धीरे-धीरे विभाजित हो रहा है। यह विभाजन दक्षिण-पूर्व तुर्की से लेकर उत्तर-पश्चिम ईरान तक फैल रहा है। इस प्रक्रिया के कारण इराक का उत्तरी क्षेत्र प्रभावित हो रहा है, और इसके भविष्य को लेकर वैज्ञानिकों में चिंता बढ़ रही है।

टेक्टोनिक प्लेट्स की इस हलचल से भूकंप (Earthquake) आने की संभावना भी बढ़ जाती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि भूकंप एकमात्र प्राकृतिक आपदा है, जिसे सटीक रूप से भविष्यवाणी नहीं किया जा सकता। यह तब आता है जब धरती के अंदर मौजूद एनर्जी अचानक रिलीज होती है। जब प्लेट्स के बीच दबाव बहुत ज्यादा बढ़ जाता है, तो वे खिसकने लगती हैं और इससे बड़े पैमाने पर झटके उत्पन्न होते हैं। भूकंप आने से पहले सिर्फ कुछ सेकंड या मिनट पहले ही इसका अनुमान लगाया जा सकता है, जो किसी भी तरह से लोगों को सुरक्षित करने के लिए पर्याप्त नहीं होता।

भूगर्भीय शोधकर्ताओं ने बताया कि इराक के जगरोस पर्वत क्षेत्र में बनने वाले गहरे गड्ढे इस बात का संकेत हैं कि यह क्षेत्र धीरे-धीरे धंस रहा है। वैज्ञानिकों ने बताया कि भविष्य में यह धंसने की प्रक्रिया और तेज हो सकती है, जिससे इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति में बड़ा बदलाव आ सकता है। अगर यह प्रक्रिया जारी रही, तो अगले लाखों वर्षों में इराक का लगभग 60-70% हिस्सा पूरी तरह से गायब हो सकता है।

यह स्टडी इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है कि इससे हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि हमारी धरती कैसे काम करती है और विभिन्न भूगर्भीय प्रक्रियाएं कैसे हमारे ग्रह को प्रभावित कर रही हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह शोध भविष्य में भूकंप की भविष्यवाणी करने और अन्य प्राकृतिक आपदाओं को समझने में मदद कर सकता है। जब वैज्ञानिक यह समझ पाएंगे कि टेक्टोनिक प्लेट्स किस तरह मूव कर रही हैं और धरती के अंदर क्या चल रहा है, तो इससे प्राकृतिक आपदाओं से निपटने की बेहतर योजनाएं बनाई जा सकती हैं।

इस शोध के निष्कर्ष यह भी बताते हैं कि हिमालयी क्षेत्र (Himalayan Region) भी अभी धीरे-धीरे बढ़ रहा है, क्योंकि वहां की टेक्टोनिक प्लेट्स लगातार दबाव में हैं। नेपाल और उत्तर भारत में अक्सर आने वाले भूकंप इसी कारण होते हैं। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में भी भविष्य में बड़े भूकंप आ सकते हैं। इसलिए इस तरह की भूगर्भीय हलचलों को समझना और उनसे बचाव के उपाय करना बेहद जरूरी हो गया है।

इराक के इस संकट से यह भी पता चलता है कि प्राकृतिक आपदाएं सिर्फ जलवायु परिवर्तन (Climate Change) या मानवीय हस्तक्षेप के कारण नहीं होतीं, बल्कि धरती के अंदर चल रही प्रक्रियाएं भी इसमें बड़ी भूमिका निभाती हैं। अगर इराक इसी तरह धंसता रहा, तो भविष्य में वहां रहने वाले लोगों को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, यह एक बहुत धीमी प्रक्रिया है और वर्तमान में वहां के निवासियों को इससे कोई बड़ा खतरा नहीं है। लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि आने वाले समय में यह भूगर्भीय गतिविधियां और तेज हो सकती हैं, जिससे इस क्षेत्र का पूरा परिदृश्य बदल सकता है।

इस शोध से हमें यह सीखने को मिलता है कि हमारी धरती लगातार बदल रही है, और हमें इसके बदलावों को समझकर भविष्य की तैयारियां करनी होंगी। भूगर्भीय घटनाओं को समझने से न सिर्फ हमें प्राकृतिक आपदाओं के बारे में जानकारी मिलेगी, बल्कि हम उनके प्रभावों को कम करने के उपाय भी कर सकते हैं। वैज्ञानिकों की यह रिसर्च इराक के भविष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो सकती है, और इससे हमें यह जानने का मौका मिलता है कि हमारा ग्रह किस तरह काम करता है और इसके अंदर चल रही हलचलों का हमारी जिंदगी पर क्या असर पड़ सकता है।

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