Shocking New Obesity Definition |
आजकल मोटापा सिर्फ एक स्वास्थ्य समस्या नहीं बल्कि एक व्यापक और गंभीर मुद्दा बन गया है। हाल ही में, लैंसेट जर्नल में प्रकाशित एक नई परिभाषा ने मोटापे को समझने का एक नया दृष्टिकोण दिया है। यह परिभाषा बताती है कि मोटापा केवल शरीर के भार (weight) और ऊंचाई (height) के अनुपात से नहीं मापा जा सकता। पहले, बॉडी मास इंडेक्स (BMI) ही मोटापे को मापने का मानक था। यह मानक हमें बताता था कि कौन पतला है, कौन स्वस्थ है और कौन मोटा। लेकिन लैंसेट कमीशन ने इसे और विस्तृत किया है। अब केवल BMI के आधार पर मोटापे का आकलन नहीं होगा बल्कि शरीर की संरचना और अंगों (organs) के कार्य पर भी ध्यान दिया जाएगा।
पहले, BMI को मोटापा मापने का एक सरल पैमाना माना जाता था। BMI की सीमा 18.5 से नीचे होने पर व्यक्ति को कमजोर (underweight), 18.5 से 24.9 के बीच स्वस्थ, 25 से 29.9 के बीच अधिक वजन वाला (overweight) और 30 से ऊपर मोटा (obese) माना जाता था। लेकिन इस नई परिभाषा के अनुसार, यह तरीका हर किसी के लिए सटीक नहीं है। कई लोग ऐसे होते हैं जिनका BMI सामान्य होता है लेकिन उनका पेट और शरीर का फैट (fat) अधिक होता है। वहीं, कुछ लोग जिनका मांसपेशीय भार (muscle mass) अधिक होता है, वे BMI के अनुसार मोटे माने जाते हैं, जबकि वे वास्तव में स्वस्थ होते हैं।
इस नई परिभाषा में, मोटापे को दो स्तरों में बांटा गया है: प्री-क्लिनिकल ओबेसिटी (pre-clinical obesity) और क्लिनिकल ओबेसिटी (clinical obesity)। प्री-क्लिनिकल ओबेसिटी का मतलब है कि व्यक्ति के शरीर में फैट अधिक है लेकिन अभी तक उसे कोई बड़ी बीमारी नहीं हुई है। वहीं क्लिनिकल ओबेसिटी वह अवस्था है जहां शरीर का अधिक वजन अंगों के कार्यों पर प्रभाव डालता है और जीवन के लिए खतरा बन सकता है।
लैंसेट कमीशन ने सुझाव दिया है कि मोटापे का आकलन अब केवल BMI से नहीं होगा बल्कि कई अन्य मापदंडों का उपयोग किया जाएगा। इनमें वेस्ट-टू-हिप रेशियो (waist-to-hip ratio), वेस्ट-टू-हाइट रेशियो (waist-to-height ratio), ट्राइग्लिसराइड (triglycerides) स्तर और नॉन-एल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज (non-alcoholic fatty liver disease) जैसे मापदंड शामिल हैं। ये मापदंड न केवल मोटापे को बेहतर तरीके से मापेंगे बल्कि यह भी बताएंगे कि किसी व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी जोखिम कितना है।
भारत में मोटापे की स्थिति अन्य देशों से थोड़ी अलग है। यहां लोगों का शरीर संरचना (body composition) और जीवनशैली भिन्न होती है। भारतीयों के लिए BMI की सीमा भी थोड़ी अलग है। उदाहरण के लिए, 23 से ऊपर का BMI यहां अधिक वजन और 25 से ऊपर का BMI मोटापा माना जाता है। इसके अलावा, लैंसेट की नई परिभाषा के अनुसार, अब मोटापे को स्टेज-1 और स्टेज-2 में बांटा गया है। स्टेज-1 मोटापा वह स्थिति है जहां व्यक्ति की दैनिक गतिविधियों में थोड़ी परेशानी होती है। स्टेज-2 मोटापा वह स्थिति है जहां स्वास्थ्य समस्याएं गंभीर हो जाती हैं।
इस नई परिभाषा का असर केवल मोटापा मापने तक सीमित नहीं है। यह अस्पतालों और चिकित्सा पद्धतियों को भी बदल देगा। अब अस्पताल केवल BMI के आधार पर मोटापा नहीं मापेंगे, बल्कि वे व्यक्ति के शरीर में फैट, अंगों के कार्य और अन्य मापदंडों का भी आकलन करेंगे। यह दृष्टिकोण अधिक वैज्ञानिक और सटीक है।
मोटापा केवल एक शारीरिक स्थिति नहीं है, बल्कि यह मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। कई लोग कम खाने के बावजूद मोटापे से जूझते हैं। इसका कारण उनके जीन (genes) या जैविक संरचना (biological structure) में हो सकता है। ऐसे लोगों के लिए सामान्य वजन घटाने के उपाय कारगर नहीं होते। उन्हें विशेष चिकित्सा और काउंसलिंग की जरूरत होती है।
लैंसेट की रिपोर्ट यह भी बताती है कि मोटापे के कारण दिल की बीमारियां (heart diseases), डायबिटीज, स्लीप एपनिया (sleep apnea), और जोड़ों का दर्द (joint pain) जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसे नियंत्रित करने के लिए स्वस्थ जीवनशैली अपनानी होगी। सही खान-पान, नियमित व्यायाम, और तनाव प्रबंधन (stress management) के जरिए मोटापे को नियंत्रित किया जा सकता है।
इस नई परिभाषा से यह साफ हो गया है कि मोटापा केवल वजन का खेल नहीं है। यह एक जटिल स्थिति है जिसे समझने और ठीक करने के लिए कई पहलुओं को ध्यान में रखना होगा। लैंसेट कमीशन की यह पहल न केवल चिकित्सा क्षेत्र में एक क्रांति है बल्कि यह आम लोगों को भी अपने स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरूक बनाएगी।