Trump Strikes Again |
ईरान और अमेरिका के बीच लंबे समय से चले आ रहे संबंधों का तनावपूर्ण इतिहास एक बार फिर से सुर्खियों में है। हाल ही में अमेरिका में ट्रंप प्रशासन की वापसी ने ईरान को नई चिंताओं में डाल दिया है। ईरान और अमेरिका के बीच 2015 में हुई न्यूक्लियर डील, जिसे जेसीपीओए (Joint Comprehensive Plan of Action) के नाम से जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण समझौता था। इस डील में ईरान ने अपनी न्यूक्लियर गतिविधियों को सीमित करने और हथियारों के विकास को रोकने का वादा किया था। इसके बदले, अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों ने ईरान पर लगे कड़े आर्थिक प्रतिबंधों को हटाने का निर्णय लिया था।
हालांकि, 2017 में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद यह डील संकट में आ गई। ट्रंप ने आरोप लगाया कि ईरान गुप्त रूप से यूरेनियम का एनरिचमेंट (परिष्कृत) कर रहा है, जो न्यूक्लियर हथियारों के निर्माण के लिए इस्तेमाल हो सकता है। इस आरोप के आधार पर अमेरिका ने 2018 में इस डील से खुद को अलग कर लिया और ईरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध फिर से लागू कर दिए। ईरान ने इसके जवाब में अपनी न्यूक्लियर गतिविधियां बढ़ाने की घोषणा की।
ईरान ने अपनी न्यूक्लियर फैसिलिटीज को तेजी से विकसित किया, जिसमें नतांज और बुशर जैसे केंद्र शामिल हैं। इन केंद्रों में यूरेनियम को एनरिच करने के लिए सेंट्रीफ्यूज का इस्तेमाल किया गया। यह प्रक्रिया यूरेनियम को रिसर्च, न्यूक्लियर पावर प्लांट्स, और हथियारों के लिए तैयार करने में मदद करती है। अमेरिका का कहना है कि ईरान ने अपने सेंट्रीफ्यूज की संख्या 20,000 तक पहुंचा दी है, जो सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक है।
ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों के चलते उसकी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ। तेल निर्यात, जो देश की आय का मुख्य स्रोत है, लगभग बंद हो गया। इसके साथ ही, ईरान को अंतरराष्ट्रीय बाजार में तकनीक और अन्य आवश्यक सामान प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इस स्थिति ने ईरान को रशिया और चीन जैसे देशों की ओर रुख करने पर मजबूर किया।
अब जब ट्रंप प्रशासन वापस सत्ता में है, तो ईरान को और अधिक कड़े प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप 2.0 प्रशासन ईरान पर दबाव बढ़ाने की रणनीति अपनाएगा। इस स्थिति ने ईरान को एक बार फिर से चिंतित कर दिया है। ईरान के अधिकारियों ने अमेरिका से प्रतिबंध हटाने की अपील की है, लेकिन अमेरिका ने अभी तक इस पर कोई सकारात्मक संकेत नहीं दिया है।
2015 की डील के तहत ईरान को यूरेनियम का एनरिचमेंट 5% तक सीमित रखना था, जो न्यूक्लियर पावर प्लांट्स के लिए उपयुक्त है। रिसर्च के लिए 20% एनरिचमेंट और हथियारों के लिए 90% से अधिक एनरिचमेंट की आवश्यकता होती है। ईरान पर आरोप है कि उसने यूरेनियम को 90% से अधिक एनरिच कर लिया है, जो न्यूक्लियर हथियार निर्माण का संकेत देता है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए यह चिंता का विषय है कि ईरान बैलिस्टिक मिसाइल्स के निर्माण में भी लगा हुआ है। ये मिसाइल्स हजारों किलोमीटर दूर तक हमला करने में सक्षम हैं। यह अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के लिए एक बड़ी चुनौती है।
ईरान के लिए रशिया और चीन का समर्थन महत्वपूर्ण है। दोनों देश ईरान को आर्थिक और तकनीकी मदद देने के लिए तैयार हैं। हालांकि, पश्चिमी देशों के दबाव के कारण यह सहयोग सीमित हो सकता है।
ईरान और अमेरिका के बीच तनाव न केवल दोनों देशों के लिए बल्कि वैश्विक स्थिरता के लिए भी गंभीर खतरा है। आने वाले समय में यह देखना होगा कि क्या ट्रंप प्रशासन और ईरान के बीच कोई नई डील संभव है, या फिर यह तनाव और बढ़ेगा।
इस पूरी स्थिति ने एक बार फिर से दिखा दिया है कि न्यूक्लियर हथियारों का प्रसार और वैश्विक राजनीति कितनी जटिल है। ईरान और अमेरिका के बीच संघर्ष को सुलझाने के लिए दोनों पक्षों को गंभीरता से कदम उठाने की जरूरत है।