India Vs Germany: देखिए कैसे दोनों देशों की वेडिंग स्टाइल हैं बिल्कुल अलग

NCI

India Vs Germany 

 भारत में शादियों का क्रेज़ लगातार बढ़ता जा रहा है और यह एक विशाल इंडस्ट्री का रूप ले चुका है। हाल ही में एक रिपोर्ट के अनुसार, 2024 के अंत तक मात्र 35 दिनों में भारत में 48 लाख से अधिक शादियां होने की संभावना जताई गई थी। यह आंकड़ा न केवल देश में शादियों की बढ़ती संख्या को दर्शाता है, बल्कि इससे जुड़े कारोबार की बढ़ती रफ्तार को भी उजागर करता है। शादी के आयोजन के लिए भारत के विभिन्न बाज़ारों में असंख्य दुकानें खुल रही हैं, जहां दूल्हा-दुल्हन से लेकर पूरे परिवार के लिए जरूरी सामान आसानी से उपलब्ध हो जाता है। उदाहरण के तौर पर, दिल्ली का चांदनी चौक शादी की खरीदारी के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका है। यहां हर जरूरत का सामान मिलता है, और इस वजह से यहां प्रतिस्पर्धा भी काफी अधिक है। दुकानदारों को कम मुनाफे में सामान बेचना पड़ता है, क्योंकि हर ओर नई दुकानें खुल रही हैं और ग्राहकों को लुभाने के लिए कीमतों में कटौती करनी पड़ती है।

भारत में शादी अब सिर्फ दो लोगों का मिलन नहीं रह गई है, बल्कि यह एक भव्य समारोह बन चुकी है जिसमें पूरा परिवार और रिश्तेदार बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, केवल नवंबर-दिसंबर के शादी के सीजन में भारत में करीब 4.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक खर्च हुए। इससे भी बड़ा खर्च साल की पहली छमाही में हुआ, जहां अनुमानित खर्च 5.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया। अगर इस रकम की तुलना की जाए, तो इतने पैसों से भारत में करीब 1500 चंद्रयान-3 मिशन पूरे किए जा सकते हैं या फिर तीन स्टैचू ऑफ यूनिटी बनाए जा सकते हैं। इस बात से समझा जा सकता है कि भारतीय शादियां कितनी भव्य होती जा रही हैं। शादी के इस बाज़ार में कई लोग अच्छे मुनाफे की उम्मीद से कारोबार में उतर रहे हैं, खासतौर पर कपड़ों और गहनों की दुकानों में जबरदस्त भीड़ देखी जाती है।

वहीं, अगर जर्मनी की बात करें, तो यहां का हाल बिल्कुल विपरीत है। जर्मनी के बवेरिया राज्य में दूल्हा-दुल्हन शादियों के लिए एक खास मेले में खरीदारी करते हैं, जहां वे अपनी शादी से जुड़ी चीजें चुनते हैं। लेकिन जर्मनी में भारतीय शादियों की तुलना में मेहमानों की संख्या काफी कम होती है और शादियां अपेक्षाकृत सादगीपूर्ण होती हैं। इसका एक बड़ा कारण महंगाई भी है। जर्मनी में शादियों का खर्च कम होता जा रहा है, और लोग गैर-धार्मिक तरीके से शादी करने को प्राथमिकता दे रहे हैं। उदाहरण के लिए, चर्च वेडिंग की जगह अब लोग सीधे रजिस्ट्री ऑफिस में जाकर छोटे स्तर पर शादी कर रहे हैं। खर्च बचाने के लिए मेहमानों की संख्या भी घटाई जा रही है, और आंकड़े बताते हैं कि 2022 में हुई शादियों में केवल 2% शादियों में 150 से अधिक मेहमान थे, जबकि कुछ शादियां ऐसी भी थीं, जहां केवल दूल्हा और दुल्हन ही मौजूद थे। जर्मनी में आर्थिक मंदी का असर शादियों पर भी साफ देखा जा सकता है। यहां वेडिंग एग्जीबिशन यानी शादी से जुड़ी प्रदर्शनियों की संख्या घट रही है और कई प्रदर्शकों ने कारोबार तक बंद कर दिया है क्योंकि उन्हें अब पहले जैसा मुनाफा नहीं हो रहा है।

दूसरी ओर, भारत में शादियों का बजट लगातार बढ़ता जा रहा है। हाल ही में भारत में दुनिया की सबसे महंगी शादी हुई, जिसमें अनंत अंबानी और राधिका मर्चेंट की शादी पर लगभग 5,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए। यह रकम इतनी अधिक है कि इससे प्रधानमंत्री आवास योजना में तीन लाख लोगों को घर दिए जा सकते हैं या सात राफेल लड़ाकू विमान खरीदे जा सकते हैं। भले ही यह शादी देश के सबसे अमीर परिवारों में से एक में हुई हो, लेकिन यह दिखाता है कि शादी पर खर्च करने की प्रवृत्ति अब छोटे शहरों तक भी फैल गई है। आजकल शादी को यादगार बनाने के लिए लोग खुले हाथों से खर्च कर रहे हैं। जैसे कि कनाडा में रहने वाला एक कपल, जिसने भारत में शादी करने के लिए तीन साल तक तैयारी की। यह दुल्हन कहती है कि उसके लिए यह जीवन बदलने वाला अनुभव था और वह चाहती थी कि उसकी शादी सबसे भव्य हो। यही कारण है कि वह शादी से तीन महीने पहले कनाडा से भारत आई ताकि समय पर सारी खरीदारी पूरी कर सके।

सोशल मीडिया का भी इसमें बहुत बड़ा योगदान है। पहले लोग शादियों को पारिवारिक आयोजन की तरह देखते थे, लेकिन अब यह एक सामाजिक प्रतिस्पर्धा बन गया है। लोग अपनी शादी को न केवल खुद के लिए, बल्कि सोशल मीडिया पर दिखाने के लिए भी भव्य बनाना चाहते हैं। शादी का आयोजन अब केवल एक परंपरा नहीं रह गया है, बल्कि यह स्टेटस सिंबल बन चुका है। बड़े-बड़े वेडिंग प्लानर अब इस इंडस्ट्री में सक्रिय हो चुके हैं। भारत में कई वेडिंग प्लानिंग कंपनियां उभर रही हैं, जो शादी को और अधिक शानदार बनाने के लिए नए-नए आइडियाज पेश कर रही हैं। वेडिंग प्लानिंग कंपनी के मालिक बताते हैं कि आजकल हर कपल चाहता है कि उसकी शादी सबसे अनोखी हो, और इसके लिए वे लाखों-करोड़ों रुपये खर्च करने से भी पीछे नहीं हटते। भारत में जहां शादी का यह व्यवसाय फल-फूल रहा है, वहीं जर्मनी में भी वेडिंग प्लानिंग का बाजार मौजूद है, लेकिन यहां का खर्च भारत की तुलना में बहुत कम होता है। जर्मनी में भी कुछ वेडिंग प्लानर काम कर रहे हैं, लेकिन वे आमतौर पर ऐसे ग्राहकों के लिए काम करते हैं जिनके पास समय की कमी होती है और वे आयोजन की जिम्मेदारी किसी और को सौंपना चाहते हैं।

गहनों की बात करें, तो भारत में शादी में सोने के गहनों की खरीदारी एक अनिवार्य परंपरा है। वहीं जर्मनी में भी शादी की अंगूठी का विशेष महत्व होता है, लेकिन यहां परिवार के पुराने गहनों को दोबारा उपयोग में लाकर नई अंगूठी बनाई जाती है, जिससे पारिवारिक परंपरा भी जीवित रहती है और अनावश्यक खर्च भी कम होता है। दूसरी ओर, भारत में दुल्हन के लिए भारी-भरकम गहनों की खरीदारी की जाती है, जिसे शादी के बाद भी एक संपत्ति के रूप में देखा जाता है।

अंततः, भारत और जर्मनी की शादियों में बहुत बड़ा अंतर है। जहां भारत में शादी एक भव्य उत्सव के रूप में मनाई जाती है, वहीं जर्मनी में इसे सादगी के साथ संपन्न किया जाता है। भारत में जहां शादियों में खर्च करने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है और यह एक दिखावे का रूप ले रही है, वहीं जर्मनी में लोग धीरे-धीरे खर्च घटाने पर ध्यान दे रहे हैं। सवाल यह उठता है कि क्या भारत में शादियों में जरूरत से ज्यादा खर्च करना सही है? क्या यह एक सामाजिक दबाव बन चुका है, जिसके कारण लोग अपनी जमा पूंजी तक शादी में लगा देते हैं, या फिर लोन लेकर भव्य शादी करने को मजबूर होते हैं?

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