India's Masterstroke After US Tariffs! यूके संग बड़ी डील तय!

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यूके संग बड़ी डील तय!

 हाल ही में अमेरिका द्वारा भारत सहित कई देशों पर टैरिफ (Tariff) लगाए जाने की घोषणा की गई, जिससे वैश्विक व्यापारिक समीकरणों में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। टैरिफ का सीधा अर्थ यह है कि जब कोई देश किसी अन्य देश से आयात करता है और उस पर अतिरिक्त कर (Tax) लगाया जाता है, ताकि घरेलू उत्पादों को प्रतिस्पर्धा में बनाए रखा जा सके। उदाहरण के लिए, यदि चीन से कोई उत्पाद मात्र 10 रुपये में भारत में आता है, लेकिन भारतीय बाजार में वही उत्पाद 100 रुपये में बेचा जाता है, तो इससे घरेलू उद्योगों को नुकसान हो सकता है। ऐसे में सरकार उस सस्ते आयातित उत्पाद पर टैरिफ लगाती है ताकि उसकी कीमत भारतीय उत्पादों के बराबर हो जाए या उससे अधिक हो, जिससे घरेलू व्यापार को बढ़ावा मिले। अमेरिका ने हाल ही में भारत, चीन और ब्राजील जैसे देशों के उत्पादों पर 25% से 100% तक टैरिफ लगाने की घोषणा की, जिससे भारतीय व्यापार को लेकर नई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं।

इस स्थिति में भारत ने अमेरिका को कड़ा जवाब देते हुए अपने व्यापारिक समीकरणों में बदलाव करने का निर्णय लिया। अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ से बचने और नए व्यापारिक अवसरों को तलाशने के लिए भारत ने यूनाइटेड किंगडम (UK) के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को और मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। भारत और यूके के बीच एक "फ्री ट्रेड एग्रीमेंट" (Free Trade Agreement) पहले से ही बातचीत में था, लेकिन हाल ही में इसे और गति दी गई है। यह समझौता अमेरिका के टैरिफ के प्रभाव को कम करने में मदद करेगा और भारतीय व्यापार को एक नई दिशा देगा।

यूके अमेरिका का करीबी सहयोगी माना जाता है, लेकिन हाल की परिस्थितियों में भारत और यूके के बीच व्यापारिक समझौते को लेकर सकारात्मक संकेत देखने को मिले हैं। भारत ने अमेरिका के टैरिफ के जवाब में यूके को व्यापारिक साझेदार के रूप में प्राथमिकता दी है। 2022 में भारत और यूके के बीच व्यापारिक रिश्तों को लेकर बातचीत शुरू हुई थी, और अब इसे नए स्तर पर ले जाया जा रहा है। अमेरिका के नए टैरिफ के बाद यूरोपीय यूनियन और यूके के साथ भारत की व्यापार वार्ताएं फिर से शुरू हुई हैं, जिससे संकेत मिलता है कि भारत अब अमेरिका के विकल्प के रूप में अन्य बाजारों की ओर रुख कर रहा है।

पिछले आठ महीनों से भारत और यूके के बीच कोई व्यापारिक वार्ता नहीं हुई थी क्योंकि भारत में आम चुनाव और यूके में संसदीय चुनाव चल रहे थे। इस कारण से 2022 में शुरू हुआ "फ्री ट्रेड एग्रीमेंट" (FTA) कहीं न कहीं रुका हुआ था। लेकिन अब इन चुनावी बाधाओं के खत्म होने के बाद, भारत और यूके ने फिर से इस समझौते को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया है। भारत का यह कदम वैश्विक व्यापारिक समीकरणों में एक नई दिशा तय कर सकता है, क्योंकि इससे न केवल भारतीय व्यापार को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि अमेरिका के टैरिफ प्रभाव को भी कम किया जा सकेगा।

यूके और भारत के बीच व्यापारिक संबंधों में खास दिलचस्पी यूके द्वारा भारतीय व्हिस्की (Whisky) में दिखाई गई है। भारत में कुछ राज्यों ने शराब पर प्रतिबंध लगाया है, लेकिन यूके में भारतीय व्हिस्की की मांग तेजी से बढ़ रही है। इससे यह स्पष्ट होता है कि भारतीय उत्पादों की गुणवत्ता और मांग वैश्विक बाजारों में बढ़ रही है। भारत के "मेक इन इंडिया" (Make in India) और "वोकल फॉर लोकल" (Vocal for Local) जैसे अभियानों ने भारतीय उत्पादों को वैश्विक स्तर पर एक अलग पहचान दिलाई है, और अब भारतीय व्हिस्की यूरोपियन बाजारों में तेजी से अपनी जगह बना रही है।

यूके और भारत के बीच व्यापारिक वार्ताओं की शुरुआत 2022 में हुई थी और अब इसे फिर से गति दी जा रही है। 2022 में छह दौर की बातचीत के बाद व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। 2023 में यह संख्या बढ़कर सात तक पहुंच गई, जहां भारत और यूके के बीच कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर सहमति बनी। हालांकि, 2024 में केवल एक बैठक आयोजित की गई, जो जनवरी से मार्च के बीच हुई थी। अब 2025 में इस व्यापारिक वार्ता को पुनः गति दी जा रही है, जिससे यह संकेत मिलता है कि भारत और यूके के बीच व्यापारिक संबंधों को और मजबूत किया जाएगा।

भारत ने यूके से आयात (Import) में कटौती की है, जबकि निर्यात (Export) में वृद्धि की है। 2021-22 में भारत ने यूके से 8.96 बिलियन डॉलर का आयात किया था, जो 2022-23 में घटकर 8.41 बिलियन डॉलर रह गया। 2023-24 में यह और घटकर 5.41 बिलियन डॉलर हो गया। लेकिन वहीं, भारत का यूके को निर्यात बढ़ा है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भारत अपने व्यापारिक घाटे (Trade Deficit) को नियंत्रित करने की दिशा में काम कर रहा है। जबकि अमेरिका और चीन के साथ व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है, यूके भारत के लिए एक संतुलित व्यापारिक साझेदार बना हुआ है।

हालांकि, इस व्यापार समझौते में कुछ चुनौतियां भी हैं। इनमें से सबसे प्रमुख "कार्बन टैक्स" (Carbon Tax) है। यूके ने प्रस्ताव दिया है कि भारत से आने वाले उत्पादों पर कार्बन टैक्स लगाया जाए, क्योंकि इन उत्पादों का निर्माण उद्योगों में किया जाता है, जिससे कार्बन उत्सर्जन (Carbon Emission) होता है। भारत इस प्रस्ताव से सहमत नहीं है क्योंकि भारत अभी भी एक "विकासशील देश" (Developing Nation) है और उसके पास पश्चिमी देशों की तरह औद्योगिक विकास का लंबा इतिहास नहीं है। भारत का तर्क है कि जब पश्चिमी देश पहले ही औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) के दौरान बड़े पैमाने पर कार्बन उत्सर्जन कर चुके हैं, तो अब विकासशील देशों पर कार्बन टैक्स लगाना न्यायसंगत नहीं है।

इसके अलावा, "सोशल सिक्योरिटी एग्रीमेंट" (Social Security Agreement) भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। भारत चाहता है कि उसके नागरिकों को यूके में सामाजिक सुरक्षा (Social Security) की गारंटी दी जाए। भारत ने पहले से ही बेल्जियम, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, फ्रांस, डेनमार्क, कोरिया और नीदरलैंड जैसे देशों के साथ ऐसे समझौते किए हैं। भारत की मांग है कि यूके भी भारतीय नागरिकों के लिए इसी तरह की सुरक्षा गारंटी प्रदान करे।

अमेरिका द्वारा लगाए गए नए टैरिफ ने वैश्विक व्यापारिक समीकरणों को हिलाकर रख दिया है। लेकिन भारत ने इसका समाधान निकालते हुए यूके और यूरोपियन यूनियन के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को मजबूती देने का निर्णय लिया है। यूके भारत के लिए एक महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार है, क्योंकि भारत यहां व्यापार घाटे को नियंत्रित कर सकता है और नए व्यापारिक अवसरों को तलाश सकता है। भारत और यूके के बीच चल रही व्यापारिक वार्ताएं 2025 में फिर से शुरू हो रही हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि भारत अब अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव को कम करने के लिए नए बाजारों में अवसर खोज रहा है। अमेरिका ने भारत पर टैरिफ लगाया, लेकिन भारत ने इसका जवाब स्मार्ट तरीके से दिया है—यूके और यूरोपियन यूनियन के साथ व्यापारिक समझौते को और मजबूत करने के रूप में।

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