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Are Earning Big with Integrated Farming |
उनके अनुसार, यह सब तब शुरू हुआ जब उनके केले के पत्तों में बीमारी लग गई। उन्होंने एक विशेष मछली के बारे में सुना, जो मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने और पौधों को स्वस्थ रखने में मदद करती है। उन्होंने इस पद्धति को अपनाया और इसका असर जल्द ही दिखने लगा। अब उनके खेतों में सिर्फ केले ही नहीं बल्कि कई अन्य फसलें भी उगाई जाती हैं। उन्होंने छह बड़े टैंक बनाए हैं, जिनमें कुछ टैंक मछलियों के लिए हैं और कुछ उनके मल (Waste) के लिए। मछलियों का मल और पानी का अपशिष्ट खेत की मिट्टी में मिलाया जाता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और पैदावार अच्छी होती है। इसके अलावा, उनके खेत में बत्तखें (Ducks) और मुर्गियां भी हैं, जिनका कचरा मछलियों के भोजन के रूप में इस्तेमाल होता है। यह एक संतुलित और प्राकृतिक चक्र (Eco-friendly Cycle) बनाता है, जिसमें हर चीज का कोई न कोई उपयोग होता है और खेती के अपशिष्ट को भी कम किया जाता है।
षणमुख सुंदरम बताते हैं कि पहले उनके खेत की मिट्टी में कार्बन की मात्रा बहुत कम थी, लेकिन अब इसमें उल्लेखनीय सुधार हुआ है। पहले वे प्रति पौधा 10 से 12 किलो उत्पादन करते थे, लेकिन अब यह बढ़कर 15 से 20 किलो हो गया है। इससे उनकी आमदनी भी बढ़ गई है और मिट्टी की गुणवत्ता भी बेहतर हुई है। खेत में काम करने वाले श्रमिक भी इस प्रक्रिया से लाभान्वित हो रहे हैं। वे केले के पौधों के सभी हिस्सों का इस्तेमाल कर रहे हैं और केले से बने लड्डू, कुकीज, चिप्स और ब्राउनीज जैसी चीजें बनाकर बेच रहे हैं। इससे न केवल खेती में अपशिष्ट कम हुआ है बल्कि अतिरिक्त आमदनी का जरिया भी खुल गया है।
अध्ययनों के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के प्रभावों को देखते हुए इंटीग्रेटेड फार्मिंग सबसे बेहतर खेती के तरीकों में से एक साबित हो रही है। इस तरीके से खेती करने वाले किसान रासायनिक खादों (Chemical Fertilizers) पर कम निर्भर होते हैं क्योंकि अधिकतर चीजें खेत में ही उपलब्ध हो जाती हैं। इसके अलावा, इस विधि से फसलों को कीड़ों से नुकसान कम होता है और मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहती है। जैव विविधता (Biodiversity) भी संरक्षित रहती है, जिससे पूरे कृषि तंत्र को लाभ होता है।
तमिलनाडु के पुडुकोटाई जिले के एक और किसान राहुल ने 2023 में इंटीग्रेटेड फार्मिंग शुरू की और अब वे इससे काफी लाभ कमा रहे हैं। वे बताते हैं कि पहले वे सिर्फ फसलों से ही आमदनी कर पाते थे, लेकिन अब उनके पास मछली पालन का अतिरिक्त लाभ भी मिल रहा है। वे अपने खेतों में अमरूद, अंजीर, आंवला, नारियल और मूंगफली जैसी फसलें उगा रहे हैं और इनसे अच्छी कमाई हो रही है। पहले वे साल में केवल एक बार ही फसल बेचकर पैसा कमाते थे, लेकिन अब हर महीने नियमित रूप से आमदनी हो रही है। यह तरीका खासकर छोटे और मध्यम किसानों के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है, क्योंकि यह कम लागत में ज्यादा उत्पादन की संभावना देता है।
हालांकि, इस खेती की कुछ चुनौतियां भी हैं। इंटीग्रेटेड फार्मिंग के लिए जरूरी बुनियादी ढांचा तैयार करना महंगा पड़ सकता है। टैंक बनाना, शेड (Shed) तैयार करना और पूरे सिस्टम को लगाना छोटे किसानों के लिए मुश्किल हो सकता है। इसके अलावा, पशुओं के लिए पशुचिकित्सा सेवाएं (Veterinary Services) भी महंगी होती हैं। साथ ही, इस नई तकनीक के बारे में किसानों में जागरूकता की कमी भी एक बड़ी समस्या है। कई किसान पारंपरिक खेती को छोड़कर नए तरीकों को अपनाने से डरते हैं क्योंकि सरकार की ओर से पारंपरिक खेती को अधिक समर्थन मिलता है और इस नए तरीके पर अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है।
लेकिन, जो किसान इस विधि को अपना चुके हैं, उन्हें इसमें काफी संभावनाएं नजर आ रही हैं। उनके अनुसार, अगर इसे सही ढंग से अपनाया जाए और सरकार से उचित सहायता मिले, तो यह खेती का भविष्य बन सकती है। यह न केवल किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाएगा, बल्कि पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद साबित होगा। मिट्टी की उर्वरता बनी रहेगी, जल का संरक्षण होगा और जैव विविधता को भी बढ़ावा मिलेगा। यह कृषि के क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव ला सकता है और देश के किसानों को आत्मनिर्भर बनाने में मदद कर सकता है।
इंटीग्रेटेड फार्मिंग न केवल एक नई खेती की विधि है, बल्कि यह एक संपूर्ण कृषि प्रणाली (Sustainable Farming System) है, जो पारंपरिक खेती की कई समस्याओं का समाधान देती है। यह मिट्टी की सेहत को बनाए रखने, जल संसाधनों के उचित उपयोग और किसान की आमदनी को बढ़ाने में मदद करती है। यदि इस मॉडल को बड़े पैमाने पर अपनाया जाए और सरकार भी इसे प्रोत्साहित करे, तो यह भारत के कृषि क्षेत्र के लिए एक क्रांतिकारी कदम साबित हो सकता है।