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भारत और तालिबान के बीच हाल ही में हुई उच्च-स्तरीय बैठक ने दक्षिण एशिया की राजनीति में एक नया मोड़ दिया है। यह बैठक दुबई में आयोजित की गई, जिसमें भारत के विदेश सचिव और अफगानिस्तान के रक्षा मंत्री ने भाग लिया। तालिबान द्वारा 2021 में अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद यह पहली बार है जब इतने बड़े स्तर पर भारत और तालिबान के बीच बातचीत हुई है। इस बैठक में मानवतावादी सहायता, व्यापारिक संबंध, चाबहार पोर्ट के माध्यम से आर्थिक सहयोग, स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने, और शरणार्थियों के पुनर्वास जैसे मुद्दों पर चर्चा की गई।
भारत ने इस बैठक में अफगानिस्तान के लोगों के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई, विशेष रूप से चाबहार पोर्ट के माध्यम से व्यापार और सहयोग बढ़ाने के इरादे से। भारत ने अफगानिस्तान में विभिन्न परियोजनाओं जैसे सलमा डैम, अफगान संसद भवन, और स्टोर पैलेस के पुनर्निर्माण में निवेश किया है। इन परियोजनाओं को सफल बनाने और अफगानिस्तान में स्थिरता बनाए रखने के लिए भारत ने तालिबान के साथ संबंध मजबूत करने की दिशा में कदम उठाया है।
तालिबान की सत्ता के बावजूद भारत ने अफगानिस्तान को खाद्य और अन्य आवश्यक वस्तुएं प्रदान की हैं, जिससे तालिबान ने भी भारत को धन्यवाद दिया है। हालांकि, भारत ने तालिबान के महिला अधिकारों और बच्चों की शिक्षा पर अत्याचार के मुद्दे को भी प्रमुखता से उठाया। इस बैठक में भारत ने तालिबान से आग्रह किया कि वे महिला और बच्चों के अधिकारों की रक्षा करें।
इस कदम के पीछे भारत के कई महत्वपूर्ण रणनीतिक कारण हैं। सबसे बड़ा कारण पाकिस्तान के साथ तालिबान के बिगड़ते संबंध हैं। पहले, तालिबान और पाकिस्तान के बीच करीबी संबंध थे, लेकिन हाल ही में पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान में की गई एयर स्ट्राइक ने तालिबान को नाराज कर दिया है। भारत ने इस स्थिति का फायदा उठाते हुए तालिबान के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया है। दूसरा कारण यह है कि ईरान और रूस जैसे देशों की अफगानिस्तान में सक्रियता कम हो गई है, जिससे भारत को इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति मजबूत करने का अवसर मिला है।
इसके अलावा, चीन की बढ़ती सक्रियता भी भारत के लिए चिंता का विषय है। अफगानिस्तान में चीन ने कई बड़े कदम उठाए हैं, जिससे भारत को अपनी रणनीतिक स्थिति मजबूत करने की आवश्यकता महसूस हुई। तालिबान के साथ बातचीत के माध्यम से भारत ने यह सुनिश्चित किया है कि अफगानिस्तान में उसका प्रभाव बना रहे और चीन को चुनौती दी जा सके।
सुरक्षा भारत के लिए एक प्रमुख मुद्दा है। तालिबान के कब्जे के बाद, भारत ने इस बात पर जोर दिया है कि अफगानिस्तान में किसी भी प्रकार की गतिविधि से भारत की सुरक्षा पर खतरा नहीं आना चाहिए। 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के तुरंत बाद, भारत ने कतर में तालिबान के प्रतिनिधियों से संपर्क किया था। इसके बाद, भारत ने धीरे-धीरे तालिबान के साथ संवाद बढ़ाया और काबुल में अपनी तकनीकी टीम भेजी। यह टीम अफगानिस्तान में भारत की परियोजनाओं और सहायता कार्यक्रमों को सुचारू रूप से चलाने में मदद कर रही है।
पाकिस्तान के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण हो गई है। 2021 में जब तालिबान ने सत्ता संभाली थी, पाकिस्तान ने इसे अपनी जीत के रूप में देखा था। लेकिन वर्तमान समय में, तालिबान और पाकिस्तान के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं। अफगानिस्तान के प्रति पाकिस्तान की आक्रामक नीतियों ने तालिबान को भारत के करीब ला दिया है। भारत ने इस स्थिति का लाभ उठाकर तालिबान के साथ अपने संबंध मजबूत किए हैं।
यह रणनीतिक कदम भारत के लिए महत्वपूर्ण है। अफगानिस्तान के साथ सहयोग बढ़ाने से न केवल भारत को आर्थिक लाभ मिलेगा, बल्कि यह क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करने में भी मदद करेगा। तालिबान के साथ भारत की यह बातचीत दिखाती है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखता है और अपने कूटनीतिक कौशल का उपयोग करके चुनौतियों को अवसरों में बदल सकता है।