Pakistan vs Taliban |
दक्षिण एशिया के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य में अफगानिस्तान और पाकिस्तान के संबंध हमेशा जटिल और अस्थिर रहे हैं। हाल ही में इन दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव और इसके गहरे असर ने वैश्विक राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। पाकिस्तान और तालिबान के बीच संघर्ष एक बार फिर से सामने आया है। यह कहानी केवल आतंकवाद या सीमा विवाद तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके केंद्र में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता छिपी है।
पाकिस्तान वर्तमान में गंभीर आर्थिक संकट और आंतरिक अस्थिरता से जूझ रहा है। तालिबान और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के साथ इसके संबंध और संघर्ष ने स्थिति को और विकट बना दिया है। टीटीपी पाकिस्तान में लगातार हमले कर रहा है और पाकिस्तान की सेना और सरकार इसका प्रभावी जवाब देने में असफल रही है। हाल के वर्षों में, टीटीपी ने कई बड़े हमले किए हैं, जिनमें पाकिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। इन हमलों के चलते पाकिस्तान की सरकार को टीटीपी से बातचीत करने पर मजबूर होना पड़ा है।
टीटीपी और तालिबान का पाकिस्तान पर बढ़ता प्रभाव न केवल सुरक्षा के लिए खतरा है, बल्कि देश की राजनीतिक स्थिरता को भी कमजोर कर रहा है। एक समय पर, इमरान खान की सरकार ने टीटीपी के साथ शांति समझौता किया था, लेकिन यह समझौता 2022 में समाप्त हो गया, जिसके बाद हमलों की संख्या में वृद्धि हुई। पाकिस्तान के राजनीतिक नेतृत्व की असफलता और सैन्य रणनीति की कमी ने देश को इस स्थिति तक पहुंचाया है।
तालिबान, जो अफगानिस्तान में सत्ता पर काबिज है, पाकिस्तान की सीमाओं पर अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है। यह संगठन अपनी विस्तारवादी नीतियों के चलते बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा के क्षेत्रों को भी अपने अधीन लाने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान के लिए यह स्थिति बेहद चिंताजनक है क्योंकि तालिबान की आक्रामक रणनीति ने देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है।
पाकिस्तान के लिए तालिबान के साथ संबंध बनाए रखना या उन्हें समाप्त करना, दोनों ही विकल्प चुनौतीपूर्ण हैं। यदि पाकिस्तान तालिबान से अपने रिश्ते खराब करता है, तो यह अफगानिस्तान में एंटी-पाकिस्तान ताकतों को मजबूत कर सकता है। वहीं, तालिबान के साथ संबंध बनाए रखना पाकिस्तान की संप्रभुता और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।
इस संघर्ष में चीन और भारत जैसे क्षेत्रीय शक्तियों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। चीन ने तालिबान के साथ अपने संबंध मजबूत किए हैं और उसने पाकिस्तान की मदद करने के बजाय तालिबान को समर्थन देना चुना है। भारत ने भी तालिबान के साथ बातचीत शुरू की है, हालांकि यह अभी भी अफगानिस्तान की सरकार को आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं देता है। यह परिदृश्य पाकिस्तान के लिए और अधिक जटिलता उत्पन्न करता है।
पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति भी लगातार खराब होती जा रही है। देश में बढ़ती बेरोजगारी, शिक्षा का अभाव और आर्थिक संकट ने जनता के असंतोष को बढ़ा दिया है। तालिबान और टीटीपी जैसी आतंकवादी संगठनों ने इस स्थिति का फायदा उठाते हुए युवाओं को अपने पक्ष में कर लिया है। पाकिस्तान की राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व इस अस्थिरता का समाधान निकालने में असफल रहा है।
भारत के विपरीत, जहां कश्मीर में विकास परियोजनाएं और आर्थिक सुधार तेजी से हो रहे हैं, पाकिस्तान विकास के मामले में पिछड़ता जा रहा है। इसका परिणाम यह है कि पाकिस्तान के नागरिकों में असंतोष बढ़ रहा है और आतंकवादी संगठन इसे अपने पक्ष में मोड़ने में सफल हो रहे हैं।
पाकिस्तान और तालिबान के बीच यह संघर्ष केवल सीमा विवाद या आतंकवाद तक सीमित नहीं है। यह संघर्ष उस गहरे संकट की ओर इशारा करता है, जिसमें पाकिस्तान वर्तमान में फंसा हुआ है। यह संकट राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक कमजोरी और सामाजिक विघटन का परिणाम है।
पाकिस्तान को इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए गंभीर प्रयास करने होंगे। इसे अपनी आंतरिक स्थिति को सुधारने, शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में निवेश करने और आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख अपनाने की आवश्यकता है। केवल तभी यह देश अपनी स्थिरता और संप्रभुता को सुरक्षित रख सकेगा।
तालिबान और पाकिस्तान के बीच यह संघर्ष वैश्विक राजनीति में नए समीकरण और क्षेत्रीय स्थिरता पर गंभीर सवाल खड़े करता है। यह स्पष्ट है कि जब तक पाकिस्तान और अफगानिस्तान दोनों देश अपनी आंतरिक समस्याओं का समाधान नहीं करते, तब तक यह संघर्ष जारी रहेगा।