Gwadar Airport Strategic Trap |
ग्वादर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की शुरुआत ने पाकिस्तान और चीन के संबंधों में एक नई चर्चा छेड़ दी है। इस हवाई अड्डे को पाकिस्तान के लिए एक महत्वपूर्ण विकास परियोजना के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें इसे क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ाने और वैश्विक व्यापार और इंफ्रास्ट्रक्चर में पाकिस्तान की स्थिति को मजबूत करने वाला बताया जा रहा है। लेकिन जब इस परियोजना की गहराई से पड़ताल की जाती है, तो इसमें कई सवाल उठते हैं। ग्वादर जैसे क्षेत्र में, जिसकी जनसंख्या लगभग तीन लाख है, इस हवाई अड्डे का कितना उपयोग होगा, यह एक महत्वपूर्ण सवाल है। इसके अतिरिक्त, यह बात भी सामने आई है कि इस क्षेत्र में चीनी नागरिकों की संख्या बढ़ती जा रही है, जिससे यह स्पष्ट हो रहा है कि यह परियोजना पाकिस्तान से अधिक चीन के हितों को साधने के लिए बनाई गई है।
पाकिस्तान के नेताओं और मीडिया ने इस हवाई अड्डे को विकास का प्रतीक बताते हुए अपनी उपलब्धियों का दावा किया है, लेकिन इसकी वास्तविकता बहुत अलग प्रतीत होती है। जब किसी देश में आर्थिक संकट हो, और विकास की परियोजनाओं का उद्देश्य देश के लोगों की भलाई से अधिक दूसरे देश के लाभ के लिए हो, तो इसे किस तरह से सकारात्मक दृष्टि से देखा जाए, यह समझना कठिन है। पाकिस्तान के अन्य विवादास्पद प्रोजेक्ट्स जैसे सीपैक (CPEC) की तरह ही, ग्वादर हवाई अड्डा भी एक ऐसा प्रोजेक्ट लगता है, जिसमें चीन का निवेश अधिक और पाकिस्तान का स्वामित्व कम दिखाई देता है।
चीन के इस निवेश को दोस्ती के नाम पर परिभाषित किया जा रहा है, लेकिन यह बात भी साफ है कि चीन ने पाकिस्तान को महंगे ब्याज दरों पर कर्ज दिए हैं। यह कर्ज, जिसे पाकिस्तान "मदद" कहता है, वास्तव में चीन के दीर्घकालिक रणनीतिक लाभों को साधने का जरिया है। चीन ने पाकिस्तान को दिए अपने सबसे महंगे लोन में से एक में बांध दिया है, और इस कर्ज के चलते पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति और कमजोर होती जा रही है।
ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो पाकिस्तान हमेशा से अपने आंतरिक संसाधनों और जनशक्ति का सही उपयोग करने में असफल रहा है। मीडिया में सोना, तेल, गैस और कोयले के विशाल भंडार की खबरें तो आती रहती हैं, लेकिन ये परियोजनाएं जमीन पर कभी साकार नहीं हो पातीं। ग्वादर हवाई अड्डे की भी यही स्थिति हो सकती है, जो दिखने में तो बड़ा प्रोजेक्ट लगता है, लेकिन इससे क्षेत्रीय स्तर पर आर्थिक लाभ मिलने की संभावना बेहद कम है।
पाकिस्तान के नेताओं और उनके बयान अक्सर अतिशयोक्ति से भरे होते हैं। एक तरफ वे ग्वादर को वैश्विक व्यापार का केंद्र बताते हैं, तो दूसरी तरफ इस बात को नजरअंदाज करते हैं कि ग्वादर में बुनियादी ढांचा और आवश्यक सुविधाएं ही नहीं हैं। यह क्षेत्र, जो बलूचिस्तान जैसे संघर्ष-प्रभावित इलाके में है, वहां पर स्थानीय लोगों की सहमति के बिना कोई भी प्रोजेक्ट सफल नहीं हो सकता। बलूचिस्तान के लोग खुद को हाशिए पर महसूस करते हैं और उन्हें लगता है कि उनकी भूमि और संसाधनों का शोषण किया जा रहा है।
चीन और पाकिस्तान की कथित दोस्ती पर भी सवाल उठते हैं। यह स्पष्ट है कि चीन केवल अपने दीर्घकालिक हितों को ध्यान में रखता है और उसकी नीतियां "पहले चीन" पर आधारित होती हैं। चाहे वह बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) हो या सीपैक, चीन ने हमेशा उन परियोजनाओं में निवेश किया है जो उसके अपने व्यापारिक और सामरिक उद्देश्यों को पूरा करती हैं। पाकिस्तान के साथ उसका रिश्ता भी कोई अलग नहीं है।
अंतरराष्ट्रीय राजनीति के दृष्टिकोण से देखें, तो ग्वादर जैसे प्रोजेक्ट्स केवल दिखावटी सफलता के प्रतीक बनते हैं। ग्वादर में एक नया हवाई अड्डा बना देना या किसी बंदरगाह को "डीप सी पोर्ट" का नाम दे देना केवल एक भ्रम पैदा करता है। वास्तविकता यह है कि इन परियोजनाओं से पाकिस्तान को आर्थिक या सामरिक लाभ नहीं होता।
पाकिस्तान की सरकार और जनता को यह समझना होगा कि केवल कर्ज लेकर बड़ी परियोजनाओं को खड़ा करना किसी भी देश के विकास का पैमाना नहीं हो सकता। विकास तभी संभव है जब नीतियां दीर्घकालिक और स्थानीय जनहित पर आधारित हों। ग्वादर का उदाहरण यह दर्शाता है कि बिना किसी स्पष्ट योजना और स्थानीय सहमति के, विकास परियोजनाएं केवल आर्थिक बोझ बन जाती हैं।
यह कहना गलत नहीं होगा कि ग्वादर हवाई अड्डा पाकिस्तान की वर्तमान स्थिति का प्रतीक है—एक ऐसा देश जो आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक विभाजन से जूझ रहा है, और जहां विकास केवल कागजों पर ही होता दिख रहा है। पाकिस्तान को अपनी प्राथमिकताओं को पुनः परिभाषित करना होगा और बाहरी कर्ज व निवेश पर निर्भरता कम करनी होगी। अन्यथा, ग्वादर जैसे प्रोजेक्ट्स केवल महंगे खिलौने साबित होंगे, जिनका लाभ किसी और को मिलेगा।