Pakistan's New Law |
पाकिस्तान ने हाल ही में एक नया कानून पारित किया है, जिसके तहत सरकार, न्यायपालिका, और सेना के खिलाफ आलोचना को अपराध की श्रेणी में डाल दिया गया है। यह कानून पाकिस्तान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बड़ा हमला माना जा रहा है। कानून के तहत, अगर कोई व्यक्ति सरकार, जजों या सेना के खिलाफ कोई टिप्पणी करता है, तो उसे तीन साल तक की जेल हो सकती है और 20 लाख पाकिस्तानी रुपये का जुर्माना भी लग सकता है। इसे "डिसइन्फॉर्मेशन" या "गलत सूचना" का नाम देकर सजा दी जाएगी, भले ही वह सूचना सही हो। इस कानून को लेकर कई लोग इसे सत्ता में बैठे लोगों का अपने आलोचकों को चुप कराने का जरिया मान रहे हैं।
पाकिस्तान में सेना का प्रभाव पहले से ही बहुत अधिक है। आम जनता पहले ही सेना के खिलाफ बोलने से डरती है क्योंकि वहां सेना का विरोध करने वालों को अक्सर घर से उठा लिया जाता है। लेकिन अब इस नए कानून के तहत सरकार और न्यायपालिका को भी आलोचना से मुक्त कर दिया गया है। इसका मतलब है कि अब आम जनता सरकार की गलत नीतियों, सेना की कार्रवाइयों या न्यायपालिका के फैसलों के खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं कर सकेगी। आलोचना करने वालों को जेल और भारी जुर्माने का सामना करना पड़ेगा।
पाकिस्तान में इस कानून के लागू होने से सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। यह भी संभव है कि अब लोग सोशल मीडिया पर वीपीएन का अधिक उपयोग करें ताकि सरकार उनकी गतिविधियों पर नजर न रख सके। लेकिन सरकार ने वीपीएन के उपयोग पर भी कार्रवाई की योजना बनाई है। इसके साथ ही, एलन मस्क की स्टारलिंक सेवा को लेकर भी पाकिस्तान सरकार चिंतित है। उन्हें डर है कि अगर यह सेवा पाकिस्तान में शुरू हो गई तो इंटरनेट का नियंत्रण उनके हाथ से निकल सकता है।
वहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पाकिस्तान की छवि को इस कानून के कारण नुकसान हो सकता है। आलोचकों का मानना है कि यह कानून पाकिस्तान को और अधिक तानाशाही की तरफ धकेल देगा। इसके अलावा, बांग्लादेश के मामलों में भी पाकिस्तान का रुख चर्चा में है। बांग्लादेश में हाल ही में हुई छात्र आंदोलनों ने शेख हसीना की सरकार को गिरा दिया, और अब वहां मोहम्मद यूनुस को प्रमुख सलाहकार के रूप में देखा जा रहा है। वह बांग्लादेश में चुनाव प्रक्रिया को 2026 तक टालने की योजना बना रहे हैं। इससे बांग्लादेश में भी अस्थिरता बढ़ने की आशंका है।
भारत के संदर्भ में देखा जाए तो पाकिस्तान की यह नीतियां भारत के लिए एक सबक हैं कि कैसे लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिए। भारत में, जहां चुनाव एक व्यवस्थित प्रक्रिया के तहत होते हैं, यह दिखाता है कि लोकतंत्र की ताकत जनता के हाथों में होती है। इसके विपरीत, पाकिस्तान में सरकारें और नीतियां अक्सर सेना या बाहरी शक्तियों के प्रभाव में बनाई जाती हैं।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों ही अपनी स्वतंत्रता के बाद से संघर्षों से गुजरे हैं। लेकिन जहां भारत ने एक स्थिर लोकतांत्रिक व्यवस्था विकसित की, वहीं पाकिस्तान और बांग्लादेश में बार-बार राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता देखी गई। इन देशों में तानाशाही और सैन्य शासन ने लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर किया है।
अंततः, पाकिस्तान का यह नया कानून उसकी जनता की स्वतंत्रता को और अधिक सीमित कर देगा। इससे देश में असंतोष और बढ़ेगा। सरकार को चाहिए कि वह इस कानून को वापस ले और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करे। लेकिन मौजूदा हालातों को देखते हुए, ऐसा संभव नहीं लगता। पाकिस्तान में अभिव्यक्ति की आज़ादी का भविष्य अब बेहद धुंधला नजर आ रहा है।