Pakistan's ISI Targets Bangladesh |
पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई (ISI) ने हाल ही में अपने शीर्ष अधिकारियों का एक दल बांग्लादेश के दौरे पर भेजा है। इस कदम ने भारत और क्षेत्रीय सुरक्षा विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा दी है। इस घटना को बांग्लादेश की आंतरिक सुरक्षा और भारत-बांग्लादेश के सामरिक (strategic) संबंधों के लिए एक गंभीर चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। बांग्लादेश ने भी हाल ही में अपना सैन्य प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तान के रावलपिंडी भेजा, जहाँ उन्होंने पाकिस्तानी सेना के उच्च अधिकारियों के साथ बैठक की। इस पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि भारत इन गतिविधियों पर करीबी नजर रख रहा है।
पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच का यह संवाद ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में गहराई से जटिल है। 1947 में विभाजन के बाद से ही बांग्लादेश, जिसे पहले पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था, पश्चिमी पाकिस्तान के साथ भेदभाव और दमन का शिकार रहा। पाकिस्तान ने बंगाली पहचान को कुचलने की कोशिश की और उर्दू भाषा को बंगालियों पर थोपने का प्रयास किया। इसके खिलाफ शेख मुजीबुर रहमान ने एक लंबा आंदोलन चलाया, जिसके कारण 1971 में भारत की सहायता से बांग्लादेश ने स्वतंत्रता हासिल की।
हालांकि, बांग्लादेश के वर्तमान नेतृत्व ने पाकिस्तान के साथ एक बार फिर से संबंध स्थापित करने की कोशिशें शुरू की हैं। यह चिंताजनक इसलिए है क्योंकि आईएसआई का इतिहास बांग्लादेश में अस्थिरता फैलाने का रहा है। शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश ने लंबे समय तक आईएसआई की गतिविधियों पर नकेल कसी थी। लेकिन अब स्थिति बदलती नजर आ रही है। बांग्लादेश ने पहली बार आईएसआई के उच्च स्तरीय दल को अपने देश में आमंत्रित किया है और उन्हें अपने सैन्य प्रतिष्ठानों का दौरा भी कराया है। यह भारत और बांग्लादेश के बीच साझा सुरक्षा संबंधों को कमजोर कर सकता है।
भारत और बांग्लादेश के बीच घनिष्ठ सांस्कृतिक, आर्थिक और सैन्य संबंध हैं। दोनों देशों ने अपने साझा सीमा क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने के लिए कई कदम उठाए हैं। हालाँकि, हाल के वर्षों में बांग्लादेश में बढ़ते चीनी और पाकिस्तानी प्रभाव ने भारत के लिए चुनौतियां खड़ी की हैं। पाकिस्तान ने बांग्लादेश को यह विश्वास दिलाने की कोशिश की है कि उनके बीच रक्षा संबंधों को मजबूत किया जा सकता है। लेकिन इसका असली उद्देश्य बांग्लादेश में भारत के प्रभाव को कमजोर करना है।
बांग्लादेश का पाकिस्तान के साथ इस तरह का जुड़ाव आत्मघाती साबित हो सकता है। इतिहास यह दर्शाता है कि पाकिस्तान ने कभी भी बांग्लादेश के हितों का सम्मान नहीं किया। पाकिस्तान की सेना और आईएसआई ने 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों का उल्लंघन किया था। इसके बावजूद, वर्तमान परिदृश्य में, बांग्लादेश का पाकिस्तान के साथ रक्षा संबंधों को बढ़ावा देना एक गंभीर भूल हो सकती है।
पाकिस्तान की सेना और आईएसआई अपने ही देश में गंभीर समस्याओं से जूझ रही हैं। तालिबान और बलूचिस्तान में जारी विद्रोह, कमजोर अर्थव्यवस्था और बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दबाव ने पाकिस्तान को संकट में डाल दिया है। बावजूद इसके, पाकिस्तान बांग्लादेश में अपनी गतिविधियों को बढ़ाने का प्रयास कर रहा है। इसका उद्देश्य भारत के खिलाफ बांग्लादेश को एक रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करना हो सकता है।
भारत ने बांग्लादेश को बार-बार आगाह किया है कि पाकिस्तान के साथ इस प्रकार के संबंध उनके लिए विनाशकारी साबित हो सकते हैं। बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक प्रगति के लिए यह आवश्यक है कि वह बाहरी हस्तक्षेप से बचकर रहे। पाकिस्तान की आईएसआई का बांग्लादेश दौरा और वहां के सैन्य प्रतिष्ठानों का दौरा करना इस बात का संकेत है कि स्थिति बेहद संवेदनशील हो सकती है।
बांग्लादेश को समझना चाहिए कि वर्तमान में पाकिस्तान के साथ निकटता उनके लिए फायदे से ज्यादा नुकसानदायक हो सकती है। भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच का इतिहास यह साबित करता है कि बांग्लादेश को अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता की रक्षा के लिए सतर्क रहना चाहिए। पाकिस्तान के साथ रक्षा संबंधों को मजबूत करना एक ऐसा निर्णय है, जिसे बांग्लादेश को भविष्य में भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
इस घटनाक्रम ने न केवल भारत के लिए एक नई चुनौती खड़ी की है, बल्कि दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भी खतरा उत्पन्न किया है। बांग्लादेश को इतिहास से सबक लेते हुए अपनी कूटनीतिक प्राथमिकताओं का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए।