Pakistan's $40 Billion Loan Crisis:कर्ज़ कौन चुकाएगा?

NCI

Pakistan's $40 Billion Loan Crisis

 पाकिस्तान की मौजूदा स्थिति कई पेचीदगियों से भरी हुई है, जिसमें उसकी आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता, सैन्य हस्तक्षेप और बाहरी आर्थिक सहायता का जटिल समीकरण शामिल है। हाल ही में पाकिस्तान को वर्ल्ड बैंक और अन्य निजी एजेंसियों से $40 अरब डॉलर का कर्ज मिलने की खबर आई है। यह रकम, जिसमें $20 अरब वर्ल्ड बैंक से और बाकी निजी एजेंसियों से मिलने की संभावना है, पाकिस्तान की चरमराती अर्थव्यवस्था को सहारा देने का प्रयास है। हालांकि, यह सहायता पाकिस्तान की समस्याओं का समाधान नहीं कर सकती, बल्कि यह उसके ऋण की स्थिति को और अधिक गंभीर बना सकती है।

पाकिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के हालिया बयानों ने देश में अशांति को और बढ़ावा दिया है। टीटीपी ने स्पष्ट रूप से पाकिस्तान की सत्तारूढ़ पार्टी पीएमएलएन और उसके समर्थकों को चेतावनी दी है कि वे सेना के साथ किसी भी प्रकार का सहयोग न करें। इसके अलावा, संगठन ने आने वाले तीन महीनों में हमले बढ़ाने की धमकी दी है। बलूचिस्तान में बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) के हमलों और उनके दावों ने पाकिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था की कमजोरी को उजागर किया है। बीएलए ने आत्मघाती हमलों में मारे गए पाकिस्तानी सैनिकों की तस्वीरें जारी कर पाकिस्तान की मीडिया और सरकार के दावों को झूठा साबित कर दिया।

पाकिस्तान की आर्मी फाउंडेशन की आर्थिक गतिविधियां भी चर्चा का विषय हैं। सेना द्वारा संचालित कंपनियों के उत्पादों, जैसे कि कुरकुरे और अन्य सामानों का बहिष्कार, देश की जनता द्वारा शुरू किया गया एक महत्वपूर्ण कदम है। लेकिन यह भी सच्चाई है कि सेना की कमाई और सत्ता पर पकड़ इतनी मजबूत है कि इन प्रयासों का उस पर सीमित प्रभाव पड़ता है। सेना का प्रमुख केवल आर्मी चीफ की भूमिका नहीं निभाता, बल्कि वह देश की अर्थव्यवस्था और राजनीति में एक निर्णायक भूमिका निभाता है।

शहबाज शरीफ की सरकार पर विपक्षी दलों और सेना के दबाव का सीधा असर पड़ रहा है। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) ने भी शहबाज सरकार को समर्थन वापसी की धमकी दी है। हालांकि, जब तक सेना शहबाज शरीफ के पक्ष में है, उनकी सत्ता सुरक्षित मानी जा सकती है। बिलावल भुट्टो और उनके पिता आसिफ अली जरदारी जैसे नेता पाकिस्तान की राजनीति के शातिर खिलाड़ी माने जाते हैं, जो अपनी रणनीति के माध्यम से सत्ता में हिस्सेदारी बनाए रखते हैं।

वहीं, इमरान खान का दृढ़ रुख और उनके समर्थकों की कट्टर वफादारी ने भी पाकिस्तान की राजनीति को जटिल बना दिया है। इमरान खान ने स्पष्ट रूप से यह संदेश दिया है कि वे किसी भी समझौते के लिए तैयार नहीं हैं जब तक उनके समर्थकों पर लगे मुकदमे वापस नहीं लिए जाते।

अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों का पाकिस्तान पर प्रभाव भी साफ दिखाई देता है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्थापित आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक जैसी संस्थाओं के माध्यम से अमेरिका ने पाकिस्तान को आर्थिक सहायता के नाम पर अपनी शर्तों पर नचाने की कोशिश की है। चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (सीपैक) से तुलना करते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि पाकिस्तान अब पूरी तरह से आर्थिक और राजनीतिक नियंत्रण में जाने को तैयार है।

पाकिस्तानी सेना की आंतरिक नीतियों में बदलाव, जैसे कि आर्मी चीफ के कार्यकाल को बढ़ाना, यह दर्शाता है कि देश में लोकतंत्र केवल नाम का है। सेना अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। आसिम मुनीर जैसे सैन्य अधिकारी अपने कार्यकाल के दौरान न केवल सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखते हैं, बल्कि देश की आर्थिक और राजनीतिक दिशा भी तय करते हैं।

अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में, पाकिस्तान की स्थिति और भी जटिल हो गई है। ईरान, इजराइल, और खाड़ी देशों के साथ संबंधों में उतार-चढ़ाव, और अमेरिका के साथ उसकी दोस्ती ने पाकिस्तान की विदेश नीति को अस्थिर बना दिया है।

कुल मिलाकर, पाकिस्तान की स्थिति एक ऐसे चक्रव्यूह की तरह है, जहां हर मोड़ पर नई समस्याएं और चुनौतियां सामने आती हैं। जनता के लिए यह एक ऐसा समय है जब उन्हें न केवल आंतरिक राजनीतिक समस्याओं से लड़ना है, बल्कि बाहरी दबावों का भी सामना करना है। पाकिस्तान को अपने आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य नीतियों में बदलाव करना होगा, अन्यथा यह संकट और गहराता जाएगा।

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