Germany's Dormant Volcano : क्या फिर फटेगा?

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Germany's Dormant Volcano

 जर्मनी के पश्चिमी क्षेत्र आइफेल में स्थित "लेक लाख" एक ऐसी झील है, जो 13,000 साल पहले के भीषण ज्वालामुखी विस्फोट की देन है। यह स्थान आज भी वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के लिए एक रहस्यमयी स्थल बना हुआ है। शोधकर्ता यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या इस झील के नीचे कोई ज्वालामुखी अभी भी सक्रिय हो सकता है। इस झील का निर्माण उस समय हुआ जब ज्वालामुखी के विस्फोट से बनी विशाल गड्ढी में पानी भर गया। यह झील अपने चारों ओर फैली चट्टानों की परतों और मलबे की दीवारों से घिरी हुई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह संरचना एक "काल्डेरा" (Caldera) है, जो तब बनती है जब ज्वालामुखी का मैग्मा चेंबर खाली हो जाता है और उसकी सतह ढह जाती है।

पिछले शोधों में इस ज्वालामुखी को निष्क्रिय माना गया था, लेकिन हालिया अनुसंधान बताते हैं कि इसके पुनः सक्रिय होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। इस क्षेत्र में ज्वालामुखीय गतिविधियों की निगरानी अब तक व्यापक स्तर पर नहीं की गई है, लेकिन आधुनिक तकनीकों के माध्यम से इन गतिविधियों को समझने का प्रयास किया जा रहा है। शोधकर्ताओं का मानना है कि बेहतर निगरानी तंत्र के जरिये संभावित खतरों का आकलन किया जा सकता है और उन्हें समय रहते टाला जा सकता है।

लेक लाख क्षेत्र में पाए जाने वाले बेसाल्ट (Basalt) और लावा चट्टानों का उपयोग पहले इमारती सामग्री के रूप में किया जाता था। यहां सदियों से इनका खनन भी होता आ रहा है। हालांकि, आज इन चट्टानों का महत्व वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए और भी बढ़ गया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह क्षेत्र ज्वालामुखीय गतिविधियों को समझने के लिए आदर्श है, क्योंकि यहां आसपास के वातावरण में शोरगुल या अन्य व्यवधान कम हैं। इससे भूकंपीय संकेतों और अन्य सूक्ष्म गतिविधियों को मापा जा सकता है।

अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि इस क्षेत्र में केवल एक नहीं बल्कि कई मैग्मा चेंबर मौजूद हो सकते हैं, जो विभिन्न परतों में फैले हुए हैं। ये चेंबर संभवतः गहराई में पिघली हुई चट्टानों (Magma) का भंडार हैं। क्षेत्र में मौजूद छोटे-छोटे सुराख, जिन्हें "मोफेट" (Mofette) कहा जाता है, यहां की ज्वालामुखीय गतिविधियों के सूचक हैं। इन सुराखों से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का उत्सर्जन होता है, जो यह संकेत देता है कि गहराई में कोई ज्वालामुखीय प्रक्रिया सक्रिय हो सकती है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर गहरे इलाकों में मौजूद मैग्मा सतह तक पहुंचा, तो इससे विस्फोट होने का खतरा हो सकता है। इस संभावना को समझने के लिए वैज्ञानिक विशेष उपकरणों का उपयोग कर जमीन के नीचे की परतों की संरचना का अध्ययन कर रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि यह क्षेत्र एक "डिस्ट्रिब्यूटेड वॉल्केनिज़्म" (Distributed Volcanism) का उदाहरण है, जिसका अर्थ है कि ज्वालामुखीय खतरे का आकलन पारंपरिक तरीकों से नहीं किया जा सकता।

लेक लाख का ऐतिहासिक विस्फोट, जिसे वोल्कानिक एक्सप्लोसिव इंडेक्स (Volcanic Explosive Index) पर छह की श्रेणी में रखा गया है, अपने पीछे भारी मात्रा में राख और मलबा छोड़ गया था। इस मलबे ने न केवल स्थानीय भूगोल को बदल दिया, बल्कि पर्यावरण पर भी गहरा प्रभाव डाला। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर ऐसा विस्फोट दोबारा हुआ, तो यह क्षेत्र और उससे जुड़े पर्यावरण के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है।

शोधकर्ताओं ने भूकंपीय संकेतों का अध्ययन करके यह पता लगाने की कोशिश की है कि इस क्षेत्र में ज्वालामुखीय गतिविधियों की गति कैसी है। इन संकेतों से पता चलता है कि सतह के नीचे की परतों में पिघली हुई चट्टानें मौजूद हैं, जो धीरे-धीरे ऊपर की ओर बढ़ सकती हैं। सवाल यह है कि क्या ये चट्टानें पृथ्वी की सतह को भेद पाएंगी और विस्फोट का कारण बनेंगी।

यह अध्ययन केवल स्थानीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर ज्वालामुखीय गतिविधियों को समझने के लिए भी महत्वपूर्ण है। इसके जरिये वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि ऐसे खतरों का सामना करने के लिए हमें किस तरह की तैयारी करनी चाहिए। आधुनिक तकनीकों और उपकरणों की मदद से इस क्षेत्र का अध्ययन किया जा रहा है, जिससे इस इलाके की भूवैज्ञानिक संरचना और संभावित खतरों को बेहतर ढंग से समझा जा सके।

लेक लाख का यह रहस्यमयी और खतरनाक अतीत हमें यह याद दिलाता है कि पृथ्वी की गहराई में अब भी कितने अनजाने रहस्य छिपे हुए हैं। यह जगह न केवल वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाती है कि प्राकृतिक आपदाओं के प्रति सतर्क और तैयार रहना कितना जरूरी है।

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