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टीएमसी (तृणमूल कांग्रेस) में इन दिनों काफी राजनीतिक उथल-पुथल देखने को मिल रही है। ममता बनर्जी और उनके भांजे अभिषेक बनर्जी के बीच मतभेदों की खबरें सुर्खियों में हैं। 2011 से बंगाल की राजनीति पर ममता बनर्जी का दबदबा रहा है। उनकी पार्टी ने हर चुनाव में भारी बहुमत से जीत हासिल की है। लेकिन अब, पार्टी के भीतर आंतरिक कलह और खींचतान उनके नेतृत्व को चुनौती दे रही है।
अभिषेक बनर्जी, जो 2011 से टीएमसी में सक्रिय हैं, पार्टी के युवा विंग के अध्यक्ष रह चुके हैं और फिलहाल पार्टी के जनरल सेक्रेटरी के पद पर हैं। ममता बनर्जी के बाद उन्हें पार्टी का सबसे ताकतवर नेता माना जाता है। लेकिन हाल ही में, पार्टी के भीतर अभिषेक बनर्जी और ममता बनर्जी के लॉयलिस्ट्स के बीच गहराते मतभेदों ने पूरे राजनीतिक परिदृश्य को बदल कर रख दिया है। ममता बनर्जी ने हाल ही में एक बैठक में स्पष्ट संकेत दिए कि वह अभिषेक बनर्जी के करीबी नेताओं को अब बर्दाश्त नहीं करेंगी। इस फैसले ने पार्टी में मौजूद दो गुटों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह स्थिति पार्टी के भविष्य के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। ममता बनर्जी ने हाल ही में अपनी पार्टी के कुछ करीबी नेताओं पर सवाल उठाए और पार्टी के भीतर अनुशासन कायम रखने के लिए सख्त कदम उठाए। उन्होंने कहा कि अभिषेक बनर्जी के करीबी लोग पार्टी के अंदर अनुचित लाभ उठा रहे हैं। अभिषेक बनर्जी, जो फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन और पार्टी के भीतर लोकतांत्रिक मूल्यों की वकालत करते हैं, ममता बनर्जी के इन कदमों से असहमत नजर आए।
इसके अलावा, पार्टी के भीतर क्रिटिसिज्म को लेकर भी विवाद जारी है। कई कलाकारों और बुद्धिजीवियों ने टीएमसी सरकार की नीतियों की आलोचना की, जिसके बाद पार्टी के कुछ नेताओं ने उनके बॉयकॉट की मांग की। हालांकि, अभिषेक बनर्जी ने इस विचार का विरोध किया और कहा कि कलाकारों और बुद्धिजीवियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होना चाहिए। इस मुद्दे पर भी ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी के बीच मतभेद साफ नजर आए। ममता बनर्जी के लॉयलिस्ट्स का कहना है कि पार्टी पर की गई आलोचना बर्दाश्त नहीं की जाएगी, जबकि अभिषेक बनर्जी का मानना है कि क्रिटिसिज्म को सकारात्मक तरीके से लेना चाहिए।
इन मतभेदों के बीच, ममता बनर्जी ने अपने करीबी नेताओं को अभिषेक बनर्जी के करीबी नेताओं पर कार्रवाई करने का निर्देश दिया। यह स्थिति पार्टी के भीतर एक बड़ी दरार को दर्शाती है। सूत्रों के अनुसार, ममता बनर्जी ने बैठक में साफ कहा कि जो भी निर्णय होंगे, वह अंतिम रूप से उन्हीं के द्वारा लिए जाएंगे। इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया कि पार्टी में किसी भी प्रकार की आंतरिक चुनौती को वह बर्दाश्त नहीं करेंगी।
यह स्थिति राजनीतिक तौर पर बीजेपी और कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। टीएमसी के भीतर गहराते मतभेद विपक्षी दलों के लिए एक मौका हो सकते हैं। अगले विधानसभा चुनावों में इस आंतरिक कलह का प्रभाव निश्चित रूप से देखने को मिलेगा।
इस समय, बंगाल की राजनीति एक नाजुक मोड़ पर है। ममता बनर्जी को अपने नेतृत्व की पकड़ बनाए रखने के लिए बड़े कदम उठाने होंगे, जबकि अभिषेक बनर्जी को अपनी छवि और समर्थन को बरकरार रखने के लिए सावधानी से आगे बढ़ना होगा। टीएमसी का यह आंतरिक संकट पार्टी के भविष्य पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।