India's Triumph in Indus Waters Treaty Dispute: भारत का पलड़ा भारी!

NCI

Indus Waters Treaty

 इंडस वाटर ट्रीटी (Indus Waters Treaty) के संदर्भ में हाल के दिनों में आए निर्णय ने भारत के पक्ष को मजबूत किया है। इस समझौते की शुरुआत 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई थी, जब जवाहरलाल नेहरू और अयूब खान ने इसे लागू किया। हिमालय से निकलने वाली नदियों पर आधारित यह संधि दोनों देशों के लिए जल प्रबंधन का मुख्य आधार है। संधि के तहत छह नदियों को दो भागों में बांटा गया – तीन पश्चिमी नदियाँ (झेलम, चिनाब, इंडस) पाकिस्तान को और तीन पूर्वी नदियाँ (रावी, ब्यास, सतलज) भारत को सौंपी गईं। इस प्रकार, कुल जल का लगभग 70% हिस्सा पाकिस्तान और 30% भारत को मिला।

हाल के विवाद की जड़ भारत द्वारा बनाए जा रहे दो बांध हैं – किशनगंगा और रातले। पाकिस्तान ने आरोप लगाया कि ये बांध संधि के प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं। संधि में विवाद निपटाने के लिए तीन स्तर की प्रक्रिया का उल्लेख है: सबसे पहले दोनों देशों के आयुक्तों की बातचीत, फिर न्यूट्रल एक्सपर्ट की मध्यस्थता और अंत में अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में मामला। पाकिस्तान ने बातचीत और न्यूट्रल एक्सपर्ट की प्रक्रिया को छोड़ सीधे कोर्ट में जाने का प्रस्ताव रखा, जिसे भारत ने खारिज कर दिया। भारत का कहना था कि पहले निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन करना चाहिए।

न्यूट्रल एक्सपर्ट माइकल लीनो ने इस विवाद का निरीक्षण करते हुए पाया कि भारत द्वारा किए जा रहे निर्माण कार्य संधि के प्रावधानों के अंतर्गत आते हैं। पाकिस्तान के आरोपों में चार मुख्य बिंदु थे – बांध का डिज़ाइन, टरबाइन की संरचना, जल संग्रहण स्तर और गेट्स का निर्माण। इन सभी पहलुओं पर एक्सपर्ट ने भारत के दृष्टिकोण को सही ठहराया। उन्होंने कहा कि इन बांधों का निर्माण संधि के तहत दिए गए अधिकारों के अनुरूप है और भारत ने किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं किया है।

इसके साथ ही भारत ने यह भी संकेत दिया कि इंडस वाटर ट्रीटी को अब संशोधित करने का समय आ गया है। जनवरी 2023 में भारत ने पाकिस्तान को नोटिस भेजकर यह कहा कि पिछले 60 वर्षों में भौगोलिक, पर्यावरणीय और जनसंख्या के कारणों से परिस्थितियाँ काफी बदल गई हैं। भारत ने स्पष्ट किया कि इस संधि में बदलाव और पुनरीक्षण आवश्यक है ताकि यह वर्तमान समय की जरूरतों के अनुसार प्रभावी हो सके। भारत ने यह भी कहा कि इन नदियों का स्रोत भारत है, इसलिए इसके उपयोग का प्राथमिक अधिकार भी भारत को होना चाहिए।

इस पूरे मामले ने यह स्पष्ट किया है कि भारत ने हमेशा संयम और कानून का पालन किया है। इसके विपरीत, पाकिस्तान ने विवाद को राजनीतिक रूप देने का प्रयास किया। अब जब न्यूट्रल एक्सपर्ट ने भारत के पक्ष में निर्णय दिया है, यह भारत की कूटनीतिक जीत के रूप में देखा जा रहा है। भारत ने इस पूरे मामले में अपनी ताकत और प्रभाव का प्रदर्शन किया, साथ ही यह भी साबित किया कि वह अंतरराष्ट्रीय नियमों और समझौतों का सम्मान करता है।

आगे चलकर, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि पाकिस्तान भारत के संशोधन प्रस्ताव पर क्या प्रतिक्रिया देता है। यदि पाकिस्तान इस पर सहमति देता है, तो दोनों देशों के लिए जल प्रबंधन का एक नया अध्याय शुरू हो सकता है। अन्यथा, विवाद का हल निकालने में और अधिक समय लग सकता है। इस निर्णय ने न केवल भारत की स्थिति को सशक्त किया है, बल्कि यह भी साबित किया है कि सही तथ्यों और निष्पक्ष दृष्टिकोण से बड़े विवादों को हल किया जा सकता है।

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