India’s Scramjet Success |
भारत ने हाल ही में अपनी रक्षा प्रणाली को और मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन) ने स्क्रैमजेट इंजन की 120 सेकंड की ग्राउंड टेस्टिंग को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है। यह भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है, जो हाइपरसोनिक मिसाइल और अन्य एडवांस हथियार प्रणालियों के विकास में मील का पत्थर साबित होगी। हाइपरसोनिक मिसाइल्स वे हथियार हैं, जिनकी गति ध्वनि की गति (मैक 5) से पांच गुना तेज होती है। यह प्रौद्योगिकी भारत को रणनीतिक और सैन्य दृष्टिकोण से अत्यधिक लाभान्वित कर सकती है।
स्क्रैमजेट इंजन, रामजेट इंजन का उन्नत संस्करण है। यह एक एयर-ब्रीथिंग इंजन है, जिसमें वाहनों की गति के जरिए हवा को कंप्रेस किया जाता है। पारंपरिक इंजनों के विपरीत, इसमें एयर फ्लो को कंप्रेस करने के लिए टर्बो फैन का उपयोग नहीं किया जाता। स्क्रैमजेट में सुपरसोनिक गति पर भी हवा का फ्लो स्थिर रहता है, जिससे यह हाइपरसोनिक गति को आसानी से प्राप्त कर सकता है। यह क्षमता इसे एडवांस हथियार प्रणालियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण बनाती है।
डीआरडीओ की इस सफलता के पीछे वर्षों की मेहनत और शोध है। डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट लेबोरेटरी (डीआरडीएल), जो हैदराबाद स्थित डीआरडीओ की एक शाखा है, ने यह टेस्टिंग की है। स्क्रैमजेट इंजन की तकनीकी जटिलताओं के बावजूद, वैज्ञानिकों ने इसे एक स्थिर और प्रभावी प्रणाली बनाने में सफलता प्राप्त की है। इसमें उपयोग किए गए इनोवेटिव फ्लेम स्टेबलाइजेशन तकनीक ने इंजन को 1.5 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से हवा इंटेक करने की क्षमता प्रदान की है।
इस परियोजना में उपयोग किए गए विशेष प्रकार के फ्यूल और मटेरियल भी इसके सफल संचालन में अहम भूमिका निभाते हैं। डीआरडीएल ने थर्मल बैरियर कोटिंग्स का उपयोग किया है, जो अत्यधिक तापमान पर भी इंजन को सुरक्षित रखता है। यह सुरक्षा उपाय इंजन की स्थायित्व और विश्वसनीयता को बढ़ाने में मदद करता है।
भारत में हाइपरसोनिक तकनीक पर काम पिछले दो दशकों से चल रहा है। 2002 के बाद से इस दिशा में अनुसंधान शुरू हुआ और 2016 में पहली बार इसरो ने हाइपरसोनिक एयर-ब्रीथिंग व्हीकल का सफल परीक्षण किया। हालांकि, उस समय यह तकनीक केवल 5 सेकंड तक काम कर पाई थी। अब, डीआरडीओ और इसरो दोनों इस तकनीक को और उन्नत बनाने में जुटे हुए हैं।
हाइपरसोनिक तकनीक का उपयोग न केवल रक्षा क्षेत्र में, बल्कि अंतरिक्ष अनुसंधान में भी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। स्क्रैमजेट इंजन के जरिए रॉकेट और सेटेलाइट्स को लॉन्च करने में ईंधन की खपत कम होगी, क्योंकि इसमें ऑक्सीजन कैरी करने की आवश्यकता नहीं होगी। इससे भारी सेटेलाइट्स को कम लागत और उच्च दक्षता के साथ अंतरिक्ष में भेजा जा सकेगा।
वैश्विक स्तर पर, हाइपरसोनिक तकनीक के क्षेत्र में केवल कुछ ही देश, जैसे अमेरिका, रूस, चीन और अब भारत, सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। चीन ने 2021 में हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल का परीक्षण किया था, जो न्यूक्लियर सक्षम था। अमेरिका ने इस तकनीक का पहला सफल परीक्षण 2002 में किया था।
हाइपरसोनिक मिसाइल्स का सामरिक महत्व अत्यधिक है। इनकी स्पीड और मैनवेबिलिटी इतनी अधिक होती है कि यह दुश्मन के रडार सिस्टम को चकमा देने में सक्षम होती है। बिना किसी पूर्व चेतावनी के, यह मिसाइल दुश्मन के लक्ष्यों को सटीकता से भेद सकती है।
डीआरडीओ की इस सफलता से भारत की सैन्य और वैज्ञानिक क्षमताएं कई गुना बढ़ेंगी। यह परीक्षण भारत को हाइपरसोनिक हथियार प्रणाली विकसित करने में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। आने वाले समय में, यह तकनीक भारत को वैश्विक रक्षा बाजार में एक महत्वपूर्ण स्थान प्रदान कर सकती है।