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AI in Education |
आधुनिक शिक्षा प्रणाली में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग एक बड़ी बहस का विषय बन गया है। पिछले कुछ वर्षों में, खासकर कोरोना महामारी के बाद, ऑनलाइन शिक्षा और डिजिटल टूल्स का उपयोग काफी बढ़ गया है। इसी के साथ एआई आधारित चैटबॉट्स, जैसे कि चैटजीपीटी, ने छात्रों और शिक्षकों दोनों के लिए पढ़ाई को आसान बना दिया है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या एआई का यह बढ़ता उपयोग छात्रों को आलसी और निर्भर बना रहा है या फिर यह एक क्रांतिकारी बदलाव है जो शिक्षा को और अधिक सुलभ और प्रभावी बना सकता है?
पहले के समय में, परीक्षा में नकल करने के कई पारंपरिक तरीके थे। कुछ छात्र टॉयलेट में नोट्स छिपाकर नकल करते थे, तो कुछ अपनी आंसर शीट्स की अदला-बदली करके। लेकिन अब ये तरीके पुराने हो चुके हैं। कोरोना महामारी ने पढ़ाई का तरीका पूरी तरह बदल दिया है। ऑनलाइन क्लासेस, असाइनमेंट्स और परीक्षाएं आम हो गई हैं। इसी माहौल में चैटजीपीटी जैसे एआई टूल्स ने ऑनलाइन परीक्षाओं में पास होने और असाइनमेंट्स करने के लिए एक स्मार्ट तरीका प्रदान कर दिया है।
आज के समय में, छात्र चैटबॉट्स को स्टडी असिस्टेंट की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, यदि किसी छात्र को कोडिंग समझ नहीं आ रही है, तो वह चैटजीपीटी से अपने कोड को समझने में मदद ले सकता है। बस कोड कॉपी-पेस्ट करना होता है और चैटबॉट उसे लाइन-बाय-लाइन समझा देता है। यूनाइटेड किंगडम में 53% अंडरग्रेजुएट छात्र असाइनमेंट्स के लिए एआई की मदद लेते हैं। भारत में भी यह आंकड़ा लगभग 44% तक पहुंच चुका है। सिर्फ छात्र ही नहीं, बल्कि 60% शिक्षक भी एआई का उपयोग लेसन प्लानिंग और स्टूडेंट मैनेजमेंट के लिए कर रहे हैं।
हालांकि, इस बढ़ते उपयोग के साथ ही कई नैतिक और शैक्षिक चिंताएं भी सामने आ रही हैं। भारत की एक प्रतिष्ठित प्राइवेट यूनिवर्सिटी ने एक लॉ स्टूडेंट को इसलिए फेल कर दिया क्योंकि उसने अपने जवाबों में एआई जनरेटेड कंटेंट का उपयोग किया था। इस फैसले को छात्र ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी। यह मामला बताता है कि एआई के इस्तेमाल और साहित्यिक चोरी (plagiarism) के बीच की रेखा बहुत पतली है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने प्लेजरिज्म रोकने के लिए सख्त नियम बनाए हैं। यदि कोई छात्र एआई जनरेटेड कंटेंट को अपने नाम से पेश करता है और उसका उचित क्रेडिट नहीं देता, तो यह साहित्यिक चोरी मानी जाएगी और उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई हो सकती है।
एक जर्मन यूनिवर्सिटी के अध्ययन में यह सामने आया कि जो छात्र एआई का अधिक उपयोग करते हैं, वे समय के साथ अपना दिमाग कम इस्तेमाल करने लगते हैं। क्योंकि जब कोई व्यक्ति खुद रिसर्च करके और सोच-विचार करके अपने विचार रखता है, तो उसकी तार्किक क्षमता और समझदारी विकसित होती है। लेकिन अगर एआई पर अधिक निर्भरता हो जाए, तो व्यक्ति की सोचने-समझने की शक्ति कमजोर हो सकती है। यह एक खतरनाक संकेत है, क्योंकि अगर भविष्य में डॉक्टर, वकील और अन्य पेशेवर लोग एआई पर पूरी तरह निर्भर हो जाएंगे, तो उनके ज्ञान और विशेषज्ञता की गुणवत्ता पर सवाल उठने लगेंगे।
इस समस्या से निपटने के लिए कई विश्वविद्यालय अब "एआई-फ्रेंडली" नीतियों पर काम कर रहे हैं। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी जैसी संस्थाएं अब छात्रों को एआई का उपयोग करने की अनुमति दे रही हैं, लेकिन इसके सीमित दायरे तय किए गए हैं। यानी, छात्र इसे एक सहायक उपकरण के रूप में उपयोग कर सकते हैं, लेकिन वे इस पर पूरी तरह निर्भर नहीं हो सकते। साथ ही, परीक्षाओं को इस तरह डिजाइन किया जाना चाहिए कि उन्हें एआई की मदद से चीट करना असंभव हो जाए।
एआई डिटेक्शन टूल्स का उपयोग करके शिक्षकों को यह पता लगाने में मदद मिल सकती है कि कोई कंटेंट एआई जनरेटेड है या नहीं। लेकिन वर्तमान में ये टूल्स पूरी तरह सटीक नहीं हैं। कभी-कभी ये मनुष्यों द्वारा लिखे गए टेक्स्ट को भी एआई जनरेटेड मान लेते हैं, और कभी-कभी एआई द्वारा लिखे गए कंटेंट को पहचानने में असफल हो जाते हैं। खासकर नॉन-इंग्लिश भाषाओं में यह समस्या और भी बढ़ जाती है। हिंदी, अरबी और अन्य भाषाओं में ऐसे कई मुहावरे और व्याकरणिक नियम होते हैं, जिन्हें एआई अभी तक ठीक से समझ नहीं पाता। इसके अलावा, कुछ छात्र एआई डिटेक्शन टूल्स को चकमा देने के लिए छोटे-छोटे बदलाव करके टेक्स्ट को अलग दिखाने की कोशिश करते हैं।
एआई को शिक्षा में उपयोग करना पूरी तरह गलत नहीं है, लेकिन इसका संतुलित और नैतिक उपयोग होना चाहिए। एआई एक बेहतरीन टूल हो सकता है, यदि इसका सही तरीके से उपयोग किया जाए। उदाहरण के लिए, छात्र इसे जटिल विषयों को समझने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन उन्हें खुद भी सोचने और विश्लेषण करने की आदत डालनी चाहिए। शिक्षकों को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि छात्र सिर्फ एआई पर निर्भर न रहें, बल्कि खुद मेहनत करके पढ़ाई करें।
भविष्य में, शिक्षा प्रणाली में एआई की भूमिका और अधिक बढ़ेगी। इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि हम इसके उपयोग के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश बनाएं। परीक्षाओं और असाइनमेंट्स को इस तरह डिजाइन किया जाए कि छात्रों को खुद सोचने और विश्लेषण करने का मौका मिले। इसके साथ ही, विश्वविद्यालयों को यह समझना होगा कि पूरी तरह से एआई को प्रतिबंधित करना समाधान नहीं है, बल्कि छात्रों को इसके सही उपयोग के बारे में सिखाना अधिक जरूरी है।
अगर हम एआई का सही उपयोग करना सीख लें, तो यह शिक्षा जगत में एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। लेकिन अगर हमने इसका अनुचित इस्तेमाल किया, तो यह छात्रों की बौद्धिक क्षमता को कमजोर भी कर सकता है। इसलिए, जरूरत है एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की, जिससे शिक्षा को बेहतर बनाया जा सके, लेकिन छात्रों की मौलिक सोच और रचनात्मकता को बनाए रखा जा सके।